Yashwant Singh : संपादक को अपने व्यवहार और दिमाग से कैसा होना चाहिए… मैं जो समझ पाता हूं वो ये कि उसे नितांत डेमोक्रेटिक होना चाहिए. सबकी सुने…सबको मौका दे.. सरल-सहज रहे ताकि उससे कोई भी मिल जुल कह बता सके… नकारात्मकता न हो… कोई बुरा कहे तो जज्ब कर ले… कोई अच्छा करे तो उसे वाहवाही दे दे… आज के दौर के युवा संपादकों की बात करें तो कुछ ही हैं जो इस पैमाने पर खरे उतरते हैं… सुप्रिय प्रसाद को उनमें से एक मानता हूं…
सुप्रिय प्रसाद
सुप्रिय टीवी टुडे ग्रुप के सभी न्यूज चैनलों के मैनेजिंग एडिटर हैं…. जाहिर है, आजतक चैनल उनकी टाप प्रियारिटी में रहता है… सुप्रिय ने हिंदी टीवी पत्रकारिता के जनक एसपी सिंह के साथ लंबे समय तक काम किया.. आईआईएमसी से पढ़े सुप्रिय ने टेलीविजन की तकनीक और इसकी विशिष्टता को पकड़ा-समझा… और यूं कंटेंट-विजुवल के मास्टर बने…
वे सुबह आंख खुलने और रात सोने से पहले तक लगातार कई न्यूज चैनलों को मानीटर करते रहते हैं… चाहें वे घर रहें या आफिस… उनके इर्द गिर्द कई स्क्रीन पर कई हिंदी अंग्रेजी चैनल म्यूट मोड में लगातार चलते रहते हैं…
उन्हें ठीक ठीक पता रहता है कि कब क्या चलना चाहिए आजतक पर… हां, हम आप उनके प्रयोगों की आलोचना कर सकते हैं, वैचारिक आधार पर… लेकिन ये सच है कि उन्होंने आजतक न्यूज चैनल को कंटेंट से लेकर टीआरपी तक में हमेशा नंबर वन बनाए रखा…
ये भी सच है कि नंबर वन हो जाना बड़ी बात नहीं होती… नंबर वन हो जाने के बाद इस नंबर वन की कुर्सी पर बने रहना मुश्किल काम होता है… आजतक नबर वन न्यूज चैनल है और जमाने से नंबर वन है… इसकी काट तलाशने की बहुत कोशिश हुई लेकिन कोई कामयाब न हो पाया…
संपादकीय गुणवत्ता, दर्शनीयता, टीआरपी, देश और समाज के हितों के साथ कदम-ताल करते हुए फैसले लेने पड़ते हैं… बहुत कुछ होता है जिसके आधार पर खबर / विजुअल को लेकर फाइनल डिसीजन की ओर बढ़ना पड़ता है… लेकिन सुप्रिय उलझते नहीं… वे तुरंत फैसले करते हैं… टेलीविजन में देरी-सुस्ती चलती भी नहीं… सुप्रिय की टीवी की समझ और फैसले लेने की तेजी उन्हें सबसे अलग बनाती है.. यही वजह है कि सुप्रिय बरसों से आजतक के संपादक हैं… और, अब तो पूरे ग्रुप के सभी चैनलों के मैनेजिंग एडिटर हैं…
सुप्रिय के बारे में ये मेरा निजी आकलन है… जरूरी नहीं कि आपका नजरिया इससे मेल खाए… ये भी सच है कि मैंने उनके साथ कभी काम नहीं किया.. इसलिए आफिस के अंदर के उनके व्यवहार-रवैये के बारे में नहीं जानता… लेकिन उनके साथ काम कर चुके और करने वाले कई लोगों को अक्सर ये कहते सुना हूं- ”सुप्रिय मीडिया इंडस्ट्री के सर्वश्रेष्ठ बॉसेज में से एक हैं”.
सुप्रिय के खिलाफ, आजतक चैनल के खिलाफ और इस समूह के मालिकों के खिलाफ भड़ास पर कई दफे खबरें छपी…. लेकिन सुप्रिय ने कभी बुरा नहीं माना… वो जानते हैं कि भड़ास होने का क्या मतलब है.. उनका व्यवहार न बदला… मैं कई बार सोचता हूं कि उनकी जगह मैं खुद होता तो क्या ऐसा व्यवहार अगले के साथ कर पाता… मैंने दशक भर में कई संपादक देखे हैं जो अच्छा छपने पर तो खुश रहते हैं लेकिन जहां कोई एक खबर उनके या उनके संस्थान के खिलाफ छपी, एकदम से गदा लेकर हनुमान बन जाते हैं… गदर काटने पर तुल जाते रहे हैं… खैर, यह सब हमेशा होता है, जो खबर के कामकाज से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें अच्छे से पता होता है…
सुप्रिय की चर्चा यहां यूं कर रहा था कि उनका एक इंटरव्यू मैंने वर्ष दो हजार दस में लिया था. तब वो इंटरव्यू मैंने लिखकर भड़ास पर प्रकाशित किया था. टेक्स्ट फारमेट में. उसी दरम्यान यूं ही, बातचीत के कुछ वीडियो क्लिप्स भी तैयार कर लिया था… कल एक हार्ड ड्राइव चेक करते हुए संयोग से वो वीडियो क्लिप्स मुझे मिल गए… अब जबकि मैं वीडियो एडिटिंग भी सीख रहा हूं तो फौरन उन वीडियो क्लिप्स को जोड़कर यूट्यूब पर अपलोड कर दिया… सुप्रिय को सुनिए… ये आठ साल पहले वाले सुप्रिय हैं… जब उनको मैंने ये वीडियो लिंक भेजा तो बोले- अब तो नया इंटरव्यू लेने का वक्त आ गया है… मैंने जवाब दिया- आपने मेरे मुंह की बात छीन ली…
सुप्रिय के पुराने वीडियो इंटरव्यू को देखने के लिए नीचे क्लिक करें…
https://www.youtube.com/watch?v=Kniys9qyXyQ
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
आलोक शुक्ला
July 4, 2019 at 5:08 pm
यकीनन … He is the king
Agastya Arunachal
July 21, 2019 at 9:19 pm
एक घटना याद आ रही है। मैं उस समय नाइट शिफ्ट में था। अगर सुप्रिय से मुलाकात होती, तो वो आमने-सामने निर्देश देते थे, अन्यथा फोन पर। उस रात ज़्यादा काम नहीं था। अगले दिन इलेक्शन काउंटिंग थी और सुबह 6 बजे से स्टूडियो लाइव था। सुप्रिय ने स्टूडियो सेट तैयार करने से जुड़े कुछ निर्देश दिये और लगभग 12 बजे, यानी आधी रात को घर के लिए निकले।
सुबह करीब 4 बजे मैं स्टूडियो में चल रहा काम देख रहा था। अचानक पीछे से आवाज़ आई। क्या हो रहा है जी? पीछे मुड़कर देखा, तो सुप्रिय खड़े थे। लाल रंग की शर्ट, बाल गीले…
रात 12 बजे से 4 बजे के बीच वो वीडियोकॉन टावर से पटपड़पड़गंज स्थित अपने घर गए, थोड़ा आराम किया होगा, नहाया-धोया होगा। फिर सुबह 4 बजे दफ्तर हाज़िर।
उनका सान्निध्य छूटे वर्षों हो चुके, लेकिन नतीजे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने की उनसे मिली प्रेरणा आज भी ताज़ा रहती है। शायद अंतिम सांस के साथ ही इस प्रेरणा का अंत होगा…