ज़ी न्यूज़ के संस्थापक और मालिक सुभाष चंद्रा ने क्यों सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है..
“सबसे पहले तो मैं अपने वित्तीय समर्थकों से दिल की गहराई से माफी मांगता हूं। मैं हमेशा अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने में अव्वल रहता हूं। अपने फैसलों की जवाबदेही लेता रहा हूं। आज भी वही करूंगा। 52 साल के कैरियर में मैंने पहली बार मैं अपने बैंकर, म्यूचुअल फंड, गैर बैकिंग वित्तीय निगमों से माफी मांगने के लिए मजबूर हुआ हूं। मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा हूं। कोई अपना कर्ज़ चुकाने के लिए मुकुट का हीरा नहीं बेचता है। जब प्रक्रिया चल रही है तब कुछ शक्तियां हमें कामयाब नहीं होने देना चाहती हैं। यह कहने का मतलब नहीं कि मेरी तरफ से ग़लती नहीं हुई है। मैं उसकी सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूं। मैं हर किसी का कर्ज़ चुकाऊंगा।“
यह उस पत्र का हिस्सा है जिसे सुभाष चंद्रा ने अपने निवेशकों और बैंकरों को लिखा है। उनकी एस्सल इंफ्रा चार से पांच हज़ार करोड़ के घाटे में है। शेयर बेच कर कर्ज़ लेकर ब्याज़ और मूल चुका रहे हैं। उन्होंने लिखा कि बंटवारे के बाद ज़्यादार नए बिजनेस घाटे में रहे हैं। IL&FS का मुद्दा सामने आने पर स्थिति और बिगड़ गई है। आपको याद होगा कि IL&FS के बारे में मैंने लिखा था कि किस तरह इसके ज़रिए अनाप शनाप लोन बांटे गए जो वापस नहीं आए। हमने पिछले साल सितंबर में कस्बा पर लिखा था कि इसमें पेंशन फंड और भविष्य निधि का पैसा लगा है। अगर IL&FS डूबती है तो हम सब प्रभावित होने वाले हैं। अब सुभाष चंद्रा भी लिख रहे हैं कि इसके संकट ने उन्हें संकट में डाल दिया है। उनके पत्र की यह बात काफी महत्वपूर्ण है। IL&FS से कर्ज़ लेकर कई संस्थाएं अपना कर्ज़ चुकाती थीं। जब इन्होंने कर्ज़ नहीं चुकाया तो IL&FS ब्याज़ नहीं दे सकी और बाज़ार में संकट की स्थित पैदा हो गई।
सुभाष चंद्रा ने लिखा है कि उनके खिलाफ नकारात्मक शक्तियां प्रचार कर रही हैं। उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस से शिकायत की है मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ये नकारात्मक शक्तियां बैंकों को पत्र लिख देती हैं जिनका असर उनके वित्तीय लेन-देन के अवसरों पर पड़ता है। आज जब ज़ी एंटरटेनमेंट को बेचने की प्रक्रिया सकारात्मक मोड़ पर है और मैं लंदन से लौटा हूं तो नकारात्मक शक्तियों के कारण किसी ने हमारे शेयरों की कीमतों पर हमला कर दिया है।
अब इस पत्र को पढ़ने के बाद देखने गया कि ज़ी ग्रुप के शेयरों पर कौन हमला कर सकता है औऱ क्या हुआ है तो ब्लूमबर्ग की एक ख़बर मिली। एक ही दिन में एस्सल ग्रुप की कंपनियों के शेयर 18 से 21 प्रतिशत गिर गए और निवेशकों ने अपना 14,000 करोड़ निकाल लिया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि नोटबंदी के तुरंत बाद 3000 करोड़ रुपये जमा करने के मामले की जांच की बात सामने आई है। यह जांच SFIO (THE Serious Fraud Investigation Office) कर रहा है। ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि दि वायर की रिपोर्ट के कारण खलबली मच गई है।
अब मैं दि वायर की साइट पर गया तो वहां गुलाम शेख बुदान और अनुज श्रीवास की रिपोर्टिंग सीरीज़ देखी। वित्तीय रिपोर्टिंग में अनुवाद की असावधानी का ख़तरा रहता है इसलिए मैं फिलहाल यह कोशिश नहीं करूंगा पर चाहूंगा कि आपमें से कोई ऐसी ख़बरों को समझता हो तो इसके बारे में ख़ुद भी पढ़े और लिखे। कंपनियों के अकाउंट का अध्ययन करना और ग़लतियां पकड़ना सबके बस की बात नहीं है। पत्रकारों के लिए ऐसी खबरें करने के लिए विशेष योग्यता की ज़रूरत होती है। वर्ना कोर्ट कचहरी के चक्कर लग जाएंगे। आम तौर मैं ऐसी खबरों का अनुवाद कर देता हूं लेकिन इस खबर की जटिलता को देखते हुए दिमाग़ चकरा गया।
