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सुख-दुख

KGMU के एक छपास डॉक्टर ने सुभाष मिश्र को बुख़ार आने के वावजूद वैक्सीन लगवा दी!

हेमंत शर्मा-

अरे सुभाष तुम भी……तुम्हें ऐसा नहीं करना था।तुमसे वायदा था मई में मिलना है।जुनूँ की शादी में।पर तुम अनंत में मिल गए।तुम्हें संध्या,जुनूँ और जुबिन के बारे में तो सोचना था।इतनी भी क्या जल्दी थी।जब जब तुम मुझे आईसीयू से लिखते मुझे बचाईए। मैं जबाब देता हिम्मत रखो मनोबल बनाए रखो।पर तुमने हिम्मत छोड दी।

हाथ काँप रहे हैं। खबर पर भरोसा नही हो रहा है।हतप्रभ हूँ! सुभाष मेरा दोस्त और छोटे भाई जैसा था।मुझसे दो साल छोटा। तीस बरस का रिश्ता आज ईश्वर ने तोड़ दिया।अब तक हम पढ़ते थे।कि काल की गति के आगे सब बौने है।इस दौर में हम रोज़ देख रहे है।कुरुक्षेत्र में कृष्ण ने सृष्टि की नश्वरता पर जो भाषण दिया था।अब तक वह काल की गति लगता था ।पर इस दौर में नश्वरता का वह उपदेश राक्षसी अट्टहास लग रहा है।अभी और क्या होगा पता नहीं।

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भगवान ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया।प्रभु यह अन्याय है सुभाष के साथ।जर्मन दार्शनिक फ़्रेडेरिक नीत्शे ने कहा था ‘ईश्वर मर चुका है।’ तब मैं उसे पागल समझता था।पर आज के माहौल से नीत्शे पर भरोसा हो चला है।कल ही सोचा था अब किसी के निधन पर कुछ नहीं लिखूगॉं। शिशु ने भी मना किया था।इससे आप में हताशा और अवसाद दिखता है।पर सुभाष ने यह निश्चय तुड़वा दिया।

समझ नहीं आ रहा है संध्या से मैं कैसे बात करूँ ?क्या कहूँ कि हम असहाय थे। पहले बाईपैप फिर वेंटिलेटर।हर रोज़ चमत्कार की उम्मीद थी।शुरू में मैं रोज़ सुभाष से बात करता।फिर देखा कि बाईपैप के कारण उसे बात करने में परेशानी होती है तो लिख कर बात शुरू हुई।फिर डॉक्टरों से ,कभी नवनीत जी से बात कराता कभी बृजेश पाठक जी से। सब उम्मीद बँधाते।पर आज एक झटके में उम्मीद टूट गई! उम्मीद क्या मैं टूट गया।

कल ही उम्मीद छूटनी शुरू हो गयी थी।जब डॉक्टर ने बताया कि किडनी पर असर है। रात में नवनीत जी ने कहा कि संक्रमण बढ़ रहा है।सभी अंगों पर असर शुरू हो गया है। दो रोज़ पहले पीजीआई की सारी रिपोर्ट नवनीत जी ने मुझे भेजी । “देखिए और क्या किया जा सकता है।” मैंने दिल्ली में राय ली कई डाक्टरों को दिखाया सबका कहना था संक्रमण का लोड ज़्यादा बढा है। इलाज में देरी हुई है। आज मेदान्ता के डाक्टर से पीजीआई के डॉक्टरों की कॉन्फ़्रेन्स होनी थी। पर काल की गति कुछ और थी।

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सुभाष ने लापरवाही की। ताविषी जी के निधन के बाद उन्हें इसकी गम्भीरता का अंदाज लगा।उस रोज़ भी उन्हें बुख़ार था।

KGMU के एक डॉक्टर जिनको अख़बार में छपने की बहुत बड़ी बीमारी है। उन्होने सुभाष को बुख़ार आने के वावजूद वैक्कसीन लगवा दी।

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बाद में जाँच से पता चला वो बुख़ार कोरोना के संक्रमण से आ रहा था।संक्रमण और तेज हो गया और बढ़ते बुख़ार के वावजूद वो डॉक्टर साहब घर में इलाज करने की सलाह देते रहे।नतीजा उसकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती गयी।और सुभाष दस रोज़ तक घर में उनकी सलाह से दवा खाते रहे।और डॉक्टर साहब अख़बार में अपनी फ़ोटो छपवाते रहे।जब सॉंस उखड़ने लगी तो सुभाष ने बृजेश पाठक जी को फ़ोन किया आक्सीजन का सिलैण्डर का इंतज़ाम किजिए।

