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दिल्ली

पंडित नेहरू ने कृपलानी से कहा था- तुमसे पूछने की जरूरत क्या है?

नई दिल्ली : प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं महात्मा गाँधी के अनन्य सहयोगी आचार्य जेबी कृपलानी की ३३वीं पुण्यतिथि पर आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा ‘कृपलानी स्मृति व्याख्यान’ का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राज्य सभा सांसद जनार्दन द्विवेदी ने मौजूदा राजनीति पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आज राजनीति व्यक्तिवादी हो गई है। इससे कोई दल अछूता नहीं है। सब एक ही तरह की राजनीतिक धारा में बह रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के विपरीत है। एक ज़माने में समाजवादी कार्यकर्ता रहे जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा सिलसिला चल गया है, जिसमें व्यक्ति बिना कार्यकर्ता हुए पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंच जाता है। यह तो वैसे ही है जैसे आप कभी विद्यार्थी रहे नहीं और अध्यापक बन गए।

<p>नई दिल्ली : प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं महात्मा गाँधी के अनन्य सहयोगी आचार्य जेबी कृपलानी की ३३वीं पुण्यतिथि पर आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा 'कृपलानी स्मृति व्याख्यान' का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राज्य सभा सांसद जनार्दन द्विवेदी ने मौजूदा राजनीति पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आज राजनीति व्यक्तिवादी हो गई है। इससे कोई दल अछूता नहीं है। सब एक ही तरह की राजनीतिक धारा में बह रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के विपरीत है। एक ज़माने में समाजवादी कार्यकर्ता रहे जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा सिलसिला चल गया है, जिसमें व्यक्ति बिना कार्यकर्ता हुए पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंच जाता है। यह तो वैसे ही है जैसे आप कभी विद्यार्थी रहे नहीं और अध्यापक बन गए।</p>

नई दिल्ली : प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं महात्मा गाँधी के अनन्य सहयोगी आचार्य जेबी कृपलानी की ३३वीं पुण्यतिथि पर आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा ‘कृपलानी स्मृति व्याख्यान’ का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राज्य सभा सांसद जनार्दन द्विवेदी ने मौजूदा राजनीति पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आज राजनीति व्यक्तिवादी हो गई है। इससे कोई दल अछूता नहीं है। सब एक ही तरह की राजनीतिक धारा में बह रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के विपरीत है। एक ज़माने में समाजवादी कार्यकर्ता रहे जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा सिलसिला चल गया है, जिसमें व्यक्ति बिना कार्यकर्ता हुए पार्टी के शीर्ष पद पर पहुंच जाता है। यह तो वैसे ही है जैसे आप कभी विद्यार्थी रहे नहीं और अध्यापक बन गए।

आचार्य कृपलानी के बारे में मुख्य अतिथि ने कहा कि वे राजनीतिक जरूर थे लेकिन उनका दिमाग गैरसरकारी था। वे हमेशा जनसरोकार के बारे में सोचते थे। जब 1978 में कृपलानी ने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने की घोषणा की थी तो वह सशर्त थी। उन्होंने कहा था कि यदि जनता को जरूरत पड़ी तो मैं फिर राजनीति के मैदान में कूद पडूंगा। आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं आचार्य कृपलानी के जीवनी लेखक पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा कि बतौर कांग्रेस अध्यक्ष जेबी कृपालनी ने गांधी जी को अपना त्यागपत्र सौंप कर एक बड़ा राजनीतिक सवाल खड़ा किया था। वह तब भी प्रासंगिक था और आज भी है। वे आगे कहते हैं कि जब अध्यक्ष रहते हुए कृपलानी ने सरकार के मुखिया पंडित जवाहर लाल नेहरू से पार्टी अध्यक्ष की राय न लेने की वजह पूछी थी तो पंडित नेहरू ने कहा तुमसे पूछने की क्या जरूरत है। सरकार के मुखिया और पार्टी अध्यक्ष के बीच संबंध को लेकर जो सवाल कृपलानी ने खड़ा किया था, वह कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए यक्ष प्रश्न है। उन्होंने मुख्य अतिथि जनार्दन द्विवेदी को जेबी कृपलानी की राह का अनुगामी बताया।

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मुख्य अतिथि के वक्तव्य के बाद ट्रस्ट की वेबसाइट (www.kripalanimemorialtrust.org) का लोकार्पण भी किया गया। व्याख्यान में श्रोता के रूप में उपस्थित महत्वपूर्ण लोगों में पी. गोपीनाथन नायर, सतपाल ग्रोवर, पी.वी. राजगोपालन, पी.एम. त्रिपाठी, मंजू मोहन, कुसुम शाह, इंदु बहन, बी. मिश्रा, पत्रकार एवं लेखक अरुण कुमार त्रिपाठी एवं अरुण तिवारी जैसे लोग शामिल रहे। वैसे कार्यक्रम में हर उम्र के अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे लेकिन इतने गंभीर कार्यक्रम में युवाओं की अच्छी संख्या में उपस्थिति उत्साहवर्द्धक थी। सभी श्रोता कार्यक्रम के अंत तक जमे रहे। अंत में, गाँधी शांति प्रतिष्ठान के मंत्री सुरेन्द्र कुमार ने अतिथियों एवं श्रोताओं के प्रति धन्यवाद एवं आभार प्रकट किया।

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