Dhirendra Pundir : सुलखान सिंह नए डीजीपी। लगता नहीं था कि कोई इतने ईमानदार अफसर को कभी कमान देगा। लईया-चना हमेशा याद रहेगा। लखनऊ में खबर करने गया था। सोचा चलो एक दो अफसर से तो मिलता चलू। फिर याद आया कि चलो एडीजी जेल से मिलते है। फोन किया और उधर से वही अपनेपन से भरी हुई आवाज शहर में आएँ हो क्या। चलो आएँ हो तो आ जाओं। मिलने पहुंच गए खाने का समय हो चुका था तो पूछा कि आपने लंच तो नहीं लिया होगा तो हमारे साथ लोंगे।
मैंने जवाब दिया कि सर मैं तो दोपहर में खाना नहीं खाता हूं। उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं जो हम खाते है वही खा लेना। और उन्होंने कहा कि ले आओं भाई। लेकिन अर्दली आया और बोला सर आज तो आया नहीं है। उन्होंने पूछा कि क्यों क्या हुआ वो तो कभी छुट्टी करता नहीं है। मेरी नजर में ये खाने को लेकर बातचीत लग रही थी। लेकिन अर्दली ने कहा कि सर छुट्टी तो नहीं थी लेकिन बाहर नगरनिगम की गाड़ी उठाकर ले गई। इस बात पर एडीजी साहब अचानक हैरान हो गए कि वो तो लाईन से खड़ा होता है और आसपास सफाई भी रखता है। हां सर लेकिन वो माने नहीं। एडीजी साहब ने कहा कि कमिश्नर को फोन लगाईँये।
मेरी दिलचस्पी बढ़ गई कि बात लंच की हो रही है कहानी म्यूनिसपल कमिश्नर तक जा रही है। एक दम से पूछना अच्छा नहीं लगा तो चुपचाप देखता रहा और फोन मिल गया। एडीजी साहब ने कहा कि आज क्या अतिक्रमण हटाओं अभियान था क्या कमिश्मनर साहब। उधर से कुछ ऐसा ही जवाब आया जो फोन के दूर होने से पता नहीं चला। लेकिन तभी एडीजी साहब ने कहा कि अभी मैं बाहर निकल कर आपको आपके ऑफिस तक पहुंचता और रास्तें में अधिकारियों के घर के बाहर कब्जां कर बनाएं गए हुए गार्डन और रास्तों को पार्किंग बना खडे हुए रईसों की गाडियों के फोटो सहित आ जाता हूं ताकि आपको साथ ही लेकर हटाओ।
उधर से फिर कुछ आवाज थी लेकिन समझ में नहीं आई। एडीजी साहब ने कहा कि कमिश्नर साहब एक लईयाचने वाले को उठा कर काफी कानून का पालन कर लिया। काफी कापी भर गई होगी एसीआर की। एक लईया चना वाला जो सरकारी कर्मचारियों को कुछ पैसे में दोपहर में पेट भर देता है उसका कब्जा काफी बड़ा गुनाह लगा होगा। मुझे लगता है कि आपको पहुंचने वाली राशि कुछ कम हो गई होगी। लेकिन आप को उस कुएं में बदल रहे है जो पानी को खुद ही पा रहा है। और आधे घंटे बाद लईया-चना वाला वापस अपनी जगह पर लोगों के पेट भर रहा था और वही से एक गर्मागर्म लईया चने का लिफाफा हमारी टेबिल पर भी आ गया। तब पूछने पर पता चला कि यही लईया चना दोपहर में एडीजी साहब खाते है। ये मेरी सुलखान सिंह साहब के साथ हुई एक मुलाकात थी। फिर तो कई मुलाकात हुई और अपने मन में ये तस्वीर साफ थी कि अपनी साफगोई और ईमानदारी से बदनाम हो चुके सुलखान सिंह को कौन डीजीपी बनाएंगा।
इनवेस्टीगेशन की रिपोर्टिंग करने के चलते अक्सर पुलिसअधिकारियों से साबका पड़ता ही रहा है। ऐसे में जिस भी अधिकारी से बात हमेशा एक ही बात सुलखान सिंह का परिचय रही कि बहुत ईमानदार अफसर है और कड़क भी। हालांकि कड़क पन उनके काम करने के तरीकों में होगा व्यवहार में तो हमेशा नर्म। और बातचीत में काफी बार इस बात पर भी बात होती थी कि सरकार को आखिर कैसे अधिकारी चाहिएं जो मंत्रियों की झोली भऱ दे और काले को सफेद और सफेद को काला कह दे सरकार के ईशारे पर। जाविद अहमद साहब दिल्ली में सीबीआई में थे तो कई मुलाकात हुई अच्छे अफसर है लेकिन बुलंदशहर रेप केस में जिस तरह से आरोपियों के नामों का खेल किया लगा कि पद की लालसा किस तरह से रीढ़ को तोड़ कर फेंक देती है। जवाहर बाग जैसा कांड जिसमें दुनिया के किसी भी तख्तें पर पुलिस की गलतियां सामने आ खड़ी होंगी उस पर भी लीपा-पोती दिखी। इससे पहले इतने सारे सीनियर अफसरों को धता बता कर जिस तरह से जाविद अहमद साहब सामने आएं थे तो लगा था कि प्रदेश में एक ईमानदार अफसर सुलखान सिंह शायद ही कभी उस कुर्सी पर बैठ पाएंगे जिस पर उनका दावा उनके सीनियर होने और काम के प्रति निष्ठा के चलते सबसे आगे था।
