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सुख-दुख

कोरोना संक्रमण से बुरी तरह जूझ रहे इस मीडियाकर्मी का आखिरी पत्र पढ़ें

हम लोगों ने भड़ास पर आखिरी बात नाम से एक सिरीज इसलिए स्टार्ट किए ताकि लोग खुलकर अपनी बात लिखें ताकि मन का बोझ थोड़ा कम हो. अपनी बात कह देने लिख देने सुना देने से काफी कुछ मन हल्का हो जाता है. रोने के लिए कोई कंधा मिल जाए तो दिल का गुबार निकल जाता है. तो ये सिरीज एक सकारात्मक मकसद से शुरू किया गया है. इस सीरिज के बारे में देखकर एक मीडियाकर्मी साथी ने अपनी आखिरी बात लिखकर मेल तो किया ही, साथ ही ये जानकारी भी दी कि वे कोरोना से बुरी तरह जूझ रहे हैं और उनका बचना मुश्किल है. नीचे पूरा पत्राचार है. हम उम्मीद करते हैं कि वे कोरोना की जंग जीतकर वापस घर लौटेंगे. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

पिता का पत्र बेटी- बेटा के नाम ,

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नमस्ते

दीपल- दिव्य, मुस्कुराते रहो… भगवान जी को हमेशा स्मरण में रखो।

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भगवान श्रीकृष्ण जी ने स्पष्ट कहा है मुझे पाने के दो रास्ते हैं – भक्ति एवं कर्म ।

मैं दूसरे रास्ते को पसंद करता आया जहाँ जो भी कर्म हम करें भगवानजी के चरणों में कर्मपुष्प अर्पित कर दें । भगवानजी को इसलिए कर्मयोगी कहते हैं कि उन्होंने कृष्ण रूप में कर्म द्वारा संसार के दुखों का हरण किया ।

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बड़े सपने देखो, ना सिर्फ सपनें देखो उन्हें पूरा करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से जुट जाओ, एक सच्चे कर्मयोगी की तरह ।

ईमानदारी में बहुत ताक़त होती है, जो तुम्हे हमेशा हर जगह मदद करेगी, सम्मान देगी ।

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भूल से भी पैसे को ज़िन्दगी का लक्ष्य मत बना लेना, भटक जाओगे, खुशियाँ खो दोगे ।

जी तोड़ मेहनत करने के बाद जो सुकून मिलता है उसकी कोई तुलना नहीं क्योंकि यह हमारा दायित्व है, कर्ज है प्रकृति और समाज का ।

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प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है इतना कि उसका आनंद लेते लेते यह जीवन कम पड़ जाए इसलिए आनंद चाहते हो तो प्रकृति से जुड़े रहना ।

भौतिकता, कार, मकान, पैसा सिर्फ जीवन स्तर उठाने का माध्यम है , खूब पैसा कमाना चाहिए लेकिन किस कीमत पर यह होश रहे, परिवार, स्वास्थ्य या जीवन मूल्यों से समझौता करके कमाया हुआ पैसा भ्रमित करेगा, लालच बढ़ेगा जो तुम्हारे चरित्र को छिन्न भिन्न कर देगा ।

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हमेशा अपने दिल की सुनों ओर वही करो, अपने दिल पर पूरा भरोसा रखो । संशय मत रखो भले ही जमाना खिलाफ हो, दिल की आवाज को ही अंतिम सत्य मानों ।

तुम्हारा भविष्य उज्जवल हो, शायद इसीलिए तुम्हें लाड़ करना भूल ही गया, बस तुम्हारी गलती का इंतजार और तुरंत डांट, समझाइश, गुस्सा, रूठना जैसे मेरा स्वभाव ही बन गया । कभी भी मेरे किसी भी निर्णय को तुमनें आज्ञाकारी बन कर स्वीकार किया ।

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स्वाध्याय कभी मत छोड़ना, भले ही एक दिन भोजन न कर सको लेकिन कोई भी किताब प्रतिदिन पड़ना, यह आत्मा की खुराक होती है, किताबें, साहित्य, हमारे धर्मग्रंथ , महापुरुषों की जीवनियां , संतों के प्रवचन बहुत बड़ी सौगात है, इनमें जीवन को जीने की कला ही नही आनंद से जीने के कई सरल सूत्र है । किताबें सबसे अच्छी दोस्त होती है ये याद रखना ।

सफलता का पैमाना आत्मसंतुष्टि होता है, न कि पैसा या भौतिक उपलब्धियां । इसलिए जमानें की दौड़ में खो मत जाना । मस्त रहना, बड़ों के प्रति आदर, सम्मान और सबसे पहले अपने स्वयं को भरपूर इज्जत देना । जिस प्रकार तुमने दादाजी को भगवान समझकर जो सेवा की वो तो में भी नहीं कर पाया, ऐसे ही मां, दादी के प्यार को तुम हमेशा अपने लिए भगवान की कृपा समझना ।

