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पत्रकार खुद को स्टिंग में फंसने से कैसे बचाएं

-हर्ष कुमार-

हाल ही में एक पुराने पत्रकार साथी का स्टिंग हुआ और उनकी नौकरी चली गई। इस वीडियो में मेरे 25 साल पुराने ये पत्रकार साथी एक काफी शॉप में खनन माफिया से 10 हजार रुपये लेते हुए कैमरे में कैद हो गए।

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ये वीडियो वायरल हो गया और उन्हें अमर उजाला अखबार ने निकाल दिया। केवल 10 हजार रुपये के लिए नौकरी चली गई और कैरियर चौपट हुआ वो अलग।

मुझे अफसोस इस बात का हुआ कि करोड़ों अरबों का घोटाला करने वालों को स्टिंग नहीं हो पाता लेकिन एक पत्रकार खनन माफिया से केवल 10 हजार रुपये लेता हुआ पकड़ा गया तो नौकरी गई। क्या पत्रकारों को ऊपरी कमाई का अधिकार नहीं?

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दरअसल गलती मेरे काबिल दोस्त की है और उनकी इस गलती से सब साथियों को सबक लेना चाहिए। इसके लिए भी एक SOP (Standard operating procedure) है।

जरा गौर फरमाएंः-

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  1. कभी भी पार्टी के बताए स्थान पर ना जाएं। उसे अपने बताए ठिकाने पर बुलाएं।
  2. मिलने के स्थान को बिल्कुल अंतिम क्षण पर बदल लें।
  3. इस बात का ध्यान रखें कि पार्टी के साथ कोई तीसरा शख्स आसपास तो नहीं है?
  4. जब भी इस तरह का पैसा आए तो आफिस के साथियों के साथ इसे शेयर जरूर करें। अकेले अकेले हड़पने की कोशिश न करें।
  5. कभी भी सीधे पैसा न लें, किसी तीसरे शख्स के खाते में डलवा लें या नकद ही किसी को दिलवा दें। बाद में उससे ले लें।
  6. फोन पर तो बिल्कुल भी डील फाइनल ना करें।
  7. माफियाओं से सावधान रहें, ये लोग केवल नेताओं व अफसरों को भाव देते हैं। पत्रकारों को पैसा देने में इनकी जान निकलती है।
  8. नेताओं को चुनाव के समय काटना बेहतर होता है। वरना 5 साल तक ये हाथ नहीं आते। इन पर जरा भी दया ना दिखाएं।

निजी अनुभव सेः

2012 में रिपोर्टिंग के दिनों में एक विधायक के बेटे ने चुनावी विज्ञापन की डील करने के लिए मुझे बुलाया तो डील की पेमेंट देते हुए बड़ा एहसान सा करने लगा।

मैंने कहा- कोई एहसान नहीं है। सब अखबारों को दे रहे हो, कोई निजी अहसान नहीं कर रहे।

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तब उसने एक गड्डी एक्सट्रा निकाली और बोला कि सर जी ये आपके लिए है, निजी।

यानी कहने का मतलब है ये है कि जो सब कर रहे हैं वो पत्रकारों ने भी कर लिया तो कौन सा गुनाह किया? वरना जो संस्थान 10 हजार रुपये के लिए पत्रकार को नौकरी से निकाल रहे हैं उनके संपादक खुद चुनाव के समय नेताओं व राजनीतिक दलों पर डील के लिए दबाव बनाते या गिड़गिड़ाते देखे हैं मैंने। कम से कम 5 संपादकों को जानता हूं जो खुद मैदान में दौड़ते देखे हैं मैंने।

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सीधी बात यह है कि जो सब कर रहे हैं उसे करने का हक पत्रकार को भी है। बस जो भी करें समझदारी से करें। स्टिंग तो हम करते हैं करवाते नहीं।

किसी को बुरी लगे बात तो क्षमा, पर दिल की बात कह रहा हूं।🙏🙏

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पत्रकार हर्ष कुमार की एफबी वॉल से।

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1 Comment

1 Comment

  1. ASHOK UPADHYAY

    October 17, 2020 at 2:41 pm

    वाह वाह , इसे कहते हैं सच्ची पत्रकारिता …..

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