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उत्तराखंड

छह माह पहले स्टिंग कर चुके अशोक पांडेय सौदेबाजी करने के लिए सीडी दबाए बैठे रहे?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात आईएएस मोहम्मद शाहिद का खुफिया कैमरों से स्टिंग आपरेशन कर सुर्खियां में आए अशोक पांडेय भी सवालों को घेरे में हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिस तरह इस सीडी के सामने आने के बाद जांच कराने से ही बचने की कोशिश की, वह उनको तो कठघरे में खड़ा करता ही है, लेकिन भाजपाई और मीडिया का एक हिस्सा पांडेय के निर्माणाधीन भवन को गिराने को लेकर जिस तरह हायतौबा मचा रहा है, वह इस पूरे प्रकरण से खड़े सवालों को नेपथ्य में धकेल रहा है। पहली बात तो यह कि इस सीडी के सामने आने से मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे नौकरशाह किस तहर दलाली का खेल खेल रहे हैं, सबके सामने आ गया। दूसरे सवालों को थोड़ी देर के लिए किनारे रख दें तो इस सीडी का यह एक उजला पक्ष है। लेकिन इस उजले पक्ष के पीछे जो भी अंधेरा है उस पर भी रोशनी डाली जानी चाहिए।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात आईएएस मोहम्मद शाहिद का खुफिया कैमरों से स्टिंग आपरेशन कर सुर्खियां में आए अशोक पांडेय भी सवालों को घेरे में हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिस तरह इस सीडी के सामने आने के बाद जांच कराने से ही बचने की कोशिश की, वह उनको तो कठघरे में खड़ा करता ही है, लेकिन भाजपाई और मीडिया का एक हिस्सा पांडेय के निर्माणाधीन भवन को गिराने को लेकर जिस तरह हायतौबा मचा रहा है, वह इस पूरे प्रकरण से खड़े सवालों को नेपथ्य में धकेल रहा है। पहली बात तो यह कि इस सीडी के सामने आने से मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे नौकरशाह किस तहर दलाली का खेल खेल रहे हैं, सबके सामने आ गया। दूसरे सवालों को थोड़ी देर के लिए किनारे रख दें तो इस सीडी का यह एक उजला पक्ष है। लेकिन इस उजले पक्ष के पीछे जो भी अंधेरा है उस पर भी रोशनी डाली जानी चाहिए।

पहला सवाल तो यही कि जब छह माह पहले ये स्टिंग कर दिया गया था तो इतना समय क्यों इसे बाहर आने में लगा? क्या स्टिंगबाजों ने मोहम्मद शाहिद से इस सीडी को दबाए रखने के लिए कोई सौदेबाजी की थी? अशोक पांडेय नाम के पत्रकार की 18 जून की मुख्यमंत्री के साथ सीएम आवास की जो तस्वीरें सामने आई थी, वह इस सवाल को पुख्ता करती हैं। इन तस्वीरों में एक में वे हरीश रावत को अपनी पत्रिका भेंट कर रहे हैं, तो दूसरी में वे एक पत्र में सीएम से मंजूरी लेते दिख रहे हैं। यह कैसे हो सकता है कि जो शख्स सीएम के सचिव की सीडी दबाकर बैठा हो और वही मुख्यमंत्री के साथ सीएम आवास में कुछ इस तरह खिलखिला रहा हो, मानों वह कोई पत्रकार न होकर सीएम का ही दत्तक पुत्र हो!

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दूसरा यह कि सरकार जांच के सवाल पर लगातार इस बात का रोना रो रही है कि उसके पास जब तक फारेंसिक जांच के लिए आरजिनल सीडी नहीं मिलती तब तक वह जांच को आगे नहीं बढ़ा सकती। ऐसे में क्या अशोक पांडेय की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे सरकार को सीडी की मूल कापी उपलब्ध कराएं। प़त्रकारिता की कौन सी आचार संहिता उन्हें ऐसा करने से रोकती है? तीसरा सवाल यह है कि एक पत्रकार को एक एनजीओ के बैनर तले अपने स्टिंग आपरेशन का खुलासा करने की जरूरत क्यों पड़ी? और पांडेय को इस सवाल का भी जवाब देना चाहिए कि क्या उत्तराखंड के एक शातिर नेता ने सीडी को सार्वजनिक करने को लेकर भाजपा हाईकमान के साथ उनकी डील कराई थी या नहीं?

देहरादून से युवा और बेबाक पत्रकार दीपक आजाद की रिपोर्ट.

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0 Comments

  1. purushottam asnora

    August 17, 2015 at 1:49 am

    Ashok pknde jaise ptrakarou ne ptrakarita par palira pota hai. 15 sal k uttrakhand mai kisi sampadak ko sachcha patrakar kah sakte haon kya? sarkar ki han mai han mila kar pradesh ko lutne mai ye sab shamil hainA khan se aa rahi hai karorou ki sampatti? jahir hai khula khel chay rha hai. is sting ka yek sakaratmd paksh hai ki sarkar, vipaksh our swayan sting karne wale ki pol khul gayi hS.

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