Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

एक टीवी संपादक का कुबूलनामा- टीआरपी का खेल हमने भी खूब खेला है!

प्रभात डबराल-

टीआरपी का खेल हमने भी खूब खेला है. जीता भी है. स्क्रीन पर कोई नया खेल खेलो और वो हफ़्ते बाद आने वाली टीआरपी को बढ़ाता हुआ दिखे तो बड़ा मज़ा आता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

क़रीब क़रीब वो ही मज़ा जो लम्बी ब्लाइंड खेलने के बाद अच्छा पत्ता हाथ में आ जाए तब आता है.

इसमें खुद अपनी जीत का मज़ा तो है ही, सामने वाले को पेल दिया इसका आनंद भी मिलता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

पर कुछ भी कहिए ब्लाइंड का खेल है. पासा उल्टा भी पड़ सकता है.

लेकिन यहाँ पर ये ध्यान ज़रूर रखें कि हमारे जमाने तक टी आर पी का जो “खेल” था वो खबरों तक सीमित था. जो खबर है उसे आप कैसे और कितने दिलचस्प तरीक़े से दिखा रहे हैं – हमारे जमाने में इसे ही ‘खेल’ कहते थे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मसलन जब हमने छोटी छोटी खबरें जल्दी ज़ल्दी दिखने का सिलसिला शुरू किया तो टी आर पी बढ़ गई. हर घंटे ढाई-तीन मिनट में दस खबरों वाला कार्यक्रम “ एक नज़र दस खबर” हमारे रीजनल चैनलों को भर भर टी आर पी दे जाता था.

हालाँकि अपने टीवी के कार्यकाल में हमने खाँटी खबर से इतर भी एकाध खेल किए जो ना करते तो शायद ठीक रहता.

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक ‘खेल’ वो था जब हनुमान जी की मूर्तिया देश के कोने कोने में दूध पीने लगी थीं. हमारे सबसे ज़्यादा “लाइव” ब्यूरो थे जो देश भर में फैले थे. हमने स्क्रीन मूर्तियों से भर दीं.

हालाँकि हम वैज्ञानिकों, रैशनलिस्ट्स वग़ैरह से बार बार कहलाते रहे की ये सब झूट है, लेकिन हमें जल्दी ही पता चल गया कि इस खेल का जनता पर असर ठीक नही रहा. ये देश में साइयंटिफ़िक टेम्पर फैलाने की संविधानिक वचनबद्धता का भी उल्लंघन था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस दिन हमें झोली भरकर टी आर पी मिली. पर हमने फिर कभी ये खेल नहीं खेला.

ऐसा ही एक वाक़या बद्रीनाथ के कपाट खुलने के लाइव प्रसारण का है. अपन पहाड़ के ही हैं इसलिए लगा कि इस घटना का लाइव प्रसारण करना चाहिए. इस धार्मिक घटना का एक ऐतिहासिक व्यापारिक पहलू भी है – हर साल इसी दिन भारत तिब्बत व्यापार की शुरुआत होती थी.

Advertisement. Scroll to continue reading.

हमने लखनऊ और दिल्ली में विशेषज्ञ बैठा कर ऐतिहासिक/सांस्कृतिक ज्ञान पेलने का खूब प्रयास किया लेकिन ये प्रसारण धार्मिक प्रसारण से ऊपर बढ़ ही नही पाया. ये हमें तब पता चला जब हमारे एक मित्र ने हमें फोन पर बताया कि “तुमने तो आज मेरी माँ से टीवी के सामने घंटी बजवा दी”.

टी आर पी तो खूब मिली लेकिन हमने अगले साल गंगोत्री की कवरेज के बाद केदारनाथ के कपाट खुलने का लाइव प्रसारण का अपना इरादा बदल दिया.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसलिए नही कि अपन धार्मिक नहीं है. बल्कि इसलिए क्योंकि हम न्यूज़ चैनल चला रहे थे. वहाँ समाचार की प्रमुखता होनी चाहिए- लोकप्रिय कंटेंट की नहीं. धार्मिक विषयों के लिए अलग चैनल हैं. एंटर्टेन्मेंट और पोर्न विषयों के लिए भी अलग चैनल है.

जो न्यूज़ चैनलों मे हो रहा है वो और कुछ भी हो समाचार प्रसारण तो नही ही है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस वाक़ये को देखिए:

रिपोर्टर एक कार में हैं. दीपिका दूसरी कार में हैं जिसके शीशे चढ़े हैं. रिपोर्टर अपनी कार में बैठे बैठे अपने माइक पर चीख रही है “दीपिका तुम ड्रग क्यों लेती हो…बताओ बताओ क्यों पीती हो…….क्यों… क्यों…..बताओ …बताओ…”

Advertisement. Scroll to continue reading.

दीपिका की कार के शीशे चढ़े हैं. वो सुन नहीं पा रही है. जवाब कैसे देगी. फिर भी ये एकतरफ़ा क्लिप चैनल पर चल रहा है. क्योंकि उसमें “दीपिका” शब्द बोला गया है और “ड्रग” शब्द भी है. इतना काफ़ी है. दीपिका का नाम ड्रग से जोड़ने के लिए इससे ज़्यादा क्या चाहिए.

अगर सुप्रीम कोर्ट इस कुत्सित पत्रकारिता का संज्ञान लेकर बहस शुरू करती है तो मुझे ख़ुशी होगे – कोई और चारा नही बचा.

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल लंबे समय तक सहारा समय सहित कई न्यूज़ चैनलों के संपादक रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement