Girish Malviya : आपको याद होगा कि देश की पहली निजी ट्रेन तेजस एक्सप्रेस की सफलता के बड़े ढोल पीटे गए थे…. बड़े पैमाने पर यह प्रचारित किया गया कि इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) द्वारा संचालित दिल्ली से लखनऊ के बीच इस ‘तेजस एक्सप्रेस’ को अक्टूबर में 70 लाख रुपए का मुनाफा हुआ है…
यह भी कहा गया कि इस ट्रेन के टिकटों की बिक्री से करीब 3.70 करोड़ रुपए का राजस्व मिला है… लेकिन आज संसद में इस झूठ की भी पोल खुल गयी है.. रेलमंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में बताया है कि 4 अक्टूबर से शुरू हुई दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस का 31 अक्टूबर तक ऑक्यूपैंसी लेवल केवल 62 फीसद था, जबकि अन्य ट्रेनों में सामान्यतया 70-100 फीसद की आक्यूपैंसी रहती है।
इस दौरान तेजस को 447.04 लाख रुपये की आमदनी व 439.31 लाख रुपये के खर्च के साथ महज 7.73 लाख रुपये का मुनाफा हुआ है। साफ है कि इसी रूट पर चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस हमेशा पूरी भर के चलती है वहीं तेजस में औसतन 62 फीसद सीटें ही बुक हो रही हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि रेलमंत्री कह रहे थे कि दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस को प्रायोगिक आधार पर चलाया गया है। इसके अनुभव के आधार पर अन्य प्राइवेट ट्रेनों के संचालन के बारे में फैसला किया जाएगा। तो क्या अब यह माना जाएगा कि प्राइवेट ट्रेन का कॉन्सेप्ट उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया है ओर जो 150 प्राइवेट ट्रेनें चलाने की बात थी, अब उस पर सरकार पुनर्विचार करेगी?
इंदौर के विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.
इसे भी पढ़ें-देखें…