दि वायर ने लिखा है कि सार्वजनिक रूप से जो दस्तावेज़ उपलब्ध हैं उन्हीं के आधार पर छानबीन की गई है। यह भी साफ-साफ लिखा है कि नोटबंदी के बाद 3000 करोड़ जमा करने की जांच हो रही है। यह जांच निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है और न ही कार्रवाई हुई है। इसिलए आप निष्कर्ष से पहले इस रिपोर्ट को समझें तो ही बेहतर होगा।
अब अपने बारे में। मैं ज़ी न्यूज़ की पत्रकारिता और उसके कई प्रोग्रामों में सांप्रदायिक रंगों का आलोचक रहा हूं। और आलोचना सामने से करता हूं। ज़ी न्यूज़ की कई कार्यक्रमों में सांप्रदायिक टोन देखकर अपनी बेचैनी साझा करता रहा हूं और भारत के युवाओं से कहता भी रहा हूं कि कोई तुम्हें लाख कोशिश करें कि दंगाई बनो, मगर तुम हर हाल में डाक्टर बनो।
गोदी मीडिया के बारे में मेरी राय सार्वजनिक है और ऐतिहासिक भी। मैंने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर उन्हीं युवाओं के बीच जाकर कहा है जो मुझे मारने के लिए तैयार कर दिए गए थे। यही कि तुम डाक्टर बनो। दंगाई मत बनो। हर नागिरक को सांप्रदायिकता का विरोध करना चाहिए। मैं ज़ी की पत्रकारिता की आलोचना उनके मज़ूबत दौर में की है। प्रधानमंत्री मोदी ने पकौड़ा वाला इंटरव्यू देकर अपने पद की गरिमा गिरा दी थी। पत्रकारिता की गरिमा तो मिट्टी में मिल ही चुकी थी।
लेकिन मैंने अपने जीवन में एक और बात सीखी है। किसी के कमज़ोर वक्त में हमला नहीं करना चाहिए। सुभाष चंद्रा के लिए यह वाकई कमज़ोर वक्त रहा होगा। किसी के लिए सार्वजनिक रूप से ग़लती स्वीकार करना और माफी मांगना साधारण कार्य नहीं होता है। चाहे वो सामान्य नागरिक हो या पेशेवर अपराधी। जब भी कोई माफी मांगे, सुनने वाले को उदार होना चाहिए। हां यह ज़रूर है कि हम साधारण पाठक नहीं समझ सकते हैं कि ये ग़लती कानूनी रूप से अपराध है या नहीं।
सुभाष चंद्रा एक ताकतवर और संपन्न शख्स हैं। वे अपने चैनलों पर नैतिकता के पाठ भी पढ़ाते हैं। उनकी मास्टर क्लास चलती है। ऐसा शख्स इतनी बड़ी गलतियां कर गया कि आज उसकी कंपनी का अस्तित्व दांव पर है। अच्छा होगा कि सुभाष चंद्रा इस पर भी एक मास्टर क्लास करें कि कैसे उन्होंने बिजनेस में ग़लतियां की, कम से कम दि वायर वाली रिपोर्ट को ही अपने कार्यक्रम में समझा दें कि ये रिपोर्ट क्या है, कौन सी बात सही है, कौन सी बात ग़लत है। इसके लिए तो वायर के रिपोर्टर उन पर पक्का मानहानि नहीं करेंगे। जबकि मुझे यकीन है कि ऐसी रिपोर्ट करने पर दि वायर पर एक और मानहानि का दावा होने ही जा रहा होगा। बहरहाल मुझे सुभाष चंद्रा के मास्टर क्लास का इंतज़ार रहेगा। हालांकि उनका मास्टर क्लास बहुत बोरिंग होता है।
मैंने अपने जीवन में यही सीखा है। किसी के कमज़ोर वक्त में हमला नहीं करना चाहिए। मैं नई रिपोर्ट और 14000 करोड़ के नुकसान को लेकर कोई तल्ख बातें नहीं करूंगा। यह वाकई कमज़ोर वक्त होगा कि ज़ी बिजनेस का साम्राज्य खड़ा करने वाले, प्रधानमंत्री के कार्यालय में अपनी किताब का लोकार्पण कराने वाले सुभाष चंद्र को ये दिन देखना पड़ रहा है। बस मुझे चिन्ता हुई कि कहीं उनका इस्तमाल कर किसी ने बीच बाज़ार में तो नहीं छोड़ दिया है। उन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी की रैली में मंच से उनका प्रचार किया था। बीजेपी की मदद से राज्य सभा पहुंचे।
