अपने हक के प्रति सचेत होने, उसके लिए उठ खड़े होने और अंतत: जंग-ए-मैदान में उतर पडऩे के दौरान जितने तरह के अनुभव होते हैं, हैरानियां होती हैं, चौंकाने वाले वाकये होते हैं, विस्मय होते हैं, जितने तरह की शंकाएं-आशंकाएं घेरती-उपजती-डराती-परेशान करती हैं, मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक वेतन एवं सुविधाएं पाने-हासिल करने के लिए चल रही कानूनी लड़ाई ने हमें तकरीबन इन सबसे परिचित-अवगत करा दिया है। इसने, खासकर व्यवस्था के उन सभी रंग-रूपों को देखने का मौका मुहैया करा दिया है, जिसे पत्रकार होने के बावजूद अब तक हम उन लोगों की जुबानी सुनकर शब्दाकार देते रहे हैं जो भुक्तभोगी-पीडि़त होते हैं।
इस संदर्भ में ताजातरीन तजुर्बा चंडीगढ़ श्रम विभाग के दफ्तर का चक्कर काटने में हुआ। कुछ दिन पहले इस कार्यालय के फेरे में पता चला कि इसके पास द ट्रिब्यून के अलावा चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले किसी अन्य अखबार का कोई लेखा-जोखा नहीं है। पंजाब और हरियाणा की राजधानी एवं खुद केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद चंडीगढ़ के श्रम महकमे का यह हाल हमारे सरीखों को बेहाल कर देने के लिए पर्याप्त है। बता दें कि चंडीगढ़ से देश के सभी बड़े अंग्रेजी, हिंदी अखबार प्रकाशित होते ही हैं, क्षेत्रीय एवं स्थानीय स्तर के भी पंजाबी समेत हिंदी, अंग्रेजी के अनेक अच्छी साज-सज्जा वाले, पठनीय अखबार निकलते हैं।
लेकिन श्रमिकों-कामगारों-कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा-रखवाली का कथित बीड़ा उठाए रखने का दावा करने वाले इस लेबर कमिश्नर कार्यालय के मुलाजिमों के रुख-रवैये, तत्परता-सक्रियता, मजीठिया संबंधी सवालों के जवाब देने की उनकी तैयारी ने 22 मई 2014 दिन शुक्रवार के फेरे ने भौंचक-विस्मित कर दिया। हमारे संगी-साथियों ने मजीठिया से जुड़ी जितनी भी जानकारियां उनसे मांगीं, उन्होंने अपने भरसक सटीक एवं स्पष्ट रूप से दीं। उन्होंने खुद ही बताना शुरू कर दिया कि मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में सुप्रीम कोर्ट का 28-04-2015 का आदेश उन्हें मिल गया है। उसे लेकर एक उच्च स्तरीय मीटिंग भी हो चुकी है। आप लोग उस मीटिंग में नहीं आए थे? नहीं का जवाब सुनने पर एक सीनियर मुलाजिम ने तपाक से कहा- उसमें तो सभी संबंधितों, अखबार कर्मचारी यूनियनों के लोगों, अनेक कर्मचारियों, मैनेजमेंट के लोगों आदि को बुलाया गया था। अनेक लोग आए भी थे। मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंथन हुआ और उस पर काम शुरू हो गया है।
यह पूछने पर कि क्या मजीठिया के सिलसिले में अखबारों की जांच-पड़ताल के लिए नोडल अफसरों/इंस्पेक्टरों की नियुक्ति हो गई है? तो जवाब सकारात्मक मिला। हमें तो यहां तक बताया गया कि कई अखबारों की ओर से मजीठिया लागू किए जाने की जानकारी भी आ गई है। क्या दैनिक भास्कर ने भी जानकारी उपलब्ध करा दी है? तो उनका जवाब था- नहीं, अभी देखा नहीं है। इस पर हमीं ने उन्हें अवगत कराया कि जनाब! भास्कर तो मजीठिया के नाम पर कर्मचारियों को फूटी कौड़ी तक देने को राजी नहीं है। उल्टे, मजीठिया मांगने वालों को वह राक्षसी-दानवी-शैतानी रूप दिखाने, वैसा ही कारनामा-कृत्य करने पर आमादा है। थोड़ी तसल्ली तब हुई जब श्रम कार्यालय के जिम्मेदार लोगों ने थोड़ी सख्ती से कहा कि- जो भी हो, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार जानकारी सभी अखबारों से ली जाएगी। और उसी के मुताबिक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाएगी।
इसी क्रम में द ट्रिब्यून में मजीठिया वेज बोर्ड लागू किए जाने की सगर्व जानकारी उनकी ओर से दी गई। यह भी बताया गया कि हालांकि वहां दो कर्मचारी यूनियनें हैं और दोनों की अपनी-अपनी मांगें रही हैं। लेकिन वहां की मैनेजमेंट ने मजीठिया क्रियान्वयन में दोनों का ख्याल रखा है। यूनियन की चर्चा चलते ही वे अपने यहां पंजीकृत अखबार कर्मचारियों की यूनियनों का ब्योरा देने से नहीं चूके। दैनिक भास्कर की भी एक कर्मचारी यूनियन का उन्होंने जिक्र किया। उसकी सक्रियता की बाबत पूछने पर पता चला कि वह महज कागजी यूनियन है जो मालिकों का हित साधने के लिए गढ़ी गई है।
यहां से एक और अहम जानकारी यह भी मिली कि अखबारों के कार्यालय-प्रकाशन केंद्र ट्राईसिटी यानी चंडीगढ़, पंचकूला या मोहाली में कहीं भी हों, मजीठिया से संबद्ध उनकी जानकारी इस कार्यालय में धड़ल्ले से दी जा सकती है।
बहरहाल जो भी हो, एक बात तो साफ है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने चंडीगढ़ लेबर कमिश्नर और उनके दफ्तर के संबंधित अफसरों एवं मुलाजिमों के होश उड़ा रखे हैं। उनके बर्ताव ने जता दिया है कि वे मजीठिया क्रियान्वयन से जुड़ी सारी जानकारी चुस्ती एवं तेजी से इकट्ठा करने में किसी तरह की कोताही कत्तई नहीं बरतेंगे। जाहिरा तौर पर उन्हें ऊपर से सख्त निर्देश मिले हैं। क्योंकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कंटेम्प्ट खुला (ओपन) है। अगर किसी भी नोडल अफसर/इंस्पेक्टर ने आधी-अधूरी, अनाप-शनाप या गलत-सलत रिपोर्ट दी और वही सुप्रीम कोर्ट को प्रेषित कर दी गई और इसका खुलासा होने पर प्रभावितों की ओर से शिकायत कर दी गई तो संबंधित लेबर कमिश्नर, अफसर बच नहीं पाएंगे। उन पर भी अवमानना की गाज गिर सकती है।
ऐसे में हम कर्मचारियों की भी पूरी जिम्मेदारी है कि इस मामले में पूरी तरह सजग रहें और जांच अधिकारियों को अपनी ओर से भरपूर और सटीक जानकारी मुहैया कराएं। संभव हो तो इस पर भी नजर रखें कि रिपोर्ट गलत न जाने पाए।
भूपेंद्र प्रतिबद्ध से संपर्क : 9417556066
Kashinath Matale
May 24, 2015 at 10:20 am
Bahut badhiya jankari publish ki hai. Labour department ne karvai karni chahiye.