Rajiv Nayan Bahuguna : होहिं सोई जो शाह रचि राखा… उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की रुखसती की सुगबुगाहट , बल्कि खदबदाहट पिछले कुछ दिनों से यकायक किसी ओला वृष्टि की तरह तड़तड़ा रही हैं…
मैं नही जानता कि इनमें कितनी सच्चाई है । क्योंकि राजनीति में मेरी कोई रुचि नहीं । और त्रिवेंद्र सिंह रावत में तो हरगिज नहीं ।
अपने प्रदेश के अधिसंख्य नागरिकों की तरह मैं भी मानता हूं , कि उनके नकारात्मक पक्ष अत्यधिक हैं । लेकिन प्रश्न यह है कि उनकी पार्टी में ऐसा कौन है , जिसके पक्ष उजले हों ?
सच है कि वह बोलते ही नहीं । और जब बोलते हैं अण्ड बंड बोलते हैं । वह अत्यधिक रिजिड हैं । लेकिन उनके आलाकमान में क्या प्रायः सभी , अथवा ज़्यादातर लोग ऐसे ही नहीं हैं ?
मुझे अपने 35 साल पुराने पत्रकारीय कैरियर के शुरुआती दिन याद आते हैं । मैंने एक जूनियर सब एडिटर के तौर पर नव भारत टाइम्स पटना में जॉइन किया था । बिंदेश्वरी दुबे तब बिहार के मुख्यमंत्री थे । हमारे एक बुद्धिमान तथा अतिशय सक्रिय सीनियर ने पहले ही दिन से खबर पेलनी स्टार्ट की – दुबे की विदाई तय । दुबे की छुट्टी होगी । आलाकमान ने मन पक्का किया । इसी तरह के शोशे वह हर दसवें , पन्द्रहवें दिन छोड़ते रहते ।
एक दिन मैंने डरते डरते पूछ ही लिया – श्रीमान , आप पिछले दस माह से पेले जा रहे हैं । अब तक तो दुबे का कुछ बिगड़ा नहीं ।
वह डपट कर बोले , चुप रहो , तुम ज़्यादा जानते हो , या मैं ?
आखिर लगभग 4 साल बाद एक दिन दुबे दिल्ली दरबार को प्यारे हो गए । तब मेरे सीनियर ने मुझे बुला कर कहा , देखा , मैंने कहा था न ।
अर्थात दिल्ली से एक ट्रेन कानपुर को चली । ट्रेन छूटते ही एक पैसेंजर ने कहना शुरू किया , अब कानपुर आएगा । बीसियों स्टेशन पार कर 8 घण्टे बाद कानपुर आया । तब चतुर यात्री बोला – आया न कानपुर । मैं तो पहले ही कह रहा था ।
मैं अपने उत्साही क्यास्कों से कहना चाहूंगा कि रावत को जब जाना होगा , जाएंगे । आप टेंशन न लो । वैसे भी रावत की जगह किसी पत्रकार को मुख्यमंत्री नही बनाया जाना । फिर काहे की मगज़ मारी ?
हो सकता है कि आगन्तुक भी रावत जितना ही , बल्कि उनसे भी अधिक बुरा हो । तब क्या होगा ? अतः बी कूल ।
अंधी परजा , अंधा राजा
” त्रिवेंद्र का जाना तय । दिल्ली परिणामों से सहमा आला कमान , त्रिवेंद्र की होगी छुट्टी । महाराज , निशंक और हरक दौड़ में । त्रिवेंद्र को अचानक दिल्ली बुलाया । एक दो दिन में ही विदाई ।…….. पक गया मैं यह सब सुनते सुनते । इससे अच्छा साउथ में ही भला था । क्यों लौटा वापस ।
अबे ओ कयास बाज़ । त्रिवेंद्र सिंह रावत से जितना परेशान तू है , उतना ही मैं भी । पर तेरी तरह अंधेरे में छलांग नहीं लगाता ।
त्रिवेंद्र कब जाएगा । जाएगा भी या नहीं , यह अमित शाह के अलावा कोई नहीं जानता । हो सकता है वह अपनी बीबी को अकेले में यह सब बताता होगा , कि कौन कब जाएगा , कब आएगा । इसके सिवा देवता भी यह आवागमन का भेद नही जान पाते ।
क्या तू अमित शाह की बीबी है , जो तुझे यह सब रहस्य पता है ?
यदि तू अमित शाह के इतना क़रीब है , कि वह तुझे त्रिवेंन्द्र के जाने की तारीख़ तक बता देता है , तो क्यूं 30 हज़ार की रिपोर्टरी में अपनी ऐसी तैसी करा रहा ।
जा अमित शाह से बोल कर राज्य सभा पहुंच ।
अन्यथा यह रांड रोना बन्द कर ।
देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी और यायावर राजीव नयन बहुगुणा की एफबी वॉल से.