भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर की रासुका अवधि बढ़ाया जाना दलित दमन का प्रतीक
लखनऊ : पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं जन मंच उत्तर प्रदेश के संयोजक एसआर दारापुरी का कहना है कि योगी सरकार दलितों के प्रतिरोध से बुरी तरह डरी हुई है. यही कारण है कि भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर की रासुका अवधि बार बार बढ़ाई जा रही है. यह सब कुछ दलित दमन का प्रतीक है.
दारापुर ने कहा है कि चंद्रशेखर पर गत वर्ष रासुका उस समय लगाया गया था जब उसे इलाहाबाद हाई कोर्ट से ज़मानत मिल गयी थी क्योंकि न्यायालय ने माना था कि उसके ऊपर लगाये गये आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। इस कार्रवाई से स्पष्ट हो गया था कि योगी सरकार चन्द्रशेखर को किसी भी हालत में जेल से बाहर नहीं आने देना चाहती, क्योंकि उसे डर है कि उसके बाहर आने से दलित वर्ग के भाजपा के विरुद्ध लामबंद हो जाने की सम्भावना है।
इसे रोकने तथा भीम आर्मी को ख़त्म करने के इरादे से सरकार ने चन्द्रशेखर पर रासुका लगा कर तानाशाही का परिचय दिया था। इसी ध्येय से सरकार ने भीम आर्मी के लगभग 40 सदस्यों जिनमें अधिकतर छात्र हैं, पर19 मुक़दमे लाद दिए थे जो काफी समय जेल में रह कर जमानत पर रिहा हुए हैं और उन पर मुकदमे चल रहे हैं.
इसके बाद अब तक योगी सरकार चंद्रशेखर पर रासुका की अवधि 2 बार बढ़ा चुकी है जिसके फलस्वरूप वह लगभग एक साल से जेल में है. हाल में ही भीम आर्मी के एक अन्य सदस्य की गिरफ्तारी भी की गयी है.
यह उल्लेखनीय है कि एक तरफ योगी दलित के घर खाना खाने का नाटक करते हैं और आंबेडकर महासभा के स्वयंभू अध्यक्ष लालजी निर्मल उसे दलित मित्र का सम्मान देते हैं, वहीं दूसरी ओर हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद चंद्रशेखर पर रासुका लगा कर दूसरी बार उसकी अवधि बढ़ाई जाती है. इसके इलावा शब्बीरपुर में सामंती हिंसा का शिकार हुए 2 दलित भी लगभग एक साल से जेल में हैं जिन पर रासुका लगा हुआ है.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि योगी सरकार पूरी तरह से दलित दमन पर उतरी हुयी है. इसकी अग्रिम पुष्टि 2अप्रैल को भारत बंद जिसमें दो दलित लड़के पुलिस की गोली से मारे गये थे और आन्दोलनकारियों की निर्मम पिटाई की गयी थी तथा पुलिस द्वारा हजारों दलितों पर मुक़दमे दर्ज करके गिरफ्तारियां की जा रही हैं, से भी होती है.
इससे यह भी स्पष्ट है कि योगी सरकार दलितों के प्रतिरोध से बुरी तरह से डरी हुयी है. अतः जन मंच यह मांग करता है कि चंद्रशेखर पर लगाया गया रासुका तुरंत समाप्त किया जाये, 2 अप्रैल के बंद को लेकर फर्जी मुकदमों में गिरफ्तार किये गये सैंकड़ों दलितों को रिहा किया जाए और उन पर लगाये गये मुकदमें वापस लिए जाएँ तथा मृतकों के परिजनों को 20- 20 लाख का मुयाव्ज़ा दिया जाये. इसके साथ ही अध्यादेश ला कर एससी/एसटी एक्ट की बहाली भी की जाए.