अगर सरकार के इतने करीब होने के बाद भी सुभाष चंद्रा लोन नहीं दे पा रहे हैं तो समझ सकते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कितनी नाज़ुक हालत में है। क्योंकि सुभाष चंद्र के पत्र से ज़ाहिर है कि उनकी कंपनी का संकट दूसरी वित्तीय संस्थाओं के संकट से भी जुड़ा है। इनके चैनलों पर मोदी के बिजनेस मंत्रों की कितनी तारीफें हुई हैं और उन्हीं तारीफों के बीच अपना बिजनेस लड़खड़ा गया।
काबिले तारीफ की बात यह है कि ऐसे कठिन वक्त में भागने की बात नही कर रहे हैं बल्कि लंदन से भारत आकर पत्र लिख रहे हैं। भरोसा दे रहे हैं कि एक एक पाई चुका देंगे। यह कोई साधारण बात नहीं है। हर कोई मेहुल चौकसी नहीं हो जाता है कि प्यारे भारत की नागरिकता ही छोड़ दे। कितना ख़राब संयोग है कि वे मेहुल चौकसी भी रिज़र्व बैंक के एक कार्यक्रम में सामने बैठे थे जहां प्रधानमंत्री उन्हें हमारे मेहुल भाई कह रहे थे। भागा भी तो ऐसा शख्स जिन्हें प्रधानमंत्री जानते थे। मेहुल भाई ने मोदी समर्थकों की नाक कटा दी है।
बाज़ार और सरकार में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। मैं इतना जानता हूं कि इस लेख के बाद आईटी सेल वालों का गालियां देना चालू हो जाएगा।
एनडीटीवी में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.
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Ram Kumar Singh Yadav
January 27, 2019 at 12:46 am
Sir this is good efforts to entroduse public of India.
Abhishek thakur
January 27, 2019 at 1:40 am
Ravish to khud dogla hai hi sala dalai ka roti todta hai awr naitikta ki path pdhata hai….yuwao ko bolte ho dangai mt bno doctor bano …kbhi apne bhai ko bole ho ladkiyo ki dalali chhod do achhe insan bno …… nhi bol Sakte kyoki tumhara v share ho sakta hai n …..apne apne swarth ke liye wo ladkiyo ko use krta tha awr tum patrakarita ko ..dono dalali hi krte hoop………
Jitwarpur ke pandit ji andhi reporting chhodiye lgta jaise gadhe ko bojh dal ke raste par chhod diya gya hai awr wo bdhe ja rha hai unpar..
Prashanttripathi
January 27, 2019 at 12:52 pm
Agreed
A K Srivastava
January 27, 2019 at 12:01 pm
I am proud of Ravish’s fearless untiring efforts for exposing the powers adament to destroy social fibre of India
Satya Prakash Singh
January 27, 2019 at 4:04 pm
Only “UPA personal will be impress” it’s is enough for you.
अजीत अग्रवाल
January 27, 2019 at 6:44 pm
रवीश जी आपका सम्मान जब ही तो है
Krishna Agrawal
January 28, 2019 at 6:50 am
रवीश जी आप तो दिल से चाहते हो कि कोई गालियां देवे। आपकी एकतरफा बातें तो यह सम्मेलन आयोजित करती है। यह मलिन शब्द आपको सहायता करते हैं कि आपके अंदर जो पूर्वाग्रह है वह बाहर निकल जाएं। आपका एक तरफा विरोध वा प्यार आपको मुबारक।
Praveen kumar tibrewal
January 28, 2019 at 9:34 am
हर मानव के जीवन में उतार चढाव आता है हर फैसला लाभ की तरफ नही ले जाता आशा है इस दौर की कठिनाइयों को जी समुह पार कर लेगा किसी को परेशान होने की जरुरत नहीं है
RAJKUMAR NAMDEO
January 28, 2019 at 10:05 am
Well done Ravish Ji
तल्ख़ी तो नही आपकी बीते में पर यदि सुभाष चंद्रा ने चाटुकारिता न की होती ये दिन नही देखना पड़ता ईमानदारी से आगे आते और कहते मेरे पास ब्लैकमनी है इसे सरकार को दे रहा हूँ!
सरकार को भी डर लगता की कुछ करे की नहीं ईमानदार है कही ले ना डूबे थोडा परेशान होते बस ||
Surjeet dogra
January 29, 2019 at 11:08 am
Sir, bahut vadhiya likha aapne par har koi es baat ki gambhirta ko nahi samajh sakta…shayed unki samajh bhi chura li gayi hai aur BJP aur UPA tak simit reh Gaye Hain ye log
Asaaf
February 1, 2019 at 8:41 am
खुश तो बहुत हो रहे होंगे ना आप रवीश जी?