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अखिलेश ने रोका न होता तो आजम खान ने ‘आजतक’ के कई वर्तमान-पूर्व पत्रकारों को जेल भेजने की व्यवस्था कर दी थी

राहुल कंवल, पुण्य प्रसून, गौरव सावंत, दीपक शर्मा सहित कई पत्रकारों पर दंगा भड़काने की धाराएं लगाने की सिफारिश

यूपी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री आजम खान बुधवार को इतिहास बनाते बनाते रह गये. अगर उनका बस चला होता तो देश के 10 से ज्यादा पत्रकार दंगे कराने के जुर्म में आज जेल में होते. इनमें राहुल कंवल, गौरव सावंत, पुण्य प्रसून बाजपेई, मनीष, दीपक शर्मा, हरीश शर्मा और अरुण सिंह प्रमुख हैं. आज़म खान नगर विकास के साथ साथ संसदीय कार्य मंत्री भी हैं. मुज़फ्फरनगर दंगों पर दिखाय गये एक स्टिंग ऑपरेशन में जब उनका नाम उछला था तो संसदीय कार्य मंत्री ने बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्या से मिलकर एक जांच समिति बना दी थी.

राहुल कंवल, पुण्य प्रसून, गौरव सावंत, दीपक शर्मा सहित कई पत्रकारों पर दंगा भड़काने की धाराएं लगाने की सिफारिश

यूपी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री आजम खान बुधवार को इतिहास बनाते बनाते रह गये. अगर उनका बस चला होता तो देश के 10 से ज्यादा पत्रकार दंगे कराने के जुर्म में आज जेल में होते. इनमें राहुल कंवल, गौरव सावंत, पुण्य प्रसून बाजपेई, मनीष, दीपक शर्मा, हरीश शर्मा और अरुण सिंह प्रमुख हैं. आज़म खान नगर विकास के साथ साथ संसदीय कार्य मंत्री भी हैं. मुज़फ्फरनगर दंगों पर दिखाय गये एक स्टिंग ऑपरेशन में जब उनका नाम उछला था तो संसदीय कार्य मंत्री ने बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्या से मिलकर एक जांच समिति बना दी थी.

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इस जांच समिति ने आजतक और इंडिया टुडे के 10-12 पत्रकारों पर दंगा कराने का मामला दर्ज करवाने की संस्तुति कर दी. परसों सदन में जांच समिति की रिपोर्ट पटल पर रखी जानी थी. इसकी कुछ प्रतियाँ लखनऊ के कुछ पत्रकारों को मिली हैं. इस जांच रिपोर्ट में ऊपर दिए गये पत्रकारों पर आईपीसी की धारा 153A, 195A, 295A, 200 (दंगा कराने से जुडी) के तहत मुकदमा दर्ज कराने की सिफारिश की गयी है. यही नहीं 463, 464, 465, 471 के तहत भी मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की गयी. ये धाराएं स्टिंग ऑपरेशन में तथ्यों को सरकार के खिलाफ तोड़ मरोड़ कर पेश करने की हैं जबकि गांधीनगर फॉरेंसिक लैब के वैज्ञानिक विधान सभा में बयान दे चुके थे कि स्टिंग ऑपरेशन में कोई छेड़छाड़ या किसी दूसरे की आवाज़ नहीं डाली गयी. गांधीनगर के इस रिपोर्ट के अहम तथ्यों को नज़र अंदाज़ करके शुरू में कराई गयी हैदराबाद लैब की आधी अधूरी रिपोर्ट को उलेखित किया गया है.

