अगर मुजफ्फरनगर दंगा स्टिंग फर्जी था तो अफसरों और पुलिस वालों को सरकार ने सस्पेंड क्यूं किया…
Deepak Sharma : भड़ास4मीडिया वेबसाइट से मालूम हुआ कि आज़म खान साहब ने मेरे ऊपर कई मुक़दमे दर्ज कराये हैं. यह भी पता लगा कि विधान सभा की 2013 में गठित की गयी जांच समीति ने मुज़फ्फरनगर दंगो पर आजतक के दिखाए स्टिंग ऑपरेशन पर रिपोर्ट बना ली है. सवाल मुझे जेल भेजने का नहीं है. अगर 13 साल आजतक में नौकरी की है तो फिर किसी बड़े मसले पर जेल या मुक़दमे पर पीछे हट जाना तो कोई बात नही हुई. भले ही आप अब ‘आजतक’ की जगह ‘इंडिया संवाद’ में हो.
सवाल ये भी नही कि विधान सभा की जांच समिति के आगे कौन डरा? किसने सच बोला? किसने समझौता किया? ये सवाल ज़मीर से जुड़े होते हैं और ज़मीर वाले ही समझ सकते हैं. सवाल ये भी नही है किस पुलिस वाले ने आज़म साहब का नाम लिया.. किसने पूछा था.. किसने आजम खान के नाम पर बीप लगाई और किसने बीप हटा दी? ये सवाल पूर्वाग्रहों के संग्राम में माने नही रखते. सवाल ये भी नही कि ख़ुफ़िया कैमरा मेरे दो सहयोगी हरीश और अरुण के हाथ में था या मेरे? स्टिंग के मौके पर कौन था और पीछे कौन?
असली सवाल ये है कि क्या स्टिंग ऑपरेशन फर्जी था? क्या नकली पुलिस वालों SP, SDM,CO और इंस्पेक्टरों का स्टिंग किया गया था? क्या ये पुलिस वाले और अधिकारी वही थे जो दंगो के वक़्त वहां तैनात थे. और चाहे हिन्दू हो या मुसलमान ..जो भी बेगुनाह मरे उन मौतों को ये रोक न सके? क्या ओपन कैमरा या माइक पर ये कभी बोलते? क्या इतनी बेहगुनाह मौतों का सच जानने के लिए इन अधिकारियों का स्टिंग नही करना चाहिये था? अगर स्टिंग फर्जी था तो इन राजपत्रित अधिकारियों और पुलिस वालों को सरकार ने सस्पेंड क्यूँ किया?
सस्पेंड होने के बावजूद इन्होंने ‘आजतक’ पर तब कोई मुकदमा कोई नोटिस कोई शिकायत क्यूँ नहीं की? अगर ‘आजतक’ को नहीं कर सकते थे तो अपने DIG या IG को लिखित रूप में क्यूँ नहीं बताया कि उनका स्टिंग फर्जी किया गया है? घटना के दो साल बाद अब रिपोर्ट लिखाना कि स्टिंग में तथ्य सही पेश नही किये गये.. इसका क्या मतलब है? रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि छुपा कर ख़ुफ़िया कैमरा रखा गया और बातचीत रिकॉर्ड कर ली गयी. मित्रों एक तरफ वो इसे स्टिंग ऑपरेशन मान रहे हैं और दूसरी तरफ कह रहे हैं कि छुपा कर रिकॉर्डिंग की गयी. दुनिया में ऐसा कौन सा स्टिंग ऑपरेशन है जो बता कर किया गया है.
खबर दिखाने के दो साल बाद इन अधिकारियों ने आरोप लगाया गया कि स्टिंग ऑपरेशन में कही गयी बातों को एडिट किया गया.. तथ्यों को तोडा मरोड़ा गया.. दूसरी आवाज़ डाल दी गयी.. विधान सभा की जांच समिति की रिपोर्ट में ही कहा गया है कि गांधीनगर के फॉरेंसिक लैब के वरिष्ठ वैज्ञानिक और देश के सबसे बड़े विडियो फॉरेंसिक एक्सपर्ट एच जे त्रिवेदी ने ब्यान दिया कि खबर में जो फुटेज चलाई गयी है उसमे एडिटिंग नही है.. वो कंटीन्यूटी में है.. जो भी फुटेज उपलभ है उसमे छेड़छाड़ नही है. त्रिवेदी जी के इस ब्यान से क्या साबित होता है? फिर उसके बाद भी फर्जी स्टिंग की बात क्यूँ?
दरअसल त्रिवेदी जी का बयान 15 अक्टूबर 2014 में हुए जबकि अफसरों के बयान 23 सितम्बर 2014 ..यानी महीने भर पहले ले लिए गये. जिन अधिकारीयों ने मनगढंत आरोप लगाए उसका खंडन महीने भर बाद वैज्ञानिक त्रिवेदी जी के जांच रिपोर्ट से होता है. अब मुकदमा लिखाते समय अफसरों ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया. या इन अधिकारियों पर दबाव हो सकता है मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का.
बहरहाल, मामला किसी बड़ी अदालत में आये तो तथ्य रखे जाएँ. अभी से सारी बातें रखने का क्या लाभ. अभी तो जेल जाने का वक़्त है. मैं फिलहाल आप सब से अनुरोध करूँगा मुझे कोई अच्छा वकील बताएं और हो सके तो मेरी मदद करें. घर के झगड़े या किसी निजी विवाद में फंसता तो आपसे मदद शायद न मांगता. आपके मन में इस स्टिंग को लेकर जो भी सवाल हों मैं फेसबुक पर जवाब के साथ हाज़िर हूँ.
वरिष्ठ खोजी पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से.
मूल खबर…
प्रयाग पाण्डे
August 21, 2015 at 2:57 pm
श्री दीपक शर्मा जी के खिलाफ अगर किसी भी किस्म को कोई कार्यवाही होती है , तो क्या इसे एक पत्रकार का उत्पीड़न नहीं माना जाना चाहिए ? मेरी राय में ऐसी सूरत में अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार संपादकों / पत्रकारों और पत्रकार यूनियनों को मजबूती के साथ श्री दीपक जी के पक्ष में खड़ा होना चाहिए । अगर भारत का पत्रकार समाज श्री दीपक जी के साथ खड़ा नहीं होता है तो भविष्य में प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात किस मुंह से कहेगा ?
उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार यूनियन श्री दीपक जी के किसी भी किस्म के उत्पीड़न का पुरजोर मुखालफत करेगी ।
यादवजी
August 23, 2015 at 12:34 am
यादव प्रदेश के करप्ट खानदान से और क्या उम्मीदें हैं…हम आपके साथ है सर.