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उत्तर प्रदेश

मेरठ के जुझारू कामरेड चरण शांडिल्य नहीं रहे

मेरठ : प्रसिद्ध श्रमिक और वामपंथी नेता चरण सिंह शांडिल्य का गत छह अप्रैल की रात गाजियाबाद में निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। कामरेड शांडिल्य मेरठ जनपद के सरधना तहसील के कक्केपुर गांव में एक बड़े जमीदार परिवार में 12 फरवरी सन 1940 में जनमे थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। आगे की उच्च शिक्षा के लिए मेरठ कालेज में दाखिला लिया। यहीं इनका झुकाव देश में चल रहे कम्युनिस्ट आंदोलन की तरफ हुआ। 

<p><span style="line-height: 1.6;">मेरठ : प्रसिद्ध श्रमिक और वामपंथी नेता चरण सिंह शांडिल्य का गत छह अप्रैल की रात गाजियाबाद में निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। </span>कामरेड शांडिल्य मेरठ जनपद के सरधना तहसील के कक्केपुर गांव में एक बड़े जमीदार परिवार में 12 फरवरी सन 1940 में जनमे थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। आगे की उच्च शिक्षा के लिए मेरठ कालेज में दाखिला लिया। यहीं इनका झुकाव देश में चल रहे कम्युनिस्ट आंदोलन की तरफ हुआ। </p>

मेरठ : प्रसिद्ध श्रमिक और वामपंथी नेता चरण सिंह शांडिल्य का गत छह अप्रैल की रात गाजियाबाद में निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे। कामरेड शांडिल्य मेरठ जनपद के सरधना तहसील के कक्केपुर गांव में एक बड़े जमीदार परिवार में 12 फरवरी सन 1940 में जनमे थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। आगे की उच्च शिक्षा के लिए मेरठ कालेज में दाखिला लिया। यहीं इनका झुकाव देश में चल रहे कम्युनिस्ट आंदोलन की तरफ हुआ। 

उन्होंने छात्र आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। यह आॅल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन के प्रांतीय अध्यक्ष रहे। इन्होंने आईआईटी रुड़की से बीईई की पढ़ाई की लेकिन देश में उस दौरान चल रहे सामाजिक परिवर्तनों के आंदोलन में ही सक्रिय होते हुए गाजियाबाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन से जुड़ गए। इस दौरान अनेक बार जेल गए। गुजरात में हुए छात्र-नवनिर्माण आंदोलन में महती भूमिका निभाई। 

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उन्होंने 1971 में नक्सलवाद के नाम पर बंद किए गए बेगुनाहों के लिए ‘रिहाई मंच’ संगठन बनाकर आंदोलन चलाया। इस आंदोलन की वजह से देशभर से लगभग 35 हजार लोग जेल से रिहा हुए। चीन एक पड़ोसी देश होने के नाते उससे वह मैत्रीपूर्ण संबन्ध बनाने के पक्षधर थे। वे चीन भी कई बार गए। भारत-चीन विवाद के ऊपर देश में पहली किताब ‘भारत-चीन सीमा विवाद’ लिखा, जो भारत के साथ-साथ चीन में भी बहुत सराही गई। इस किताब पर कई विश्वविद्यालयों में शोध भी हो चुके हैं।

 इसके अलावा उनकी ‘काम से राम तक’ किताब भी बहुत प्रसिद्ध हुई। उन्होंने सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर कई किताबें लिखीं। सन् 1985 में हृदय की बीमारी के कारण जनांदोलनों में सक्रियता कम हो गई। स्वास्थ्य में थोड़ा भी सुधार होने पर वह जनआंदोलनों में सक्रिय हो जाते थे। इस समय वह डा. भीमराव अम्बेडकर पर किताब लिख रहे थे लेकिन वह पूरा न हो सकी। 

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