क्रशर माफिया से जूझ रहे उत्तरांचल के ग्रामीणों पर लाठीचार्ज हुआ। सीता देवी, हेमंती देवी, दस-दस दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठीं, लेकिन अपने को जनता का हितैषी बाताने वाले श्रीनगर, गढ़वाल, उतराखंड के इलैक्ट्रानिक मीडिया ने अपने कैमरे कभी भी इन पीड़ित ग्रामीणों की ओर नहीं घुमाये। घुमाये भी तो उसे प्रसारण के लिए नहीं भेजा। भेजें भी कैसे, नगर के अधिकांश इलैक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार क्रशर माफिया के मित्र जो ठहरे। जी हां श्रीनगर से लगे टिहरी जिले के मलेथा गांव में जल-जगंल-जमीन के खिलाफ पिछले आठ महीने से एक आन्दोलन चल रहा है।
पूरा आन्दोलन वीरशिरोमणि माधो सिंह भण्डारी के गांव में सरकार से अनुमति प्राप्त पांच स्टोन क्रेशरों के विरोध मे ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार के पर्यटन मन्त्री की पार्टनरशिप में भी एक क्रशर यहां चल रहा है। यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार इतने बड़े विरोध के बावजूद स्टोन क्रेशरों को बन्द करने का कोई ठोस फैसला नहीं ले पा रही है। पांच हजार से ज्यादा आबादी वाले इस गांव की महिलाएं पिछले आठ महीनों से रात दिन सड़कों पर गुजारने के लिए मजबूर हैं लेकिन टीवी पत्रकारों ने इनकी और ध्यान देने से इंकार कर दिया। युवा समीर रतूड़ी 15 दिन भूख हड़ताल कर चुके हैं और 5 दिन से अन्न जल भी त्याग कर धरने पर बैठे हुए हैं। पिछले शनिवार को यहां पुलिस ने निहत्थे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज भी किया लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे दिखाना ठीक नहीं समझा।
उत्तराखंड में खुद को नंबर वन बताने वाले रीजनल चैनल का रिपोर्टर तो इस आन्दोलन के बिल्कुल खिलाफ है। श्रीनगर व कीर्तिनगर में तैनात इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के रिपोर्टर इन क्रेशर मालिकों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं, जिनको महीने-महीने की तनख्वाह क्रशर के मालिक भिजवा रहे हैं। इन 5 क्रेशरों में से एक क्रेशर में नंबर वन का दम भरने वाले टीवी के रिपोर्टर की पार्टनर शिप भी है जिसके चलते अन्य चैनल के पत्रकार भी अपनी मित्रता निभा रहे हैं। ऐसे में खबर चलाना व न चलाना भी यही तय करते हैं।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
मूल खबर ये है…