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सियासत

ट्रम्प ने सुलेमानी की हत्या कर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर ला दिया!

मध्य-पूर्व के लिए अगले 72 घंटे अहम हैं। अगर रविवार तक कासिम सुलेमानी की बग़दाद में हत्या के मामले को शांत करने की कोशिश नहीं हुई तो इजरायल, अमेरिका और सऊदी अरब पर ईरान के हमले का खतरा बढ़ जाएगा।
सवाल सिर्फ तेल का नहीं है। ट्रम्प ने सुलेमानी की हत्या कर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर ला खड़ा कर दिया है। इस वक़्त चीन, रूस ही नहीं मध्य-पूर्व के दर्जनों स्वतंत्र मुल्कों की सहानुभूति ईरान के साथ है।

सुलेमानी के कद का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि वे ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह ख़ामेनेई को सीधे रिपोर्ट करते थे। 62 साल के सुलेमानी ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी सैन्य इकाई क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख थे।
ट्रम्प के हुक्म पर सुलेमानी को ड्रोन हमले का निशाना बनाया गया।

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अभी थोड़ी देर पहले अमेरिका ने जैसे ही इराक से अपने नागरिकों को देश छोड़ने को कहा, बग़दाद एयरपोर्ट पर राकेट दागे गए।

ईरान में लोगों का गुस्सा उबल रहा है। उन्हें बदला चाहिए। तेहरान और सुलेमानी के शहर करमन में भी हज़ारों लोग जमा हैं।

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ईरान ने हमले का बदला लेने की बात कही है। लेकिन मामले को शांत करने कोई आगे आएगा, इसकी उम्मीद कम है।

एक तरफ चीन की सियासत है तो दूसरी ओर रूस की ताकत। हाल में रूस ने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। 15 मिनट में पूरे अमेरिका को तबाह करने का दम रखने वाली इस मिसाइल को देख पाना भी मुमकिन नहीं है। बस आप आंख बंद कर अपने चीथड़े उड़ने का इंतज़ार कीजिये। इजराइल हाई अलर्ट पर है।

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तेल के दाम 3 डॉलर उछले हैं। लेकिन एक हल्की सी चिंगारी कीमतों को 100 डॉलर के पार ले जा सकती है।

भारत की विदेश नीति अब व्यापार नीति है। हम अमेरिका परस्त हैं। मोदी सरकार मुसलमान और ईरान विरोधी है। रूसी मिसाइल खरीदी के मामले में जब अमेरिकी दबाव बढ़ा तो भारत ने ईरान को ठेंगा दिखा दिया।

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पहले अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की सुनी जाती थी। अब दुनिया को मालूम है कि भारत में व्यापारी सरकार है, जिससे अपना देश ही नहीं संभल रहा।

8 अगस्त 1942, दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था और गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो का आह्वान किया।
ईरान के बहाने इतिहास फिर खुद को याद कर रहा है।
करो या मरो। मुम्बई में कांग्रेस के सम्मेलन में बापू का यह मंत्र गहरा सबक देता है। सब-कुछ दांव पर लगा दो, क्योंकि प्रतिकार, प्रतिरोध, विरोध और अवज्ञा को कुचलने की हर कोशिश कहीं तो बदले में जान भी मांग सकती है। कौन जाने?

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देश, संविधान की रक्षा, धर्म निरपेक्षता, अभिव्यक्ति, शिक्षा, भेदभाव, हिंसा, लोकतंत्र- न जाने कितने सवाल उन हज़ारों लोगों के मन में होंगे, जो रात-दिन सड़कों पर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। सोचिए, अगर आज गांधी होते तो क्या कहते?

पत्रकार सौमित्र रॉय की एफबी वॉल से।

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2 Comments

2 Comments

  1. कुटिल

    January 3, 2020 at 7:31 pm

    “भारत की विदेश नीति अब व्यापार नीति है। हम अमेरिका परस्त हैं। मोदी सरकार मुसलमान और ईरान विरोधी है। रूसी मिसाइल खरीदी के मामले में जब अमेरिकी दबाव बढ़ा तो भारत ने ईरान को ठेंगा दिखा दिया।
    पहले अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की सुनी जाती थी। अब दुनिया को मालूम है कि भारत में व्यापारी सरकार है, जिससे अपना देश ही नहीं संभल रहा।”
    मतलब इस पत्रकार को मोदी ना पसंद है तो कुछ भी अंडबंड ज्ञानबाज़ी करेगा और भड़ास उसको छापेगा ?
    ऐसे ही तथाकथित पत्रकारों ने पत्रकारिता को पेशा बना दिया है

    • dev

      January 4, 2020 at 11:21 am

      sahi bola apne

  2. Rajesh

    January 4, 2020 at 6:49 pm

    He seems to be over exited journalist.

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