-पुष्य मित्र-
दिलचस्प माहौल है-
- जिस अर्नब के पास रिपब्लिक जैसा नम्बर वन टीआरपी वाला भोंपू है।
- जिसके पीछे पूरी मोदी सरकार डट कर खड़ी है।
- जिसकी गिरफ्तारी का विरोध पत्रकारों और संपादकों के बड़े संगठन कर रहे हैं।
उसके लिए हम पर और आप पर दबाव बनाया जा रहा है कि हम उस गिरफ्तारी को नैतिकता के आधार पर गलत बता दें। हम कहें कि यह मीडिया की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।
क्यों, क्योंकि वे जानते हैं, टीआरपी नम्बर वन चैनल, पूरी मोदी सरकार और बड़े पत्रकारों के संगठनों के पास अपनी कोई विश्वसनीयता नहीं बची है। जब तक हमारे आपके जैसे छोटे और आम पत्रकार नहीं कहेन्गे कि गलत हुआ हैं, तब तक अर्नब के पक्ष में कभी माहौल नहीं बन पायेगा। यह फर्क सरकारी प्रोपोगेंडा और सच्चाई का है।
मगर मैं अपनी ताकत एक सरकारी सुपारी किलर के बचाव में खर्च नहीं करूंगा। जब यूपी में हमारे बीच का पत्रकार मिड डे मील के भ्रष्टाचार का खुलासा करने में गिरफ्तार होता है तब कौन हमारे साथ खड़ा होता है। मेरा संघर्ष अपने ऐसे साथियों के लिए होगा।
पोलिटिकल गैंगवार- मुंबई में जो हुआ है वह एक पोलिटिकल गैंगवार है। अर्नब पर मुंबई की सरकार ने इसलिये हमला किया, क्योंकि इस गैंगवार में वे अभी दस दिन पहले तक इस सरकार के खिलाफ सुपाड़ी किलर की भूमिका में थे। यह सभी पत्रकारों के लिए सीख है, जो पोलिटिकल पार्टियों के सुपाड़ी किलर बन जाते हैं। अभी जो लोग मीडिया की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नारा लगा रहे हैं, दरअसल वे भी इस गैंगवार के सिपाही हैं और अपने एक सेनापति के आउट होने पर फाऊल फाऊल चिल्ला रहे हैं।
एक और बात, इस पूरी कहानी में खुदकशी करने वाले की जगह सुशांत सिंह राजपूत को रख दीजिये, अर्नब की जगह रिया चक्रवर्ती को, तो अर्नब फिर से आपको अपने स्टूडियो में रिया की बाल खींच कर उसे गिरफ्तार करने की मांग करते नजर आयेंगे।
बाकी सब खैरियत है।
चलते चलते- अर्नब की गिरफ्तारी से हम पत्रकारों का एक लाभ तो हुआ कि अब मोदी सरकार भी मीडिया की स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात कर रही है। अब देखना है कि यह सिद्धांत उन्हें कितने दिन याद रहता है।