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उत्तराखंड

हरीश रावत और नवीन जिंदल के गठजोड़ का कहर, पीसी तिवारी समेत कई पर जानलेवा हमला

Abhishek Srivastava : उत्तराखंड में आंदोलनों से जुड़े लोग पीसी भाई यानी पी.सी. तिवारी, उत्‍तराखण्‍ड परिवर्तन पार्टी के अध्‍यक्ष को बखूबी जानते हैं। पी.सी. तिवारी ने अल्‍मोड़ा के द्वारसो गांव में ज़मीन की लूट के खिलाफ़ ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है कि जिंदल ग्रुप को गैर-कानूनी तरीके से ज़मीन देने वाली हरीश रावत सरकार की नाक में तीन महीने से दम हुआ पड़ा है। ग्रामीणों ने इस मसले पर जिंदल ग्रुप के खिलाफ़ एक मुकदमा किया हुआ था। निचली अदालत ने जिंदल के खिलाफ़ फैसला देते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दी।

<p>Abhishek Srivastava : उत्तराखंड में आंदोलनों से जुड़े लोग पीसी भाई यानी पी.सी. तिवारी, उत्‍तराखण्‍ड परिवर्तन पार्टी के अध्‍यक्ष को बखूबी जानते हैं। पी.सी. तिवारी ने अल्‍मोड़ा के द्वारसो गांव में ज़मीन की लूट के खिलाफ़ ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है कि जिंदल ग्रुप को गैर-कानूनी तरीके से ज़मीन देने वाली हरीश रावत सरकार की नाक में तीन महीने से दम हुआ पड़ा है। ग्रामीणों ने इस मसले पर जिंदल ग्रुप के खिलाफ़ एक मुकदमा किया हुआ था। निचली अदालत ने जिंदल के खिलाफ़ फैसला देते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दी।</p>

Abhishek Srivastava : उत्तराखंड में आंदोलनों से जुड़े लोग पीसी भाई यानी पी.सी. तिवारी, उत्‍तराखण्‍ड परिवर्तन पार्टी के अध्‍यक्ष को बखूबी जानते हैं। पी.सी. तिवारी ने अल्‍मोड़ा के द्वारसो गांव में ज़मीन की लूट के खिलाफ़ ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया है कि जिंदल ग्रुप को गैर-कानूनी तरीके से ज़मीन देने वाली हरीश रावत सरकार की नाक में तीन महीने से दम हुआ पड़ा है। ग्रामीणों ने इस मसले पर जिंदल ग्रुप के खिलाफ़ एक मुकदमा किया हुआ था। निचली अदालत ने जिंदल के खिलाफ़ फैसला देते हुए निर्माण कार्य पर रोक लगा दी।

फिर वही होना था जो आज हुआ। थोड़ी देर पहले पीसी भाई, रेखा धस्‍माना और अन्‍य के ऊपर जिंदल के गुंडों ने जानलेवा हमला कर दिया, ऐसी खबर आई है। योजना जान से मारने की थी लेकिन वे बाल-बाल बच गए हैं। फिलहाल वे लोग द्वारसो गांव में हैं। रानीखेत एसडीएम मौके पर पहुंच चुके हैं। सारी मारपीट नवीन जिंदल के भतीजे प्रतीक जिंदल के कहने पर उनकी आंखों के सामने उनके गुंडों ने उन्‍हीं के परिसर में की है।

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उत्‍तराखण्‍ड परिवर्तन पार्टी के अध्‍यक्ष पी.सी. तिवारी से अभी तफ़सील से फोन पर बात हुई। वे लोग अल्‍मोड़ा के रास्‍ते में थे। पुलिस ने नारा लगा रहे धरनारत गांव वालों के साथ तिवारी को भी हिरासत में ले लिया है और अल्‍मोड़ा लेकर जा रहे हैं। हलद्वानी के पत्रकार संजय रावत के मुताबिक द्वारसो गांव से कोई 30 लोगों को पुलिस ने करीब आधे घंटे पहले उठाया था, हालांकि पी.सी. तिवारी का कहना है कि उनके साथ करीब पंद्रह लोग हिरासत में लिए गए हैं जिन्‍हें अल्‍मोड़ा ले जाया जा रहा है। बाकी लोगों का कोई पता नहीं है।

तिवारी और अन्‍य का मेडिकल हो गया है। उनके मुताबिक पटवारी क्षेत्र डीडा के थाने में प्रतीक जिंदल, उसके सहयोगी प्रेमपाल और अन्‍य के खिलाफ जानलेवा हमले की एफआइआर लिखवा दी गई है। तिवारी ने बताया कि गांव वालों द्वारा जिंदल के खिलाफ दायर मुकदमे में चूंकि वे खुद वकील हैं, लिहाजा कल आए कोर्ट के आदेश की तामील करवाने के लिए वे अदालत के कर्मचारी देवीदत्‍त के साथ दिन में जिंदल के स्‍कूल परिसर में गए थे जहां उन्‍हें बंधक बना लिया गया और प्राणघातक हमला किया गया।

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इस बीच, कैलाश पांडे ने सूचित किया है कि भाकपा (माले) जिला- अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड) ने डीडा नैनीसार में पी.सी.तिवारी और रेखा धस्माना के साथ जिन्दल कम्पनी के कारिंदों द्वारा की गयी मारपीट व दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा करते हुए मांग किया है कि जिंदल कम्पनी के ऐसे आरोपी लोगों पर आपराधिक मामला दर्ज करते हुए उनकी तत्काल गिरफ़्तारी की जाय. माले की प्रेस रिलीज में आगे जो लिखा गया है, वह इस प्रकार है-

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”डीडा नैनीसार में गाँव की वन पंचायत की भूमि को जिंदल समूह को दिए जाने के खिलाफ वहां किसानों का आन्दोलन शुरू से ही चल रहा है और राज्य सरकार इस आन्दोलन के दमन पर शुरू से ही आमादा है. आंदोलनरत सैकड़ों किसानों व उनके अगुवा नेताओं पर संगीन धाराओं में मुक़दमे लाद दिए गए हैं. और अब तो हद हो गयी है जब सीधे आन्दोलनकारी नेताओं पर हमला किया जा रहा है. ऐसा लगता है उत्तराखण्ड की हरीश रावत सरकार बड़े जमीन लुटेरों और खनन माफिया के हाथ की कठपुतली बन कर रह गयी है. आन्दोलन के बूते बना यह राज्य जमीन की लूट और राज्य दमन का पर्याय बन गया है. कांग्रेस-भाजपा बारी-बारी से चलने वाले अपने राज में उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा-भूमि, खनिज, नदियों आदि को ठिकाने लगाने के लिए रास्ता तलाश करने वाली एजेंसी में बदल गए है. ऐसे में सभी जनवादी-लोकतांत्रिक शक्तियों को इस लूट और दमन के खिलाफ एकताबद्ध होकर लड़ना वक्त की मांग है.”

जनसरोकारी पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

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