Ravish Kumar : क्या आप ऐसी ट्रेन में सफर कर दिखा सकते हैं जो 57 घंटे लेट हों? अभी किसी ने ट्रेन की समय सारिणी का स्क्रीन शाट भेजा। यकीन नहीं हुआ। 15212 जननायक एक्सप्रेस 57 घंटे लेट चल रही है और अभी भी नहीं पहुंची है। अगर जननायकों का यह हाल होगा तो फिर नायकों का क्या होगा सर। यह ट्रेन अमृतसर से दरभंगा आती है। इसमें केवल जनरल बोगी है। ज़्यादातर मेहनतकश मज़दूर इसमें यात्रा करते हैं।
आम लोग टीवी की बहस से दूर कई तकलीफों से गुज़र रहे हैं। बेहतर होता कि हर स्टेशन पर डिबेट वाले चैनल लगा दिए जाएं ताकि लोगों को पता ही न चले कि ट्रेन लेट है। ट्रेन आ भी जाए तो वे गाड़ी छोड़कर डिबेट देखते रहें। इसी में उनका टाइम कट जाएगा। यह ट्रेन अमृतसर से दरभंगा आती है। इसमें केवल जनरल बोगी है। ज़्यादातर मेहनतकश मज़दूर इसमें यात्रा करते हैं।
एक और ट्रेन लेट थी। गोरखपुर देहरादून एक्सप्रेस। यह कुल 44 घंटे लेट थी। कल रात से एक बुजुर्ग जोड़ा गोंडा में इस गाड़ी के आने का इंतज़ार करता रहा। इन्हें बद्रीनाथ जाना था। ट्रेन कैंसिल हो गई। अब कोई स्टेशन गया है टिकट कैंसिल कराने। 44 घंटे ट्रेन लेट चले और उसके मंत्री को मीडिया डाइनेमिक लिखे यह सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट से ही संभव है, रेल मैनेजमेंट से नहीं।
भागलपुर ग़रीब रथ भी 16 घंटे लेट है। यात्रियों के भेजे स्क्रीन शॉट देख रहा हूं। लाखों यात्री परेशान हैं और रेल मंत्री बिना जवाबदेही के इमेज मैनेजमेंट से डाइनेमिक कहला रहे हैं। क्या इन यात्रियों के समय की कोई कीमत नहीं? अगर ये ट्रेन समय से चले तो लोग खुद ही रेल मंत्री को डाइनेमिक कहेंगें। मीडिया को चाटुकारिता करने की जरूरत ही नहीं होगी।
Santosh Singh : नई दिल्ली-भागलपुर एक्सप्रेस में बैठा हूँ। 12350 नम्बर की यह गाड़ी दिल्ली से भागलपुर (बिहार) जाती है। लगभग हर हफ्ते यात्रा करता हूँ पर पिछले 1-2 साल में यह पहला मौका है जब मैंने राजधानी एक्सप्रेस को छोड़के बिहार जानेवाली किसी दूसरी गाड़ी को कानपुर स्टेशन पर समय पर आते और समय से ही छूटते देखा।
लगता है कि Ravish Kumar की रेलगाड़ियों के विलंब से चलने के खिलाफ की मुहिम कुछ असर कर रही है। ऐसे समय में जब देश की लाखों जनता रोज अपने गंतव्य पर अंतहीन विलंब से पहुँच रही है तथा अपना और देश का कीमती समय बर्बाद कर रही है, कायदे से यह मुद्दा पक्ष-विपक्ष के नेताओं को उठाना चाहिये था। पर शायद उन्हें जनता के असली मुद्दे उठाने की जरूरत महसूस नही होती। उनके वोट-पोलिटिक्स के लिए जाति-धर्म के मुद्दे ही काफी है। ऐसे समय में एक पत्रकार द्वारा असली मुद्दे उठाना और एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करना तारीफ के काबिल है।
Pushya Mitra : आज रवीश की एक पोस्ट में देखा कि अमृतसर और दरभंगा के बीच चलने वाली जननायक एक्सप्रेस जो छह मई को अमृतसर से खुली थी, अभी तक दरभंगा नहीं पहुंची है. लहेरिया सराय स्टेशन पर खड़ी यह ट्रेन 58 घंटे लेट हो चुकी है. हालांकि मैंने रिसर्च किया तो पता चला कि यह भारत की सबसे लेट ट्रेन नहीं है. पिछले साल दस जनवरी को पटना-कोटा एक्सप्रेस 72 घंटे से भी अधिक लेट हो चुकी है. इस लिहाज से चार्टर अकाउंटेंट रेल मंत्री पीयूष गोयल, अपने पूर्ववर्ती चार्टर अकाउंटेंट रेल मंत्री सुरेश प्रभु का रिकार्ड तोड़ नहीं पाये हैं.
