Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

जब कुमार आनंद ने सीधे विवेक गोयनका को इस्तीफा दिया और दुबारा एक्सप्रेस बिल्डिंग की सीढियों पर नहीं चढ़े

Ambrish Kumar : एक साथी ने आनंद जी के बारे में विस्तार से लिखने को कहा तो कुछ तो लिखा ही जाये. कुमार आनंद टिकमानी यानी ‘इंतजाम बहादुर’. कुमार आनंद नब्बे के दशक में वे बिहार से आने वाले सबसे प्रतिभाशाली पत्रकारों में शुमार थे. पूरा नाम कुमार आनंद टिकमानी जिला मुजफ्फरपुर बिहार. जनसत्ता में तेरह बार इस्तीफा दिया जो अंतिम बार ही मंजूर हुआ. देश के ज्यादातर बड़े अखबारों में रहे. ‘पीटीआई भाषा’ के संपादक रहे और इस समय किसान चैनल के प्रमुख सलाहकार है. कल ही उनका फोन भी आया था और कुछ समय पहले उनकी बिटिया की शादी में दिल्ली भी गया था जिसकी दावत दिन में थी और बिहार से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों का अद्भुत मेल था. पर हम लोगों ने कहा इस दावत से काम नहीं चलेगा क्योंकि आप की शाम की दावत ही मशहूर रही है.

<p>Ambrish Kumar : एक साथी ने आनंद जी के बारे में विस्तार से लिखने को कहा तो कुछ तो लिखा ही जाये. कुमार आनंद टिकमानी यानी 'इंतजाम बहादुर'. कुमार आनंद नब्बे के दशक में वे बिहार से आने वाले सबसे प्रतिभाशाली पत्रकारों में शुमार थे. पूरा नाम कुमार आनंद टिकमानी जिला मुजफ्फरपुर बिहार. जनसत्ता में तेरह बार इस्तीफा दिया जो अंतिम बार ही मंजूर हुआ. देश के ज्यादातर बड़े अखबारों में रहे. 'पीटीआई भाषा' के संपादक रहे और इस समय किसान चैनल के प्रमुख सलाहकार है. कल ही उनका फोन भी आया था और कुछ समय पहले उनकी बिटिया की शादी में दिल्ली भी गया था जिसकी दावत दिन में थी और बिहार से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों का अद्भुत मेल था. पर हम लोगों ने कहा इस दावत से काम नहीं चलेगा क्योंकि आप की शाम की दावत ही मशहूर रही है.</p>

Ambrish Kumar : एक साथी ने आनंद जी के बारे में विस्तार से लिखने को कहा तो कुछ तो लिखा ही जाये. कुमार आनंद टिकमानी यानी ‘इंतजाम बहादुर’. कुमार आनंद नब्बे के दशक में वे बिहार से आने वाले सबसे प्रतिभाशाली पत्रकारों में शुमार थे. पूरा नाम कुमार आनंद टिकमानी जिला मुजफ्फरपुर बिहार. जनसत्ता में तेरह बार इस्तीफा दिया जो अंतिम बार ही मंजूर हुआ. देश के ज्यादातर बड़े अखबारों में रहे. ‘पीटीआई भाषा’ के संपादक रहे और इस समय किसान चैनल के प्रमुख सलाहकार है. कल ही उनका फोन भी आया था और कुछ समय पहले उनकी बिटिया की शादी में दिल्ली भी गया था जिसकी दावत दिन में थी और बिहार से लेकर दक्षिण भारतीय व्यंजनों का अद्भुत मेल था. पर हम लोगों ने कहा इस दावत से काम नहीं चलेगा क्योंकि आप की शाम की दावत ही मशहूर रही है.

1987 -88 में जनसत्ता में आया तो डेस्क पर था. रिपोर्टिंग का शौक था इसलिये तबके चीफ रिपोर्टर कुमार आनंद से ज्यादा बनने लगी. जन आंदोलनों की कवरेज से शुरुआत हुई फिर बनवारी जी ने किसान आंदोलन की कवरेज भी करवाई. तब जनसत्ता में ब्यूरो नहीं था. सब कुछ कुमार आनंद थे और उनके सिपहसालार जिनमे हम भी शामिल थे. ये कैलास सत्यार्थी तब स्वामी अग्निवेश के सहयोगी थे और आनंद जी ने एक नहीं कई बार कैलास सत्यार्थी के साथ भेजा. तब वे एक टुटही किस्म की जीप से चलते थे और 26 आशीर्वाद एपार्टमेंट के फ़्लैट से अपने को उठाते थे. यह एक उदाहरण है सिर्फ. आज दिल्ली के जितने बड़े नेता है तब सबको जनसत्ता रिपोर्टिंग वाले कक्ष में आनंद जी के सामने घंटो बैठे देखा है. तब हडतालों का दौर था और एक नहीं कई हड़ताल हुई. अपना नेतृत्व कुमार आनंद करते थे. एक्सप्रेस वाले भी साथ होते थे. मदिरा का दौर तभी शुरू हुआ जब शाम को हड़ताल के बाद पीछे टीटू की दुकान पर बैठक जमती थी. मना करने पर भी ये लोग मानते नहीं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

बाद में आनंद जी के घर पर दावत होती. वे खिलाते पिलाते पर काम भी जान निकाल कर करवाते. जनसत्ता की हर दावत का इंतजाम प्रभाष जी उन्ही को देते. बाद में उदारीकरण का दौर आया प्रभाष जोशी के बाद अखबार की रीति नीति बदलने की बात आई तो मामला बिगड़ गया. हम लोग खिलाफ थे प्रबंधन की इस नीति के. झंडा डंडा सब उठा. चार संस्करण में हस्ताक्षर अभियान चला. मैं प्लांट यूनियन का चुनाव लड़ रहा था. एकदम छात्रसंघ की तर्ज पर, नारे थे- अयोग्यता बैठी सिंघासन -योग्यता को मिले न आसन. ओमप्रकाश और हमने कामगार मोर्चा बना दिया था और उसका एकमात्र उम्मीदवार मैं था. माहौल गर्म था. हिंसा की आशंका भी. रात में करीब दो बजे नतीजे आये और मेरी जीत के एलान के साथ ही एक खेमे की तरफ से प्रभाष जोशी के लिये टिपण्णी हुई. इतना काफी था .आनंद जी और कुछ लोगों ने हाथ छोड़ दिया और फिर जमकर हिंसा. विवेक गोयनका से लेकर प्रभाष जोशी तक इस घटना से आहत थ. कुमार आन्नद से नाराज प्रभाष जी ने कहा- कोई कुछ कह देगा तो क्या मारपीट होगी. आनंद जी का जवाब था- आपके खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. मामला तूल पकड़ा और आनंद जी ने सीधे विवेक गोयनका को इस्तीफा दे दिया फिर लौट कर एक्सप्रेस बिल्डिंग की सीढियों पर नहीं चढ़े. बहुत कोशिश हुई उन्हें मनाने की समझाने की पर वे नहीं माने. यह एक फौरी और छोटा सा परिचय है कुमार आनंद टिकमानी का.

जनसत्ता अखबार से रिटायर हो चुके अंबरीश कुमार के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement