Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

सुपारी किलर चैनलों की ये विषकन्याएं सरकार से सवाल पूछने वालों के साथ स्टूडियो में जो सुलूक करती हैं, क्या वह निंदनीय नहीं है?

अनिल जैन-

देश के सबसे बड़े सुपारी किलर टीवी चैनल की विषकन्या के साथ कल मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे आपत्तिजनक या गैरजरूरी कह कर उसकी निंदा की जाए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपत्तिजनक, गैरजरूरी और निंदनीय तो वह होता है जो ये विषकन्याएं टीवी स्टूडियो में बैठकर उन लोगों के साथ करती हैं जो सरकार से सवाल पूछते हैं।

कल जो हुआ वह बिल्कुल लाजिमी था और बिकाऊ मीडिया के जरखरीद मुलाजिमों के साथ आगे भी ऐसा ही होना चाहिए।

कल की घटना ने सभी सुपारी किलर टीवी चैनलों और अखबारों के मालिकों तथा उनके दलाल मुलाजिमों को अपने गिरेबां में झांकने का अवसर उपलब्ध कराया है। अगर वे नहीं सुधरेंगे बात आगे तक जाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जिन चमचमाते टीवी स्टुडियो में बैठ कर जिस भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) का अब तक बचाव किया जाता रहा है, वे स्टुडियो भी किसी दिन उसी मॉब लिंचिंग का शिकार होकर खंडित हो सकते हैं।

Sunita Shriniti- सहमत। मीडिया अगर तटस्थ-निष्पक्ष न होकर किसी ख़ास पक्ष के बेहया प्रवक्ता के तौर पर काम करेगा और उस ख़ास पक्ष के हाथों बिक चुका होगा, तो उसके कर्णधारों और जरखरीद मुलाजिमों के साथ ऐसा ही होगा… उनके ख़िलाफ़ “वापस जाओ” के नारों का जनाग्रह उभरेगा ही। वे मुलाजिम यदि आज़ाद हैं अपने आकाओं के पैरों में बिछकर शेष समाज की वीभत्सतापूर्ण भर्त्सना करने के लिए, तो शेष समाज भी इस आज़ाद भारत में स्वतंत्र है उनके ख़िलाफ़ “वापस जाओ” का नारा बुलंद करने के लिए। मीडिया का सर्वत्र सम्मान हो, इसके लिए मीडिया को भी सम्मान पाने लायक काम करना होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mohd Waseem- नोएडा मीडिया के एंकर और एन्करानिया जनता का विश्वास खो चुकी हैं… अब तो यह बस हर रोज़ का “मामूल” हो सकता है… न्यूज़ चैनलों के लिए,नोएडा मीडिया के केवल कुछ पत्रकारों को किसानों के द्वारा भगाए जा रहें हैं। (आजतक की पत्रकार को दौड़ाया गया.. ग्राउंड जीरो से उन्हें भागना पड़ा ..???) शायद!!! इन पत्रकारों को अब पता चलेगा कि जनता के बीचो-बीच की इज़्ज़त ज़्यादा महत्वपूर्ण है, या सरकारी देवताओं की ग़ुलामी…???

Sunita Shriniti- न सिर्फ़ “नोएडा मीडिया” बल्कि देश का बहुसंख्य मीडिया आमजन का विश्वास खो चुका है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही नहीं, बल्कि प्रिंट मीडिया का बहुतायत भी इसी जमात में शामिल है। हिन्दी सहित भाषाई मीडिया ने तो भाजपा की कठपुतली बनने में हद कर दी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement