सिद्धार्थ ताबिश-
इस धर्म की जाने कितनी हदीसें हैं जो संगीत को पूरी तरह से “वर्जित” ठहरती हैं.. और उसी का नतीजा है ये.. अफगानिस्तान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूज़िक के संगीत वाद्य.. जिन्हें तालिबानियों ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है.. और अब जो आपसे ये कहे कि उनके धर्म में ऐसा कुछ नहीं लिखा है वो आपसे सिर्फ़ “झूठ” बोल रहा है.. यही सब लिखा है और तालिबान उस लिखे पर अक्षरशः चलते हैं।
आपके आसपास के “इस धर्म” को मानने वाले लोग अगर संगीत से इन तरह नफ़रत नहीं करते हैं तो वो असल में अपने धर्म का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहे हैं.. अगर वो करेंगे तो उन्हें भी अपने यहां संगीत वाद्यों को ऐसे ही तोड़ना पड़ेगा.. कट्टरता जैसी कोई चीज़ नहीं है इस विचारधारा में.. इसमें या तो आप पूरी तरह से धार्मिक होते हैं या कम धार्मिक होते हैं.. तालिबान कट्टर नहीं हैं, वो बस पूर्ण रूप से धार्मिक हैं।
तालिबान जब बुद्ध की मूर्तियां तोड़ते हैं तो वो बस अपने धर्म संस्थापक के पदचिन्हों पर चलते हैं.. तालिबान अगर संगीत वाद्यों को तोड़ते हैं तो वो बस अपने धर्म संस्थापक की आज्ञा का पालन करते हैं.. तालिबान अगर व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों इत्यादि की हत्या करते हैं तो वो बस अपने धर्म संस्थापक के पदचिन्हों पर चलते हैं।
इनके “संस्थापक” ने मूर्तियां तोड़ी, व्यंग्यकारों के गले कटवाए, और संगीत वाद्य और संगीत से नफ़रत की.. तो क्या वो कट्टर थे?
नहीं.. ये कट्टरता नहीं है.. यही असल शिक्षा है इस विचारधारा की.. आप मानें या न मानें वो आप पर निर्भर है.. मगर आप अगर पूरी तरह से इस धर्म के “धार्मिक व्यक्ति” बनेंगे, तो आपको भी यही सब करना होगा।
मर्ज़ी आपकी है.. आप इसे चाहे तो झुठलाते रहें और गुड तालिबान, बैड तालिबान, जिओ पॉलिटिक्स, यहूदी साज़िश या जो भी चाहें, कहते रहिये.. ऐसे ही इसके मूल को “झुठलाने” और “नज़रंदाज़” करने की वजह से सारी दुनिया में ऐसी अफ़रातफ़री मची हुई है और चौदह सौ सालों से करोड़ों अरबों मासूमों की बलि चढ़ चुकी है।
~सिद्धार्थ ताबिश