आजतक के एक पूर्व अधिकारी को भी जांच समिति ने बुलाया. इस पूर्व अधिकारी (पत्रकार) ने आजतक के बारे में खूब उलटे सीधे बयां दिए और बाद में आज़म खान से कहा कि बेहतर होगा वो आज के दौर में खुद अपना चैनल लें जो अप्ल्संख्यक पक्ष को रखे. इस पत्रकार ने आज़म खान के चेलों को न्यूज़ चैनल का बजट तक दिया. इसका विरोध समिति के एक विधायक ने किया. समिति के कुछ और सदस्य ने भी आज़म खान के दबाव का भीतर ही भीतर विरोध किया और कहा कि जब दंगा खत्म होने पर दंगे का कारण जानने के लिए स्टिंग किया गया है तो पत्रकारों पर दंगे के आरोप लगाना गलत होगा. और अगर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया तो सरकार की थू थू होगी. वैसे भी पत्रकारों के उत्पीडन के कई मामले यूपी में सुर्ख़ियों पर रहे हैं.

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चौकाने वाली बात ये है कि जांच रिपोर्ट में स्टिंग करने वाले पत्रकार और जिन अफसरों का स्टिंग किया गया, दोनों पर ही कारवाई करने की संस्तुति की गयी है. सूत्रों ने बताया कि आज़म को एक वरिष्ठ नेता ने समझाया कि अगर स्टिंग से अलग हटकर प्रोग्राम में उनका नाम ये कहकर उछाला गया कि उन्होंने कुछ अफसरों पर दबाव डाला है और इस बात के सबूत नहीं है तो इसके लिए दोनों चैनलों पर खंडन चलाने के निर्देश समिति को देने चाहिए. लेकिन आज़म खान ने इस सलाह को खारिज करके कहा कि वो सभी पत्रकारों पर दंगा कराने का केस चलाएँगे और विधान सभा के भीतर मानहानि का मामला बना कर सजा भी देंगे. विधान सभा के विधि सलाहकारों ने आज़म खान को फिर सलाह दी कि जो धाराएं वो पत्रकारों पर लगा रहे हैं वो अदालत खारिज करके सरकार पर उल्टा टिप्प्णी करेगी और कहीं पूरे मामले की जांच सीबीआई को चली गयी तो लेने के देने पड़ेंगे क्यूंकि सीबीआई अब मोदी की हाथ में है और आज़म खान और अखिलेश सरकार पर सुप्रीम कोर्ट मुज़फ्फरनगर दंगो को लेकर पहले से विपरीत टिप्पणी कर चुकी है.

सूत्रों के मुताबिक इस सत्र में जिद पर अड़े आज़म खान ने हफ्ते भर में जांच रिपोर्ट तैयार करवाई और स्पीकर से कह कर उसे 26 अगस्त को कार्य सूची में डलवा दिया. रात में जब मुख्य मंत्री अखिलेश यादव को पत्रकारों पर लगी दंगे की धाराएं बताई गयीं तो चौंक गए. मुख्यमंत्री ने स्पीकर से बात करके रिपोर्ट को अगले सेशन के लिए टलवा दिया. फिलहाल आज़म खान अभी अपनी बात पर अड़े हैं और पत्रकारों को जेल भेजने के लिए वो विधानसभा समिति को पत्र भी लिख चुके हैं. उधर चर्चा है कि समिति में फूट पड़ गयी है. भाजपा के विधायक ने पहले ही समिति का बहिष्कार कर दिया था. अब दो सदस्यों का कहना है कि सारे फैसले सिर्फ तीन विधायकों दिलनवाज़ खान, इरफ़ान और सुदेश शर्मा ने लिए हैं, इसलिए वे पत्रकारों को गलत फंसाने की जिम्मेदारी खुद नहीं लेना चाहते.

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भड़ास के संपादक यशवंत सिंह की रिपोर्ट. संपर्क: [email protected]

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0 Comments

  1. RAMAWTARGUPTA

    August 28, 2015 at 12:46 pm

    vinash kale wiprit budhdhi

  2. abhishek

    August 28, 2015 at 1:49 pm

    vaise ghtna dukhad hain par in maadarchodh dalaalon ko saja honi chaahiye joki patrkaaron ko randee bana dete hain aur imaandaar patrkaaron se yah grahna karte hain . aajatak ne jo apne stringer bana rakhe hain vah karodhon ke maalik kaise ban gaye hain .

  3. purushottam apsnora

    August 30, 2015 at 3:26 pm

    ahankar mai doobe neta kuchh bhi karne ko aatur hain.

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