अब तो काफी समय से बात नहीं हुई लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कई लोगों से बात हुई लेकिन मुझे नहीं लगा कि सुलखान सिंह को बनाने का जोखिम आज कल की पॉलिटिक्स उठा सकती है क्या। लेकिन आज शाम को इस खबर ने एक यकीन तो दिला ही दिया कि आपको हौंसला बनाएं रखना चाहिए कभी न कभी तो आपको रास्ता मिल ही जाता है। अब उम्मीद करता हूं सुलखान सिंह अपने विश्वास को आधार बना कर इस समय वर्दी और बिना वर्दी के बीच कुछ तो अंतर दिखा पाएंगे। और अक्सर गुंडों से ज्यादा डरावनी बनती जा रही यूपी पुलिस के अंदर कोई बदलाव पैदा करेंगे।
(मैं किसी पुलिस अफसर के लिए कोई लेख लिखता नहीं हूं लेकिन सुलखान सिंह मेरी नजर में उत्तरप्रदेश की पुलिस में एक विश्वास का प्रतीक है इसलिए ये लेख उनके साथ हुए इंटरक्शन पर है। आगे उनका काम जनता को बताएंगा कि मैं सही था या गलत)
न्यूज नेशन चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार धीरेंद्र पुंडीर की एफबी वॉल से.
उपरोक्त पोस्ट पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…
Rajiv Kashyap भले ही वो आपकी व्यक्तिगत मुलाकात हो, लेकिन जो वाकया आज आपने सुलखान सिंह जी के साथ हुए मुलाकात का बतया है वो केवल आम जन हीं नहीं, भ्रस्टाचार से भरी अफसरशाही और राजनीती के इस दौर में निराशा में डूब चुकी इमानदार अप्सरों के लिए एक उम्मीद की किरण है , अमूमन इमादर अप्सरों को अपने कर्तव्य में ईमानदारी के लिए सम्मानित नहीं बल्कि राजसत्ता के द्वारा अपमानित किया जाता रहा है, और भ्रस्टाचारी अधिकारीयों की फौज को जिस तरह से कई महत्वपूर्ण पदों पर उनके काले कारनामो के वाबजूद बिठाया और बनाये रखा जाता रहा है उस से आम लोग और इमानदार अधिकारीयों का ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना कठिन होता जा रहा है, लेकिन प्रशासनिक फेरबदल किसी भी सरकार का एक रूटीन कार्य होता है लेकिन इस रूटीन कार्य में जो इस बार सुलखान सिंह जी को उत्तर प्रदेश के पुलिस महकमे का कमान सौपने का जो महत्वपूर्ण कार्य हुआ है वो ईमानदारी का हौसला अफजाई करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है ….
Atul Sinha धीरेंद्र भाई शायद आपको याद हो कि आप मुरादाबाद आये थे बहुत साल पहले जब एक बड़े एक्सपोर्टर की फैमिली में हादसा हुआ था । बड़ी घटना थी और एसएसपी बी बी बक्शी थे और आप मेरे साथ ही उनके पास गए थे । बात बहुत पुरानी हो गयी लेकिन याददाश्त धुंधली नही हुई । शायद तब भी हमारे बीच ऐसी ही बात हुई थी कि क्या कभी पोस्टिंग्स में सरकार ईमानदार हो पाएगी। इतने साल बाद ही सही लिजिन कुछ अच्छा तो नज़र आया।
Shahid Khan That’s good news Dhirendra Pundir ji. Hope he will have the various criminal cases against the cabinet ministers and MLAs – present and former, investigated and prosecuted fairly and expeditiously.
Yatendra Jain I was looking for the day on which this country moves in the direction which ensures happy future for our coming generations. I personally have no interaction with you and Mr Singh but believing your story I hope that we are now moving in right direction. May honesty is strengthened and blessed. Thanks for this info.
