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झारखंड

तारा शाहदेव प्रकरण में रांची पुलिस और पत्रकारों का खेल

रांची का तारा शाहदेव रक़ीबुल हसन प्रकरण केवल घरेलु हिंसा का मामला नहीं है। यह लव जेहाद से जुड़ा है और हमारी मातृसत्तात्मक संस्कृति के हनन का अत्यंत गंभीर मामला है। रांची पुलिस के आला अधिकारी और कुछ बिकाऊ पत्रकारों ने शुरू में इस मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन कुछ निर्भीक प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने सच्चाई उभार कर रख दी। यह मामला इंडियन मुजाहिदीन और हवाला से भी जुड़ा है। अब इसकी भी जाँच होनी चाहिए कि वे कौन से आला पुलिस अधिकारी और क्राइम रिपोर्टर हैं जिन्होने मोटा पैसा खाया है?

<p>रांची का तारा शाहदेव रक़ीबुल हसन प्रकरण केवल घरेलु हिंसा का मामला नहीं है। यह लव जेहाद से जुड़ा है और हमारी मातृसत्तात्मक संस्कृति के हनन का अत्यंत गंभीर मामला है। रांची पुलिस के आला अधिकारी और कुछ बिकाऊ पत्रकारों ने शुरू में इस मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन कुछ निर्भीक प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने सच्चाई उभार कर रख दी। यह मामला इंडियन मुजाहिदीन और हवाला से भी जुड़ा है। अब इसकी भी जाँच होनी चाहिए कि वे कौन से आला पुलिस अधिकारी और क्राइम रिपोर्टर हैं जिन्होने मोटा पैसा खाया है?</p>

रांची का तारा शाहदेव रक़ीबुल हसन प्रकरण केवल घरेलु हिंसा का मामला नहीं है। यह लव जेहाद से जुड़ा है और हमारी मातृसत्तात्मक संस्कृति के हनन का अत्यंत गंभीर मामला है। रांची पुलिस के आला अधिकारी और कुछ बिकाऊ पत्रकारों ने शुरू में इस मामले को दबाने की कोशिश की लेकिन कुछ निर्भीक प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने सच्चाई उभार कर रख दी। यह मामला इंडियन मुजाहिदीन और हवाला से भी जुड़ा है। अब इसकी भी जाँच होनी चाहिए कि वे कौन से आला पुलिस अधिकारी और क्राइम रिपोर्टर हैं जिन्होने मोटा पैसा खाया है?

यह बहुत ही अमानवीय घटना है, लेकिन हमारे बड़े अधिकारी अपना ईमान और चरित्र धन पशुओं के सामने इस क़दर गिरवीं रख चुके हैं कि एक दलाल रक़ीबुल हसन के साथ पार्टनर बने हुए हैं। क्या यह सम्भव नहीं है की इस प्रकार के बड़े रसूख वाले लोग, आला अधिकारी और बिकाऊ पत्रकार पैसे के लिय अपनी बहन-बेटी की भी बोली लगा दें। क्या हमारी समाज और व्यवस्था इतनी पतनशील हो गयी है? पुलिस उसी पुरुषवादी मानसिकता से ग्रस्त है, जो स्त्री को भोग की वस्तु समझती है। तमाम कायदे-कानूनों को दरकिनार कर थानों में पीड़ित से बेहूदा सवाल पूछे जाते हैं।
 
मीडिया की क्या भूमिका है, इस पर भी सवाल उठाना बेहद जरुरी है| हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला यह भारतीय मीडिया क्या सच में लोकतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ है? और क्या हमें इसकी निष्पक्षता पर पूर्ण विश्वास करना चाहिये? ये सवाल मेरे नहीं हैं, ये सवाल हैं देश की आम जनता के|
 
पत्रकारिता में हाल फिलहाल कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। चाहे वो कन्टेन्ट के स्तर पर वैचारिक बलात्कार की परम्परा हो या फिर काले को सफेद बनाने के लिए मीडिया मंडियो मे लगती बोली। ऐसे में मीडिया पटरी व्यवसाय का रूप ले चूका है। झारखण्ड में कुछ मीडिया घराने ऐसे संपादक और पत्रकारों को रखे हुए हैं जो कोयला माफिया, आयरन माफिया और भ्रष्ट आला अधिकारियों के लिए दलाली का काम करते हैं। और रिपोर्ट नहीं छापने के नाम पर लाखो रूपया उगाही करते है। जिन को हम ‘पत्रकारिता माफिया’ कह सकते हैं। अगर इनकम टैक्स विभाग और आर्थिक अपराध अनुसन्धान विभाग आज जाँच करे तो अनेको संपादक और हाई प्रोफाइल पत्रकार नंगे हो जाएंगे। लेकिन आज किस की औकात की इन के ऊपर हाथ डाले।

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चौकीदार चोर बन जाये र्इमानों का क्या होगा?
नैतिकता निर्लज्ज बन गयी न्याय माँगता पैसा है,
सत्य ठोकरें दर-दर खाता पैसे का ही रैसा है।
खुद प्रत्यक्ष झूठ बन जाए अनुमानों का क्या होगा? चौकीदार…..
 
आज उलूकों ने हर डाली डाला अपना डेरा है,
रक्षक ही भक्षक बन बैठा संकट ग्रस्त बसेरा है।
बाड़ी स्वयं फसल खा जाये खलिहानों का क्या होगा ?
 
चौकीदार चोर बन जाये र्इमानों का क्या होगा?

मैं इस बात का बुरा नहीं मानता कि अखबार अपनी नीति के मुताबिक किसी खास तरह की खबरों को तरजीह दें, लेकिन मैं खबरों को दबाये जाने के खिलाफ हूँ क्योंकि इससे दुनिया की घटनाओं के बारे में सही राय बनाने का एकमात्र साधन जनता से छिन जाता है।

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सुबोध राणावत <[email protected]>  

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0 Comments

  1. ravishankar upadhaya

    September 2, 2014 at 5:31 am

    cbi ki janch hone par ranchi ke sbhi crime reporter ke naam bhi samne aayenge.jinhone ranjit kohli se mahnge gift liye ho.kuch ne to ladki ki bhi maang ki thi.unhone hi suru me mamle ko dabane ka prayas kiya lekin prabandhan ko pata chalne par unhe bhi khabar laikhni padi.ranchi ke news paper ko padhne par pata chal jayega ki kaun paper ka crime reporter ranjit ka aadmi hai?

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