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बहुत कुछ है, मन में । संतोष है कि लाख गलतियों के बाद जीवन से कोई शिकायत नहीं, सुख दुख तो मन की अपेक्षा एवं नियती है, सबने भरपूर प्रेम दिया, सहयोग दिया, कई नादानियों मूर्खताओं के बावजूद दिल से साथ देने वाले सभी दोस्त याद आ रहे हैं । ओर वो सभी तुम पर प्रेमपूर्वक अपना समझेंगे इसमें कोई संशय नहीं ।

।। ॐ नमस्ते गणपतये ।।

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तुम्हारा –
सुनील
7354658638
[email protected]


सुनील भाई, अपनी एक तस्वीर और संक्षिप्त परिचय भी भेजें ब्रदर. नाउम्मीद न हों. आप स्वस्थ होकर घर लौटेंगे. आप की हिम्मत ही रोगों को परास्त करने का सबसे बड़ा हथियार है.
आभार
यशवंत

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जी सर नमस्ते. मेरा नाम सुनील गुप्ता है. पिपलियामंडी, जिला मन्दसौर, म.प्र. का निवासी हूं. मेरी वेबसाइट shiromanipariwar.in है. मैं सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहता हूं. निःशुल्क प्राथमिक कम्यूटर शिक्षा देता हूं. मीडिया फील्ड में एक साप्ताहिक अखबार ‘शिरोमणि’ नाम से वर्ष 2000 से प्रकाशित कर रहा हूं. व्यावसायिक गतिविधि की बात करें तो मैं फाउंडर डायरेक्टर हूं, शिरोमणि इंफोमीडिया प्रा. लि. का, 2010 से.

अंतिम पत्र ! फिर मिलेंगे ! ऐसा नहीं कि जीने की उम्मीद छोड़ दी हो, लेकिन जब ज़िन्दगी और मौत के फैसलें के लिए सिक्का उछल ही गया तो हेड आये या टेल उसके लिए तैयार रहना होगा बिना डर और बिना शंका के । यह फैंसला जो भी हो मुस्कुराते हुए स्वीकार करना है ।

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आमतौर पर मौत से सभी भय ही खाते हैं , क्योंकि जीने का मोह, अपनों का प्यार, सपनें, आनंद, योजनाएं और भी बहुत कुछ छूटने को होता है जो जीने की लालसा बढ़ाता है ।
जाना सबको है, लेकिन जाने का समय कहाँ हम तय कर पाते है, बस धर्मशाला है और खाली करना है ।

पुनर्जन्म या मोक्ष जो भी हो यह परमात्मा के हाथ में है,

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हाँ लेकिन तय है फिर जन्मा तो यहीं आऊंगा, आप सबके बीच नए रूप में !

एक अच्छे इंसान को भगवान के और अच्छे खिलाड़ी को अंपायर के सभी निर्णय को स्वीकार करना होता है, वह भी सहज भाव से, में भी मौत के इस फैसलें को मुस्कुराते हुए स्वीकार कर रहा हूँ, बिना किसी शिकायत के। क्योंकि आप सबसे वादा जो किया हुआ है- मुस्कुराहटों का..

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नोट- CT स्कैन रिपोर्ट के मुताबिक आज इन्फेक्शन 90% फैल गया है, जो साफ साफ मरने का सूचक है।

सुनील गुप्ता
पिपलियामंडी
7354658638
[email protected]

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आखिरी बात

लेखन की नई चुनौती!

3 Comments

3 Comments

  1. Anand Kaushal

    September 22, 2020 at 8:52 pm

    बेहद मार्मिक पत्र लेकिन जिस सर्वशक्तिमान ईश्वर पर सुनील जी आपको भरोसा है वो ही आपको इस विपदा से बाहर निकालेंगे, मेरी अनंत शुभकामनाएं और ईश्वर से प्रार्थना है कि आप जल्द स्वस्थ होकर अपने परिजनों के बीच वापस लौटें।

  2. ललित फरक्या

    September 23, 2020 at 8:13 pm

    मैं दुनिया की एकात्मक सत्ता के संचालक परमपिता परमेश्वर से प्रेरित श्री सुनिल जी को शतायु प्रदान करने की विनम्र प्रार्थना करता हूँ ताकि वे अपने पारिवारिक/सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करें और एक नये आयाम को हासिल करें।

  3. सुनील

    September 24, 2020 at 9:23 am

    जी सर,
    पूरा है विश्वास कि जल्दी ही ठीक होऊंगा ।
    प्रार्थनाएं और शुभकामनाएं अपना असर जरूर दिखाती है ।
    धन्यवाद !
    सुनील गुप्ता

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