प्रेस कांफ्रेंस कर कोर्ट द्वारा नोटिस भेजे जाने की जानकारी देते रघुनाथ सिंह नेगी.
उत्तराखंड में हरीश रावत जब सीएम थे तब वो एक स्टिंग आपरेशन में नंगे हो गए थे. इस प्रकरण की जांच फिलहाल सीबीआई कर रही है. इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब हाईकोर्ट ने स्टिंग करने वाले समाचार प्लस चैनल के संपादक उमेश शर्मा, तत्कालीन मंत्री हरक सिंह रावत, विधायक मदन सिंह बिष्ट को नोटिस भेजकर पूछा कि क्यों न आप सभी स्टिंग करने वालों की भी सीबीआई जांच करा दी जाए.
नोटिस की एक प्रति सीबीआई को भी भेजी गई है क्योंकि स्टिंग मामले की जांच सीबीआई कर रही है. अब नया मोड़ ये है कि सीबीआई जांच के दायरे में स्टिंगबाजों को भी लाने की कोशिश हो रही है. पीआईएल को मंजूर करते हुए हाईकोर्ट ने स्टिंगबाजों को नोटिस भेज दिया है जिसको लेकर देहरादून में मीडिया वालों के बीच काफी तरह तरह की चर्चाएं हैं.
दरअसल नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. 114/2016 नंबर की इस जनहित याचिका को रघुनाथ सिंह नेगी ने दायर किया है जो जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हैं और जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष हैं. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की खंडपीठ के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज तिवारी ने बीते अट्ठाइस अगस्त को एक आदेश पारित किया. इस आदेश के तहत स्टिंग करने वाले पक्ष को नोटिस भेजे जाने की बात कही गई है. सबको चार सप्ताह में जवाब देना है.
जनहित याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि स्टिंगबाजों के इतिहास की भी जांच होनी चाहिए क्योंकि जिनके द्वारा स्टिंग किए गए हैं, वे जनहित में न होकर व्यक्तिगत स्वार्थों से परिपूर्ण थे.
रघुनाथ सिंह नेगी ने एक प्रेस कांफ्रेस करके जानकारी दी कि स्टिंगबाज उमेश शर्मा पर एक दर्जन से अधिक ब्लैकमेलिंग, फर्जीवाड़े और अन्य संगीन अपराधों में मुकदमें दर्ज थे. उनके द्वारा अपने स्वार्थ में हरीश रावत का स्टिंग किया गया. चूंकि हरीश रावत स्टिंग प्रकरण की सीबीआई जांच चल रही है इसलिए याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि जांच के दायरे में स्टिंगबाजों को भी लाया जाए. नेगी का कहना है कि कोर्ट ने स्टिंगबाजों को नोटिस भेजकर प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूत करने का काम किया है.