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उत्तर प्रदेश

यूपी कैडर के वरिष्ठ आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने लोकतंत्र और चोरतंत्र के बीच अंतर समझाया

Surya Pratap Singh : लोकतंत्र (DEMOCRACY) और चोर-तंत्र (KLEPTOCRACY) का रोचक अंतर… लोकतंत्र का सीधा मतलब है – लोगों के लिए, लोगों के द्वारा, लोगों की सरकार है. लोगों के लिए सरकार का मतलब: सरकार का एकमात्र उद्देश्य जनसामान्य की प्राथमिकताएं व आकांक्षाओं को पूरा करना. लोगों के द्वारा सरकार का मतलब: सरकार लोगों के द्वारा चुनी जाये तथा चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो. लोगों की सरकार का मतलब: सरकार में मंत्री गण या चलाने वाले सही मायने में लोगो के बीच से हों- जनता सच्चे व् ईमानदार व्यक्ति को ही अपना मंत्री देखना चाहती है जो सद्चरित्र भी हों.

<p>Surya Pratap Singh : लोकतंत्र (DEMOCRACY) और चोर-तंत्र (KLEPTOCRACY) का रोचक अंतर... लोकतंत्र का सीधा मतलब है - लोगों के लिए, लोगों के द्वारा, लोगों की सरकार है. लोगों के लिए सरकार का मतलब: सरकार का एकमात्र उद्देश्य जनसामान्य की प्राथमिकताएं व आकांक्षाओं को पूरा करना. लोगों के द्वारा सरकार का मतलब: सरकार लोगों के द्वारा चुनी जाये तथा चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो. लोगों की सरकार का मतलब: सरकार में मंत्री गण या चलाने वाले सही मायने में लोगो के बीच से हों- जनता सच्चे व् ईमानदार व्यक्ति को ही अपना मंत्री देखना चाहती है जो सद्चरित्र भी हों.</p>

Surya Pratap Singh : लोकतंत्र (DEMOCRACY) और चोर-तंत्र (KLEPTOCRACY) का रोचक अंतर… लोकतंत्र का सीधा मतलब है – लोगों के लिए, लोगों के द्वारा, लोगों की सरकार है. लोगों के लिए सरकार का मतलब: सरकार का एकमात्र उद्देश्य जनसामान्य की प्राथमिकताएं व आकांक्षाओं को पूरा करना. लोगों के द्वारा सरकार का मतलब: सरकार लोगों के द्वारा चुनी जाये तथा चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो. लोगों की सरकार का मतलब: सरकार में मंत्री गण या चलाने वाले सही मायने में लोगो के बीच से हों- जनता सच्चे व् ईमानदार व्यक्ति को ही अपना मंत्री देखना चाहती है जो सद्चरित्र भी हों.

चोर-तंत्र या कुलीन-तंत्र का मतलब है: लोकतंत्र की आड़ में सत्ता ऐसे लोगो के हाथ में चली जाये जो राज्य के प्राकृतिक संसाधनों (बालू, खनन, कोयला आदि) तथा राजकीय कोष जनता के हित में न उपयोग करके निजी हित को सर्वोपरि मान कर खर्च करे. इसमें परिवारवाद, जातिवाद, भाई भातीजावाद, क्षेत्रवाद व राजनैतिक तथा प्रशासनिक अधिकारियों की दुरभि संधि जैसे दोष साधारणतया प्रभावी होतें है. सभी निर्णय इन्ही दोषों के अधीन होते हैं. सत्ता में स्थित लोगों द्वारा सार्वजनिक धन के स्वार्थीपूर्ण दुर्विनियोजन, धोखाधड़ी,भ्रष्टाचार प्रणालीगत गंभीर समस्या बन जाती है, और जनभावनायों का अपमान होता है. इस व्यवस्था से अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है तथा नागरिक अधिकारों का हनन आम बात हो जाती है. लेकिन ये सब होता है लोकतंत्र की आड़ में ही. यानि बाहर से लोकतंत्र तथा अन्दर से चोर-तंत्र का दंश. सत्ता कुछ मुठ्ठी भर राजनेताओं व प्रशासकों या उनके पारिवारिक सदस्यों तक सिमट कर रह जाती है.

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आप निर्णय करें कि आज की स्थिति क्या है?

यदि आज महात्मा गाँधी होते तो, अश्रु नयन के साथ दुखी होते.
आज के परिवेश में गाँधी की विरासत के निम्न पहलू केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं.
पहला – अन्यायपूर्ण क़ानूनों या सत्तावादी सरकारों का अहिंसक विरोध
दूसरा – दो धर्मों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा और धार्मिक सहिष्णुता
तीसरा – एक ऐसा आर्थिक ढाँचा जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करे
चौथा- सार्वजनिक बहस में शालीनता और सार्वजनिक लेन-देन में व्यक्तिगत पारदर्शिता
पांच – जाति और लैंगिक समानता
गाँधी जी ने क्या सोचा था किआज हम कंहा पहुच गए? – आकंठ हिंसा, दुराचार,भ्रस्टाचार, जातिवाद ,परिवारवाद आदि आदि……क्या नहीं है आज|
महात्मा गाँधी ने राजनीतिक जीवन में सदाचार, सच्चाई और ईमानदारी पर ज़ोर दिया था| उन्होंने ग़रीब तबक़े के विकास को सच्चा विकास कहा, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जातिवाद और हिंसा से दूर रहने का सबक़ सिखाया.
आज यंहां राजनीतिक जीवन में ईमानदारी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती. विकास हो रहा है लेकिन ग़रीबों और पिछड़ों का नहीं बल्कि महानगरों में रहने वाले मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लोगों का. हिंसा, भ्रष्टाचार और जातिवाद हमारी बड़ी समस्याएँ हैं. नैतिकता और आदर्श आज सिर्फ़ एक कहानी बन कर रह गए हैं.

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