Girish Malviya : कोई भी घोटाला यदि किसी वजह से सुर्खियों में आ जाता है तो अक्सर मीडिया उसका पूरा बैकग्राउंड जरूर बताता है। कोई न कोई बड़ी न्यूज़ वेबसाइट उस घोटाले की इतिहास की तफ्तीश करती रिपोर्ट जरूर छापती है जिसमे घटनाएं क्रोनोलॉजी के क्रम में छपी रहती हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि पिछले तीन दिनों से महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले को लेकर इतना बड़ा विवाद चल रहा है। लेकिन कोई भी मीडिया इस घोटाले का इतिहास नही बता रहा है… हमने जब इस बारे में खोजने का प्रयास किया तो इसका वास्तविक कारण पता चला कि हमाम में तो सभी नंगे हैं तो कौन दूसरे को नँगा कहेगा?
दअरसल सिंचाई घोटाले को लगभग 10 साल बीत चुके हैं। कहा जाता है जिस दौर में अजित पवार महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री रहे थे ओर महाराष्ट्र में काँग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी उस दौर में विदर्भ इलाक़े में कई सिंचाई परियोजनाओं की लागत ड्रामाई अंदाज़ में बढ़ा दी गई. उदाहरण के लिए समझिए कि राजीव गांधी के शासनकाल में नागपुर के पास जिस गोसीखुर्द सिंचाई परियोजना की मूल लागत 372 करोड़ रुपए आँकी गई थी वही लागत बढ़कर 14,000 करोड़ रुपए कर दी गई..
नियमों और प्रक्रियाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए तमाम सिंचाई परियोजनाओं को छोटे स्तर के अधिकारियों की ओर से मंज़ूरी दिला दी गई. इन ठेकों में बाज़ार भाव से काफी ज़्यादा कीमतों में माल खरीदा गया था. बड़ी बात तो यह थी ये सभी फैसले छोटे स्तर के अधिकारियों ने किए थे. जब यह घोटाला सामने आया तो हंगामा हो गया और बात इतनी बढ़ गयी कि सितंबर 2012 में इस घोटाले के चलते अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
इसके बाद कांग्रेस एनसीपी ने एक वाइट पेपर जारी कर अजित पवार को क्लीन चिट दे दी. कांग्रेसी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस घोटाले की जांच के लिए गठित कमिटी की रिपोर्ट जब सार्वजनिक की तब भी सारे नेता बेदाग निकल गए। इसके बाद वे दोबारा उप मुख्यमंत्री बने.
बाद में 2014 में कांग्रेस और NCP गठबंधन पराजित हुआ लेकिन शुरुआती 4 साल में सत्ता में आए बीजेपी शिवसेना गठबंधन ने इस घोटाले पर कोई कार्यवाही नहीं की. इसका कारण यह था कि सिंचाई घोटाले में अजित पंवार के अलावा बीजेपी और शिवसेना के नेताओं के नाम भी सामने आने लगे थे.
2016 में सिंचाई घोटाले में लगातार आरोपों से घिर चुकी एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवाब मलिक ने बयान दिया कि सिंचाई घोटाले का पैसा दिवंगत बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे और महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री एकनाथ खड़से को मिला है और महाराष्ट्र में कृष्णा घाटी सिंचाई परियोजना में हुए घोटाले में मुंडे और खड़से हिस्सेदार हैं।
2016 में ही सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने दावा किया कि शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि और बेटे आदित्य से जुड़ी कंपनियां सिंचाई घोटाले में लिप्त हैं। अंजली दमानिया ने मुम्बई में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की ओर पत्रकारों से कहा कि कमोद ट्रेडर्स प्राइवेट लिमिटेड और पद्मनिश एक्ज़िम प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनियों में ठाकरे परिवार के सदस्य रश्मि और आदित्य निदेशक हैं। रश्मि ठाकरे और आदित्य ठाकरे साथ में रश्मि के भाई पाटनकर और गिरीश आमोणकर कई कंपनियों में हैं, जिनका ताल्लुक सिंचाई घोटाले के आरोपी सुनील तटकरे के बेटे अनिकेत तटकरे से हुए सौदों में है।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद अंजली दमानिया ने नितिन गडकरी की केंद्र को लिखी एक चिट्ठी सामने लाया, जिसमें वह UPA सरकार के जल संसाधन मंत्री पवन बंसल को खत लिखकर विदर्भ के गोसीखुर्द बांध प्रोजेक्ट के लिए पैसे मांग रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में ठेकेदार गडकरी के ही दोस्त अजय संचेती और बीजेपी के एक नेता मितेश बांगड़िया हैं। खास बात यह है कि ठीक यही चिट्ठी बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर ने भी लिखी थी।
अंजलि ने इस मामले में बात करते हुए एनडीटीवी से कहा था कि वह इस मामले को लेकर अगस्त में गडकरी से मुंबई स्थित आवास पर मिली थीं, लेकिन उन्होंने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से रिश्तों की दुहाई देते हुए मामले को दबाने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि शरद पवार उनके लिए कुछ काम करते हैं तो वह भी उनके लिए कुछ काम कर देते हैं। गडकरी से यह सुनकर उन्हें काफी निराशा हुई थी।
ठीक ऐसे ही आरोप मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भी 2012 में लगाए थे जब उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र के कथित सिंचाई घोटाले में कई नेताओं को एक कंस्ट्रकशन कंपनी की ओर से 43 करोड़ रुपये की घूस दी गई. पाटकर के मुताबिक घूस का यह पैसा महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार, कांग्रेस नेता सुनील देशमुख, बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे को दिया गया है। यह सब लेनदेन आयकर विभाग की ओर से इस कंपनी पर की गई छापेमारी के दौरान जब्त की गई एक डायरी में मौजूद है। पाटकर के इन आरोपों को अजित पवार, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ने ही खारिज कर दिया था।
मतलब साफ है कि सिंचाई घोटाले में दबाया गया हजारों करोड़ रूपये सारे दलों के बड़े नेता मिल बाँट कर खा रहे थे और अभी सिंचाई घोटाले में जिन मामलों की जाँच एंटी करप्शन ब्यूरो ने बन्द की हो, वह हो सकता है कि बीजेपी नेताओं के इन्हीं मामलों से जुड़ा हुआ हो. इसलिए मुख्य मीडिया भी सिंचाई घोटाले की चर्चा करने से बच रहा है क्योंकि फिर से सारे गड़े मुर्दे उखाड़े जाएंगे!
इंदौर के चर्चित विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.