Vinod Babloo Singh धीरेन्द्र जी आपने सुलखान सिंह जी के व्यक्तित्व से परिचय करवाया अच्छी बात है लेकिन उनके पद भार ग्रहण करने से उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था में कोई सुधार आ जाये और किसी निर्दोष व्यक्ति को क़ानून के डंडे से परेशान ना होना पड़े तो समझूँगा की उनका DGP होना सार्थक हो गया नहीं तो आजकल योगी जी के शासन मेन उनके आदेशों की धज्जियाँ उनके पार्टी के लोग ही उड़ा रहे हैं ताजतरिन उदाहरण सहारन पुर के SSP की पत्नी के साथ भाजपा के सांसद द्वारा की गई गुंडा गर्दी है । अब देखना है की वो कितना निष्पक्ष हो कर काम कर पाते हैं इस बारे में भी कुछ लिखिएगा?
Arunendra Kumar Srivastava किसी ईमानदार की कहानी स्वतः रोचक हो जाती है। किसी लैया चना वाले के प्रति सहानुभूति रखना और उसके दर्द को स्वतः महसूस करना निःसंदेह किसी पुलिस अधिकारी की ईमानदारी बयां करता है।
makera
April 22, 2017 at 1:53 pm
Salute to Sri Sulkhan Singh ji…
Rajeev Saxena
April 23, 2017 at 1:57 pm
योगी सरकार के द्वारा इतने ईमानदार व संवेदनशील अधिकारी को डीजीपी नियुक्त किए जाने से साफ है कि उसके अन्य फैसले भी इतने ही ईमानदाराना रहे होंगे। उम्मीद है आगामी फैसले भी ऐसे ही रहेंगे। फिर तो उत्तर प्रदेश के हालात बदलना तय है। यह पूरे देश के लिए बेहद प्रसन्नता की बात होगी।
Naseem Ansari Kochhar
May 13, 2017 at 11:41 am
प्रिय धीरेन्द्र भाई
आपसे मुलाक़ात हुए काफी समय हो गया है। आज सुलखान सिंह जी के बारे में आपकी पोस्ट पढ़ी। अपने अनुभव शेयर करने से खुद को रोक नहीं पा रही हूँ।
सुलखान सिंह जैसे अधिकारी विरले ही होते हैं। और खाकी में तो इनके जैसे व्यक्तित्व का होना असंभव सा प्रतीत होता है। कोई बारह साल हुए जब मैं लखनऊ में थी। लखनऊ मेरा जन्मस्थान है। तब मैं ‘माया’ समाचार पत्रिका के लिए रिपोर्टिंग कर रही थी (बाद में ‘माया’ की सब एडिटर होकर दिल्ली आ गई थी।) तब हर शनिवार और रविवार सुलखान सिंह जी और एक अन्य पुलिस अधिकारी (अभी उनका नाम ध्यान में नहीं आ रहा है, लेकिन वे सुलखान सिंह जी के बहुत घनिष्ठ मित्र हैं। ) सुबह सुबह गोमती नदी के किनारे पहुंच जाते थे। साथ ही कुछ अन्य लोग – जिनमे कुछ दुकानदार थे, खिलाड़ी, डॉक्टर, वकील, छात्र आदि थे। मुझे भी इन लोगो के वहां जमा होने का सुराग लगा तो मैं भी जाने लगी थी। दरअसल हम वहां सुलखान सिंह जी की प्रेरणा से इकट्ठे होते थे और कोई 2 – 3 घंटे गोमती के गंदे पानी में उतर कर वहां की साफ़ सफाई करते थे। सुलखान सिंह जी हाफ पेंट पहने पानी में उतर जाते और उसमे उग आई लम्बी घास, जलकुम्भी आदि को जड़ों से खींच खींच कर किनारे ले आते। हम उनके साथ जोर लगाते। नदी का एक छोटा सा भाग भी साफ़ हो जाता था तो सुलखान जी का चेहरा चमक उठता था। फिर हम सब हाथ पैर धो कर वहां बने मंदिर के चौकोर से साफ़ चबूतरे पर आ बैठते थे। तब तक सूरज भी उग कर सामने चमकने लगता था। वहां बैठ कर हम सब आपस में विभिन्न विषयों पर चर्चा करते, कभी सुलखान सिंह पुलिस के किस्से सुनाते, कभी कोई जोक। उनके प्रयास से गोमती का काफी लंबा किनारा हमारे इस ग्रुप ने साफ़ कर डाला था और उस किनारे पर थोड़े ही समय में सुन्दर फूलों की क्यारियां महकने लगी थी। जब सुलखान सिंह जी से मेरा मिलना हुआ था तब वे मुझे स्टूडेंट समझे थे पर जब उन्हें पता चला कि मैं पत्रकार हूँ तो एक रविवार वे बोले – नसीम, चलो मेडिकल कॉलेज चलते हैं। वहां कुछ मरीजों से तुमको मिलवाऊंगा। मैं बोली – चलिए सर।
हम मेडिकल कॉलेज पहुंचे। वहां एक वार्ड में कोई 12 – 13 पलंग बिछे थे। हरेक पर मरीज़ थे। मैं ये देख कर हैरान थी कि सुलखान सिंह को देखते ही सारे बच्चो की तरह चहक उठे। सुलखान सिंह और बाकी लोग अपने साथ लाये फलों के टोकरी से फल निकाल कर सबकी साइड टेबल पर रखने लगे, साथ ये नसीहत भी – कि सब खा लेना, फेंकना मत। फल बाँट कर सुलखान सिंह जी मुझसे बोले – ये सभी कुछ वक़्त पहले तक सड़कों पर पागलों की तरह फिरते थे। इन लोगो की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। कोई बीमारी से पीड़ित था, कोई भूख से। कोई नग्न अवस्था में ही घूमा करता था। हमने अपने पुलिस अधिकारी होने का कुछ उपयोग किया। इन तमाम पागलों को सड़कों से उठा कर पहले अस्पताल में भर्ती करवाया। इनका दवा इलाज शुरू करवाया। कुछ तो थोड़ी सी मदद से ही काफी ठीक ठाक दिखने लगे। पेट भर खाना मिलने लगा और दवा, तो अधिकांश अच्छे हो रहे हैं। लोग पागलों से डरते हैं, उनको देख कर पत्थर उठा उठा कर मारते हैं। मगर लोग ये नहीं जानते कि पागल आदमी तो पहले ही दुनिया से डरा हुआ है, भला उससे डरने की क्या बात है। वह तो खुद लोगो से दूर भागता है। वो तो खुद इतना डरा हुआ है। अब यहाँ देखो थोड़ा सा प्यार और मदद ने इनके अंदर का भय कम कर दिया है। हमने कोशिश की इन लोगो से इनके घर का पता प्राप्त करने की। इनमे से कुछ तो बता पा रहे हैं, कुछ को कुछ भी याद नहीं है। एक व्यक्ति तो नेपाल का है। हम पुलिस के ज़रिये इनके घर वालों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उनको बुला कर और समझा कर इन लोगो को इनके परिवार वालो तक पहुंचा सकें। अभी इन सब का इलाज यहाँ चल रहा है। डॉक्टर काफी कोआपरेट कर रहे हैं। हम सब जो गोमती की सफाई में हर शनिवार और रविवार को इकट्ठा होते हैं, वहां के बाद यहाँ इन लोगो के साथ कुछ समय बिताते हैं। इनकी ज़रूरत का सामान इन्हे मुहैया करवाते हैं। इनके पास बैठ कर इनसे बातें करते हैं। प्यार से बोलो तो इनके अंदर अपने बारे में बताने की हिम्मत जगती है। फिर वो मेरी तरफ देख कर हंस कर बोले – तुम्हे इनसे डर तो नहीं लग रहा है ?
मैं जो पहले सचमुच सड़क पर घूमते किसी पागल आदमी को देख कर डरती थी, उस रोज़ वो डर हमेशा के लिए ख़तम हो गया। मैंने उन लोगो से बातें की, उनके कंधे पर स्नेह का हाथ धरा। एक बूढी औरत तो मेरा हाथ पकड़ कर रो दी। वो दूर किसी गांव से भटक कर लखनऊ पहुंच गई थी। उन ‘पागलों’ से उस रोज़ मिल कर लगा के पागल तो सचमुच में हम हैं जो उन्हें समझ नहीं पाते। सुलखान सिंह जी की वो बात आज भी कानों में ज्यों की त्यों गूंजती है – ‘ये तो खुद दुनिया से डरे हुए हैं….’
सुलखान सिंह जी के कारण लखनऊ की सड़कों पर घूमने वाले मानसिक रोगियों की संख्या बिलकुल ख़त्म हो गई थी। मैंने उन लोगो की फोटो अपने कैमरे में ली ताकि एक रिपोर्ट बना कर पत्रिका में एक एक की फोटो के साथ लगाऊं। क्या पता कोई पत्रिका किसी से परिवार वाले के हाथ लग जाए और इनकी खबर इनके घर वालो तक पहुंच जाए। ये रिपोर्ट छपी। धीरे धीरे मेडिकल कॉलेज में भर्ती ज़्यादातर को उनके परिवार वालों तक पहुंचा दिया गया। ये सब सुलखान जी प्रयासों और उनकी पवित्र सोच के चलते संभव हुआ।
सुलखान सिंह जैसे व्यक्ति दुनिया में बहुत कम है। वर्दी में संत। उनकी तारीफ़ में शब्द कम पड़ते हैं। उनको मेरा नमस्कार।
नसीम अंसारी कोचर
एसोसिएट एडिटर
दुनिया इन दिनों
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