प्रिय प्राणनाथ,
तुम्हारा हर सर्जीकल मुझे फर्जीकल सा क्यों लगता है? तुम बिल्कुल भी नहीं बदले, वही चालबाजियां …वही गलतबयानियां ! बरसों पहले तुम अचानक घर छोड़ कर हिमालय चले गये, मेरे लिये यह किसी सर्जीकल स्ट्राईक सी घटना थी. बाद में पता चला कि तुम हिमालय कभी नहीं गये, बल्कि उस रात भी गृहत्याग कर संघ कार्यालय जा छिपे थे. प्राणनाथ, तुम प्रारम्भ से ही काफी फर्जीकल रहे हो!
सुना है कि तुम्हारी इसी फर्जीक्लेटी की बदौलत यह देश जिसके तुम शासक हो, एक गैरजरूरी युद्ध का अवश्यम्भावी शिकार हो गया है. सरहदें आग उगल रही है. आतंक साक्षात आर्मी कैम्पों तक घुस आया है. देश भयंकर असुरक्षा महसूस रहा है.
मीडिया ने बताया कि तुम आजकल रात रात भर जगे रहते हो, कुर्सी पर ही रात गुजार देते हो. जब देश की जनता सो जाती है, तुम भूखे प्यासे, बिना एक गिलास पानी पीये सेना को साथ लिये बगैर अकेले पड़ौसी दुश्मन देश पर सर्जीकल अटैक करके उधर भारी मारा मारी करके बड़े तड़के लौट आते हो. तुम्हारे इस करतब को मेरे अलावा सिर्फ कुछेक टीवी वाले भाई ही आज तक समझ पाये हैं. सिकुलरों, खांग्रेसियों, आपियों और युद्ध विरोधियों को तुम्हारे छप्पन इंच के सीने से जरूर जलन हो रही होगी, उनकी चिन्ता मत करना.
मैं जानती हूं इस देश की सोयी हुई प्रजा तुम्हारी इस अद्भूत और उत्कृष्ट राष्ट्रभक्ति को कभी समझ नहीं पायेगी. लोग ये भी न जान पाएंगे कि ऐसे सर्जिकल हमले पहले भी दूसरी सरकारों के समय होते रहे हैं. लेकिन तब सेना को राजनीति से दूर रखा जाता था. सेना की गतिविधियों पर राजनीति या युद्धोन्माद नहीं क्रिएट किया जाता था. खैर छोड़ो, बात जरा लम्बी हो गई. इस मुश्किल वक्त में मैं तो तुम्हारे साथ ही हूं, भले ही जिन्हें सरहद पर तुम्हारे साथ होना चाहिये, वो सीमा के बजाय शहर की सड़कों पर डंडा, टोपी लगाये पथ संचलन कर रहे हैं.काश, वे भी तुम्हारे सर्जिकल काम में तुम्हारा साथ देते.
चलो युद्ध कर लो, फिर चुनावी युद्ध भी जीतना है. जरूरत पड़े तो आपातकाल का उपकरण भी काम में ले लेना ताकि ये देशी चूं चूं के मुरब्बे शांत हो जायें.
आर्यपुत्र, मैं तुम्हारी युद्ध अभीप्सा को प्रणाम करती हूं और असीम शुभकामनाएं देती हूं.
युद्धरत इस समय में …
तुम्हारी
सदैव सी
जशोदा
इस व्यंग्य कथा के लेखक सोशल एक्टिविस्ट Bhanwar Meghwanshi हैं जिनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
Sanjay Kumar
October 6, 2016 at 12:24 pm
सही है देश में लोकतन्त्र है कुछ भी भौंक लो। बुद्धिजीवी होने के दिखावे की आड में आपको पूरा अधिकार है कि आप मुंह ये जितना चाहो हग लो । यहां अंग्रेजी वाला नहीं हिन्दी वाला हगना प्रयोग हुआ है।
shekhar
October 7, 2016 at 2:58 am
प्रिय प्राणप्यारी ,
तुम्हारे पत्र का उत्तर देना मेरे लिए आवश्यक है ,
पहली बात ये कि मैं हिमालय तब नही गया था लेकिन अब जाता हूँ, अपने त्योहारों को उन लोगों के साथ मनाने जो सीमा पर सब कुछ त्याग कर हमारी और तुम्हारी रक्षा करते हैं ,
मैं युद्ध के पक्ष में नहीं हूँ लेकिन जवाब देना पड़ता है कभी कभी, वो लोग जो कल तक मुझसे इस हमले पर सवाल पूछ रहे थे कि मोदी जी आप हमला कब करोगे , आज ये सवाल पूछ रहे हैं कि हमला क्यों किया, कुछ गद्दार तो इन हमलों को फर्जी बता रहे हैं। तुमने सही कहा इनके दिल में जलन हो रही है, ये वो लोग हैं जिनका दिल पकिस्तान के लिए धड़कता है
इस देश की जनता यदि अपने देश को मज़हब से ऊपर समझती है तो मेरे राष्ट्रवाद को भी समझेगी, और जिनको ये समझ में नहीं आता उनको मैं समझाना भी जानता हूँ,
दूसरी सरकारों के समय सर्जिकल स्ट्राइक हुए होंगे पर किसी ने उन से सवाल नहीं पूछे थे
ये तुम किन लोगों के चक्कर में आ गयी, ये वो लोग हैं जो अफ़ज़ल गुरु को समर्थन देने वालों के साथ सहानभूति रखते हैं और बतला हाउस में वारने वाले शहीदों का अपमान करते हैं , ये वो लोग हैं जो एक मुस्लमान के वोट की खातिर अपने देश को बेच डालें
ये वो लोग हैं जिन्होंने दलाली कर के देश को कहीं का नहीं रक्खा , मुझे चुनाव जीतना है क्योंकि यदि मैं हार गया तो देश हार जायेगा , इस बार ये सत्ता के दलाल देश को ISIS के हाथों में सौंप देंगे
चिंता मत करो, तुम इस देश की नागरिक हो और तुम्हारी रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है
नरेंद्र