पाठक जी ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने कहा इन्हें फ़ौरन भर्ती कराए घर में पडे रहना जानलेवा है। पाठक जी ने सुभाष को केजीएमयू में भर्ती करवाया। केजीएमयू की हालत पर सुबह सुभाष ने मुझे फ़ोन किया मैं आक्सीजन पर हूँ।रात से मेरा आक्सीजन का पोर्ट उखड़ा हुआ है। न कोई देखने वाला है। न सुनने वाला। मुझे यहॉं से निकालिए। मैंने फ़ौरन नवनीत सहगल जी को फ़ोन किया। उन्होंने त्वरित गति से उन्हें पीजीआई के आईसीयू में दाखिल करा दिया। फिर अंत तक सहगल साहब संध्या और पीजीआई के डायरेक्टर के बीज सेतु की तरह बने रहे। दो बार रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी ने भी पीजीआई के डायरेक्टर से बात की और मुझे आश्वस्त किया इलाज़ पूरी गम्भीरता से हो रहा है।

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सुभाष से तीस बरस के सम्बन्ध रील की तरह चल रहे है।वे भी क्या दिन थे।नरही में इण्डियन एक्सप्रेस का लखनऊ दफ़्तर। सुभाष कानपुर पायनियर से फ़ाइनेंसियल एक्सप्रेस में आए थे। हम एक ही कमरे में बैठते थे। तीसरी टेबल इण्डियन एक्सप्रेस के साथी की होती थी।जिस पर पुष्प सर्राफ़,एसके त्रिपाठी ,विद्या सुब्रमण्यम,जार्ज जोसफ़,
विजया पुष्करणा,योगेश बाजपेयी, शरद गुप्ता ,अमित शर्मा , राज्यवर्द्धन सिंह, तक एक्सप्रेस में लोग आते जाते रहे। मै श्मशान के चाण्डाल की तरह जनसत्ता में बना रहा।दफ़्तर के बाद मैं सुभाष और शरद नरही तक आते मलाई खाते और फिर हजरत गंज में किशन सेठ के स्टूडियो। बरसों चला यह सिलसिला।उस वक्त से जो सुभाष से जो सिलसिला चला बाद में वो पारिवारिक रिश्तो में तब्दील हो गया।फिर सुभाष इंडिया टुडे , न्यू इण्डियन एक्सप्रेस होते हुए टाईम्स ऑफ इन्डिया पहुँचे।पर सुभाष मेरे बृहत्तर परिवार के सदस्य बने रहे। सुख दुख।उत्सव समारोह।मित्रो की बैठकी अनवरत जारी रही। सुभाष विनम्र ,सीधे चलने वाले,लखनवी पत्रकारीय पंचायतों से अलग समाज और राजनीति का बारीक अध्ययन। दिल्ली आने के बाद मुझे भी जब कभी उप्र की किसी राजनैतिक गुत्थी सुलझानी होती में सुभाष से ही बात करता।

फ़रवरी में जब लखनऊ गया तो सभी मित्रों से मिलने के लिए एक जगह खाने पर बुलाया। ताकी पुरानी यादें ताज़ा हो। वो शाम गजब की थी।सुभाष से मेरी रूबरू यह मुलाक़ात अन्तिम थी उस जमावड़े के दो मित्र अब नहीं रहे।

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अब , कब, क्या, कैसे ? सिर्फ़ यादें।

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2 Comments

2 Comments

  1. Dhiraj Singh

    May 8, 2021 at 6:31 pm

    Karma Catches Up With Subhash Mishra:
    I was about to become an atheist, having lost all faith in God, when this news came. One of the most corrupt person, he was in the payroll of Avinash Awasthi, the Acting CS of UP. This paid hitman had created so much problems in their professional & personal lives of many an IAS, IPS officials by planting falsehood & outright lies.

    May he rot in hell & his suffers more misfortunes because of his karmas.

  2. alok

    May 8, 2021 at 7:21 pm

    use aap logon ne hi sir chadha rakha hai …
    ek no ka bebkoof hai … sirf चापलूसी आती है उसे …

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