चौथा स्तंभ आज खुद को अपने बल पर खड़ा रख पाने में नाक़ाम साबित हो रहा है…. आज ये स्तंभ अपना अस्तित्व बचाने के लिए सिसक रहा है… खासकर छोटे न्यूज चैनलों ने जो दलाली, उगाही, धंधे को ही असली पत्रकारिता मानते हैं, गंध मचा रखा है. ये चैनल राजनेताओं का सहारा लेने पर, ख़बरों को ब्रांड घोषित कर उसके जरिये पत्रकारिता की खुले बाज़ार में नीलामी करने को रोजाना का काम मानते हैं… इन चैनलों में हर चीज का दाम तय है… किस खबर को कितना समय देना है… किस अंदाज और किस एंगल से ख़बर उठानी है… सब कुछ तय है… मैंने अपने एक साल के पत्रकारिता के अनुभव में जो देखा, जो सुना और जो सीखा वो किताबी बातों से कही ज्यादा अलग था…. दिक्कत होती थी अंतर आंकने में…. जो पढ़ा वो सही था या जो इन आँखों से देखा वो सही है…
कहते हैं किताबी जानकारी से बेहतर प्रायोगिक जानकारी होती है तो उसी सिद्धांत को सही मानते हुए मैंने भी उसी को सही माना जो मैंने अपनी आखों से देखा… बहुत सुंदर लगती थी ये मीडिया नगरी बाहर से…. पर यहां केवल खबर नहीं बिकती… कुछ और भी बिकता है… यहाँ सिर्फ अंदाज़ नीलाम नहीं होते, यहां बिकता है स्वाभिमान… यहां क्रोमा के साथ और भी बहुत कुछ कट जाता है… यहां कटते हैं महिला पत्रकार के अरमान… यहां बलि चढ़ती है उसकी अस्मिता…. कामयाबी दूर होती है, लेकिन उसे पास लाने के यहां शॉर्टकट भी बहुत हैं… और उसे नाम दिया जाता है समझौता…
जब पहली बार एक नेशनल न्यूज़ चैनल के दफ्तर में कदम रखा तो सोचा था की अपनी काबलियत और हुनर के बलबूते बहुत आगे जाउंगी… आडिशन दिया… पीसीआर में खड़े लोगों ने अपनी आखों से ऐसे एक्सरे किया जैसे मेट्रो स्टेशन पर लगी एक्सरे मशीन आपके सामान का एक्सरे करती है… सिलेक्शन हुआ और शुरू हुआ मेरा भी करियर….. कुछ दिनों तक तो सब ठीक-ठाक चला, लेकिन अपनी काबिलियत के बलबूते शायद मैं कुछ लोगों की आँखों की किरकिरी बनने लगी…
जब एक नन्हा परिंदा खुले आसमान में उड़ने की कोशिश करता है तब उसी आसमान में उड़ती हुई चील उस पर झपट्टा मारकर उसे अपना शिकार बनाने की कोशिश करती है… कुछ वैसा ही मेरे साथ भी होने लगा… मैं परेशान होकर सबसे पूछती फिरती कि आखिर बात क्या है… लेकिन किसी से जवाब नहीं मिलता… हार कर सीधे चैनल के मालिक से मिलने पहुंच गई… सोचा था कि यहाँ से तो हल जरूर मिलेगा.. लेकिन दिलो-दिमाग़ को तब 440 वोल्ट का झटका लगा जब ये पता चला कि मालिक से मिलने के बाद उनके साथ अंतरंग में एक कप काफ़ी पीनी पड़ेगी जो मेरे काम भी करा देगी, साथ ही साथ प्रमोशन और सैलरी में अच्छी खासी बढ़ोतरी करा देगी… ऑफिस की कई लड़कियां वो काफ़ी पी चुकी हैं… तब समझ आया कि जिनको JOURNALISM का J नहीं आता वो कैसे इतनी ऊंची पोस्ट पर पहुंच गये… जाहिर है सारा कमाल उस गोल्डन काफ़ी का था…
अब दो आप्शन थे मेरे सामने… या तो नौकरी छोड़ दूं या उस काफ़ी का एक सिप ले लूं… लेकिन मैं बेचारी, अपने काबिलियत को एक कप काफ़ी की कीमत से नहीं तौल पाई… और नौकरी छोड़ दी मैंने…. अब दूसरे संस्थान में हूं… ये कैसा सच है, जिसे सब जानते हैं लेकिन सब झूठ मानकर अपनी नौकरी बचाने के लिए चुपचाप बस देखते हैं… आंखें बंद कर लेते हैं… बात होती भी है तो बड़ी गोपनीयता से अपने विश्वसनीय सहयोगी के साथ.. प्राइम टाइम में गला फाड़-फाड़ कर दुनिया भर को बात-बात पर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ये बातें करते समय शायद अपने चरित्र के बारे में भूल जाते हैं…. मैंने कहा था ना….. यहाँ सब बिकता है….. नैतिकता भी…..चरित्र भी….