इसी मसले पर रिसर्च करते हुए एक स्टोरी दिखी कि जापान में अगर ट्रेन एक मिनट भी लेट होती है तो अनाउंसर बार-बार यात्रियों से माफी मांगता है और अगर लेट कुछ अधिक हुई तो सभी यात्रियों को एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, जिसपर ट्रेन लेट होने की बात दर्ज होती है ताकि वे अपने दफ्तर में इसे दिखा सकें. अमूमन यह स्थित कम आती है. आती भी है तो मिनटों की आती है, घंटों और दिनों की नहीं. यहां तो 58 घंटे और 72 घंटे के बाद भी रेलवे प्रसारण ठसक से रहता है, जैसे उसे यात्रियों को मंजिल पर पहुंचाकर अहसान किया हो. रेलवे रिजर्वेशन टिकट पर यह लिखने की परंपरा शुरू हुई है कि आपके टिकट के पैसे टैक्सपेयर ने चुकाये हैं. मगर चार्टर अकाउंटेंट रेल मंत्री महोदय यह परंपरा कब शुरू करेंगे कि ट्रेन लेट होने पर यात्रियों को हर्जाना दिया जाये. वे मेरी सलाह मांगेंगे तो मैं हर्जाने का इस तरह ब्रेकअप रखूंगा…
4 घंटे लेट- एक चौथाई किराया
8 घंटे लेट- आधा किराया
12 घंटे- पूरा किराया
12-24 घंटे- किराये का दुगुना
24-48 घंटे- न्यूनतम 10 हजार रुपये, क्योंकि एक दिन लेट होने पर कई तरह के काम का नुकसान होता है.
48 घंटे से अधिक लेट होने पर सभी यात्रियों को एक-एक लाख रुपये मुआवजा मिलना चाहिए.
आपकी क्या राय है?
एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार, ब्लागर-ट्रेवलर संतोष सिंह और पत्रकार पुष्य मित्र की एफबी वॉल से.
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Comments on “ट्रेनें इतनी लेट चलें और रेल मंत्री को डायइनेमिक लिखा जाए, यह सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट से ही संभव है : रवीश कुमार”
इस पर पूरे देश के लोगों को ek होकर अवाज उठानी चाहिए. हिंदू मुस्लिम दलित सभी को एक साथ अवाज लगाना चाहिये.
सर, सालों से रेलवे का यही हाल है हम हरियाणा से हैं काम सफर करते हैं लेकिन, एक बार मैं कोलकाता गया था। शायद पूर्वा एक्सप्रेस नाम की ट्रैन थी जो की २० घंटे लेट थी। हूँ घर से परांठे और लहुसन की चटनी लेकर गए थे पता ह नहीं चला कब गुजर गए २० घंटे। खैर आपका सुझाव बहुत ही अच्छा है की यात्रिओं को हर्जाना दिया जाये। शायद सरकारें इसलिए इस निक्क्मेपन को करती हैं ताकि लोग और सुविधा न मांग ले। रोटी सब्जी के साथ अगर अचार मिलजाए तो बच्चे घर में सलाद की मांग शुरू कर देते हैं, घर में कूलर हो तो ए सी की मांग आ जाती है। सब ऐसे ही चलेगा सर। अब किस किस को कोसियेगा। जब हम दिल्ली से अपनी पढाई करते थे तो emu से रोज आते जाते थे कोई टाइम का पता नहीं तह ाकि कोण सी emu किस टाइम आती है। एक दिन जैसे ही तुगलकाबाद पहुंचे तो emu आ गई हम दबे खुश हुए और बोले की चलो आज तो emu टाइम पर है। ये सुनते ही साथ में खड़ा एक यात्री झल्ला कर बोलै ये चार घंटे लेट हैं।
फरीदाबाद