अखबार मालिकों की कोशिशों पर भारी पड़ी शासन से शिकायत, पीठासीन अधिकारी के छुट्टी के निर्णय को राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया
उत्तर प्रदेश के बरेली में श्रम न्यायालय में चल रहे मजीठिया के केसों में तीन दिन पहले पीठासीन अधिकारी ने माह जून में सुनवाई की तारीखें देने से यह कहकर इनकार कर दिया कि श्रम न्यायालय में केसों के पैरोकारों ने जून में कार्य करने में असमर्थता जता दी है।
पीठासीन अधिकारी के इस फैसले से अखबार मालिकों के चेहरे खिल गए कि उनको केस लटकाने को एक माह का और समय मिल गया।
दरअसल 26 मई को बरेली श्रम न्यायालय में हिन्दुस्तान बरेली के वरिष्ठ उप संपादक राजेश्वर विश्वकर्मा के मजीठिया क्लेम पर सुनवाई के बाद जब अगली तिथि 3 जुलाई नियत की गई तो राजेश्वर विश्वकर्मा के वकील मनोज शर्मा ने साफ कहा कि मजीठिया केसों की सुनवाई माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हर हाल में छह माह के अंदर पूरी होनी है। ऐसे में लंबी तारीख दिए जाने का क्या औचित्य है?
पीठासीन अधिकारी ने ये कहकर जून में सुनवाई करने से साफ मना कर दिया कि जो लोग उनके न्यायालय में केसों की पैरवी करते हैं, उन पैरोकारों ने माह जून में अन्य कोर्टों के बंद रहने की बात कहकर श्रम न्यायालय में पैरवी में आने में असमर्थता व्यक्त की है।
जून माह में श्रम न्यायालय में कामकाज ठप रहने की शिकायत मुख्यमंत्री के पोर्टल पर होते ही श्रम विभाग में हड़कंप मच गया। शिकायत में कहा गया कि श्रम न्यायालय राज्य सरकार की घोषित अवकाश सूची से चलेगा ना कि हाईकोर्ट की अवकाश सूची से।
पीठासीन अधिकारी ने अखबार मालिकों के दबाव में जून में कार्य ना करने का निर्णय लिया ताकि मजीठिया के केस लटके रहें जबकि बरेली बार ने भी श्रम न्यायालय में माह जून में सुनवाई स्थगित रखने का कोई अनुरोध नहीं किया है।
शिकायत पर प्रमुख सचिव (श्रम), श्रमायुक्त, मंडलायुक्त बरेली ने मामला उप श्रमायुक्त बरेली को रेफर कर शिकायत निस्तारित करने को कहा।
जून में श्रम न्यायालय में मजीठिया केसों की सुनवाई स्थगित रखने पर बवाल होता देख पीठासीन अधिकारी ने गुरुवार को फैसला वापस ले लिया। जाहिर है कि अब माह जून में बरेली लेबर कोर्ट मजीठिया केसों की सुनवाई जारी रखेगा।