एक युवा महिला पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित. महिला पत्रकार ने अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध किया है. उन्होंने जिस न्यूज चैनल के बारे में उपरोक्त बातें लिख कर भेजा है, वह चैनल कई वजहों से कुख्यात और विवादित रहा है. चैनल के बारे में कहा जाता है कि नाम बड़ा और दर्शन छोटे. चैनल हिंदुत्व के नाम पर चलाया जाता है और जमकर मीडियाकर्मियों का शोषण किया जाता है.
news
March 16, 2015 at 11:38 am
सुदर्शन न्यूज़ चैनल की ही दास्ताँ लगती है ये कहानी ! इसी चैनल का मालिक़ चरित्र के तौर पर बेहद गंदा है और पैसे के मामले में बाज़ार में बिकने वालियों से भी गया गुज़रा ! सुदर्शन टी. वी. का मालिक़, सुरेश च्व्हानके, पहले शिर्डी के एक गाँव में शादी-ब्याह में टेंट लगवाने का काम कर किसी तरह जीविकोपार्जन करता था ! आज , घोटाला कर और भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का काला धन खपा कर , करोड़ों का मालिक़ है ! बहुत ही गंदा इन्सान है ये व्यक्ति, जो टी.वी. स्क्रीन पर बड़ी-बड़ी बातें करता है , मगर, सेक्स और पैसे का बेहद लालची ! इस चैनल में सिर्फ १-२ महीने भी काम किया हुआ इंसान इस बाय की गवाही दे सकता है !
sanjib
March 16, 2015 at 7:45 pm
Golden Tea ke bahaney koi Ladki iss Sudarshan Chakra ke Malik ki “Ungli” kyon nahi kaat leti…? Na rahegi Ungli, na Uthega Chakra…!!
sara khel khatam.. ab ye chakradhari bhi kya karey, jab kai Ladkiyan promotion aur paisey ke Lalach me khud saamney aa jati hain.
yadmm
March 17, 2015 at 6:27 am
Lemon न्यूज़ चैनल की ही दास्ताँ लगती है ये कहानी
Vidya Nand Mishra
March 17, 2015 at 11:20 am
महोदय
उपरोक्त कहानी मीडिया के किसी एक हाउस की नहीं ….बल्की अधिकतर मीडिया संस्थानों की है…जहां जल्द मुकाम, ऐेश-व-आराम के चक्कर में कुछ महिला पत्रकार अपना सर्वस्व लुटाती हैं…आनन-फानन में वो कुछ बड़े पैकेज व ओहदा भी खरीद लेती हैं…लेकिन उन्हें सबसे बड़ा धक्का तब लगता है….जब कोई दूसरे पत्रकार उन्हीं के नक्श-ए-क़दम पर चलते हुए उन्हीं के ओहदा पर बैठ जाती हैं…..करीब-करीब सभी पत्रकार इस सच्चाई से रू-ब-रू होते हैं….लेकिन कोई भी जुबान खोलने को तैयार नहीं होते…..क्योंकि नौकरी से निकाले जाने का उन्हें डर रहता है…..वहीं चंद पैसे वाले बेवकुफ टाइप के लोग मीडिया संस्थान खोलकर बैठ जाते हैं…और अपनी राजनीति छवि को सुदृढ़ करने व जीवन रंगीन करने में जुट जाते हैं…वहीं बिना किसी जांच-पड़ताल के पत्रकारिता के डिग्रीधारी लोग दौड़ पड़ते हैं…और संस्थान के मालिक के पीछे-पीछे….जी हुजूरी करते हैं