Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

टाइम्स आफ इंडिया पर हंस रहे हैं लोग!

टाइम्स आफ इंडिया ने हिंदी साहित्यकार गिरिराज किशोर के निधन की खबर पहले पन्ने पर तो छापी लेकिन इस खबर में फोटो लगा दिया विश्व हिंदू परिषद वाले गिरिराज किशोर का.

इस बड़ी चूक के चलते सोशल मीडिया पर टाइम्स आफ इंडिया की तरह तरह से लोग खिंचाई कर रहे हैं.


साहित्यकार गिरिराज किशोर के निधन पर कवि और प्रोफेसर पंकज चतुर्वेदी की ये टिप्पणी पढ़ें-

Advertisement. Scroll to continue reading.

Pankaj Chaturvedi : गिरिराज किशोर जी की विदाई… बीते चौबीस वर्षों से कानपुर में रहते हुए कभी यह नहीं लगा कि साहित्य के लिहाज़ से कमतर किसी शहर में रहता हूँ। कारण सिर्फ़ यह था कि यहाँ श्री गिरिराज किशोर रहते थे।

आत्म-समृद्धि के लिए वैसे तो बहुत कुछ चाहिए, लेकिन कभी-कभी कोई एक रचनाकार या रचना भी काफ़ी होती है। उनका होना मेरे तईं ऐसी ही आश्वस्ति और गरिमा का सबब था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कैसी विडम्बना है कि आज घर से बहुत दूर देहरादून में हूँ और यह दारुण ख़बर आ रही है कि सहसा हृदयाघात के चलते वह नहीं रहे। यह जानना मेरे ही लिए नहीं, व्यापक हिन्दी समाज के सन्दर्भ में दुखद और भयावह है।

वह एक बड़े लेखक थे और एक बड़े इनसान। ‘पहला गिरमिटिया’ और ‘बा’ सरीखे उपन्यासों की बदौलत अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के हिन्दी कथाकार।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आई.आई.टी., कानपुर में लम्बे समय तक सृजनात्मक लेखन केन्द्र के प्रोफ़ेसर एवं निदेशक रहे। विगत सदी के अन्तिम वर्षों में जब वह सेवानिवृत्त हुए, तो कानपुर में ही रहने का फ़ैसला किया ; जबकि राजधानी दिल्ली में उनका एक छोटा-सा फ़्लैट था, जिसे उन्होंने बेच दिया।

मुझे यह मालूम हुआ, तो मैं अचरज में पड़ गया। जिस दौर में ज़्यादातर महत्त्वपूर्ण कवि-लेखक साहित्य-संस्कृति की राजधानियों में बस जाना चाहते हैं, गिरिराज किशोर ने कानपुर को चुना और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने उनसे इस बाबत पूछा, तो बहुत सहज, शान्त और निरभिमान स्वर में बोले : ‘दिल्ली में मैं काम नहीं कर पाऊँगा।’

वह मूल्यनिष्ठा, कर्मशीलता, निस्पृहता, संवेदनशीलता और औदात्य की जीती-जागती मिसाल थे। फ़ासीवाद के अँधेरे समय में रौशनी की एक भरोसेमंद क़ंदील। आसन्न अतीत में वैचारिक असहमति के कारण मध्यप्रदेश के शीर्ष साहित्यिक सम्मान को वहाँ के दक्षिणपंथी मुख्यमंत्री के हाथों लेने से इनकार करनेवाले रचनाकार।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उनका जाना हिन्दी समाज, साहित्य और संस्कृति की दुनिया को विपन्न कर गया है। महज़ संयोग नहीं कि मुझे गांधी-मार्ग पर चलनेवाले हिन्दी के सबसे बड़े लेखक की विदाई पर गांधी के ही अनुयायी शीर्ष कवि भवानीप्रसाद मिश्र की ये कविता-पंक्तियाँ बरबस याद आ रही हैं :

“तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है
पर ख़ास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है
बस एक बात है, वह केवल ऐसी है
कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं।”

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement