(भड़ास के संपादक यशवंत सिंह)
उदात्त दिल दिमाग से सोचिए. इस एक किसान की खुदकुशी का मामला हो या हजारों किसानों के जान देने का… सिलसिला पुराना है… महाकरप्ट कांग्रेस से लेकर महापूंजीवादी भाजपा तक के हाथ खून से रंगे हैं…. अहंकारी केजरीवाल से लेकर बकबकिया कम्युनिस्ट तक इस खेल में शामिल हैं. कारपोरेट-करप्ट मीडिया से लेकर एलीट ब्यूरोक्रेशी और विकारों से ग्रस्त जुडिशिरी तक इस सिस्टमेटिक जनविरोधी किसानविरोधी खेल में खुले या छिपे तौर पर शामिल है… ताजा मामला दिल्ली में संसद के नजदीक जंतर मंतर पर केजरीवाल के सामने हुआ इसलिए सारी बंदूकें केजरीवाल की तरफ तनवा दी गई हैं क्योंकि इससे देश भर में किसानों को मरने देते रहने के लिए फौरी तौर पर जिम्मेदार महापूंजीवादी भाजपा, महाकारपोरेट परस्त मोदी और लुटेरी भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य जातिवादी करप्ट क्षेत्रीय राज्य सरकारों के मुखियाओं के बच निकलने का सेफ पैसेज क्रिएट हो जाता है और भावुक जनता मीडिया के क्रिएट तमाशे में उलझ कर ‘आप’ ज्यादा दोषी या दिल्ली पुलिस ज्यादा दोषी के चक्कर में फंस कर रह जाती है.
साथियों अब चीजों को तात्कालिक नजरिए से देखने का समय नहीं है. अति भावुकता से दूर होने का वक्त है. ठंढे दिमाग से सोचने और आगे बढ़ने का समय है. केजरीवाल की असलयित तो उसी समय सामने आ गई जब इसने पार्टी में सेकेंड थॉट रखने वालों को लतिया कर बाहर निकाल दिया. अब यह विशुद्ध और बेशरम राजनेता है. इसी थेथर नेतागिरी वाले अहंकार के कारण इस केजरीवाल ने अपने वालंटियर के लाइव खुदकुशी को देखने के बावजूद मंच से नीचे नहीं आया और न ही सभा को समाप्त किया. पर केजरीवाल बहुत छोटा प्यादा-मोहरा है. ज्यादा मोटी चमड़ी वाले बड़े डकैत और थेथर राजनेता तो केंद्र और दूसरे राज्यों की सरकारें चला रहे हैं. ये बड़े डकैत ही मीडिया को पोषित संरक्षित करते हैं. ये बड़े डकैत ही कारपोरेट के असली दोस्त हैं. कारपोरेट और बड़े डकैत नेताओं की जोड़ी कारपोरेट-करप्ट मीडिया के कोरस को तय करता है. आज देखिए कैसे कोरस तय हो गया. सारे चैनल एक सिरे से केजरी विरोधी गान गाने में जुटे हैं.
अरे भाई, केजरिया तो हो ही गया है चूतिया. इसने अब अपने संजय सिंह, आशुतोष, गोपाल राय, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास जैसे दर्जनों यसमैन पाल रखे हैं इसलिए अब केजरिया का तो कचूमर निकलेगा ही. केजरिया से कोई कह दे कि अबकी वह संजय सिंह को पार्टी से बाहर करे क्योंकि किसानों का संसद मार्च करने का आइडिया इसी संजय सिंह ने दिया था जिसके कारण हुई सभा में किसान ने लाइव खुदकुशी कर ली और चारों ओर से केजरी को गाली पड़ रही है. कुछ ऐसे ही तर्क देकर तो इसने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को निकाला कि इन लोगों ने लोकसभा चुनाव लड़ने को कह दिया और लड़ने के कारण पार्टी हार गई. खैर, मुद्दे पर आते हैं. केजरी को भारी बहुमत से जीत के कारण गजब का अहंकार हो गया है और ये अहंकार ही इसे ले डूबेगा, देखिएगा. शुरुआत योगेंद्र प्रशांत के निकाले जाने से हो चुकी है. ये किसान आत्महत्या कांड इसी सिलसिले की एक और कड़ी है. अगर आम आदमी पार्टी के मंच पर कोई मौलिक तरीके से सोचने वाला होता तो वह अपनी पहल पर नीम के पड़ की तरफ जाकर उस किसान को नीचे उतरवाता और उसे मंच की तरफ लाकर बिठाता. पर अब जब सब केजरी का चेहरा देखकर यसमैनी करने पर उतारू हैं तो केजरी बेचारा क्या क्या करे. वह पेड़ से दुखी किसान उतरवाए या दिल्ली सरकार चलाए या लात मार कर निकालने के लिए पार्टी के विरोधियों की गिनती में दिमाग लगाए.
तो कह रहा था कि राजनीति के बड़े डकैत जो कारपोरेट के यार होते हैं, मिलकर मीडिया का कोरस तय करते हैं क्योंकि इन डकैतों का खुले या छिपे तौर पर मीडिया में शेयर होता है या मीडिया को विज्ञापनों पैसे सत्ता से ओबलाइज कर प्रभावित करते हैं. सारे चैनल आज केजरी विरोधी कोरस गाकर किसानों के आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषय को बेहद छोटा और लोकलाइज कर बैठे. आज देश में आपातकाल जैसी स्थिति है. साठ से सत्तर फीसदी आबादी जिस जमीन पर निर्भर है वह जमीन प्रकृति और सिस्टम की मार के कारण किसानों के अरमान पूरा करने में अक्षम है. इस कारण लोन निया हुआ किसान, बेटी का ब्याह तय कर चुका किसान, परिवार पालने वाला किसान खुदकुशी कर रहा है. देश में कोई इतना बड़ा सेक्टर नहीं है जिसमें इतने लोग रोजगार में लगे हों और इतने ज्यादा लोगों को पेट पल रहा हो. खेती किसानी सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण सेक्टर है भारत के लिए.
इस सबसे बड़े सेक्टर पर आन पड़ी सबसे बड़ी विपदा के बारे में न्यूज बहस डिबेट रिपोर्टिंग न दिखाकर मीडिया ने बेहद घटिया और बायस्ड किस्म की रिपोर्टिंग की है जिससे सारी बहस दिल्ली पुलिस बनाम आम आदमी पार्टी के दोषी होने या न होने तक सिमट आई है. यह शर्मनाक है. यह बेहद गैर-जिम्मेदार पत्रकारिता है. टीआरपी खोर और बाजारू न्यूज चैनलों के सामने भी संकट रेवेन्यू का है. वे पीपली लाइव जैसा बरताव हर वक्त करने रहने के लिए अभिशप्त हैं क्योंकि टीआरपी और बाजार ने इन्हें विवेकहीन के साथ साथ संवेदनहीन बना रखा है. याद रखो मीडिया वालों, देश के नेता अफसर तो पहले से ही चोट्टे और जनविरोधी हैं. अब तुम भी इस गैंग के हिस्से बन चुके हो, इस कारण आम जन को बड़े मुद्दों पर सच्ची समझ देने की जगह उन्हें बरगलाने में लगे हो ताकि जनता भ्रमित रहे और तुम सब अलोकतांत्रिक खंभों का मिला-जुला गैंग लूटतंत्र का सामूहिक संचालन करता रहे. लेकिन कब तक बरगलाओगे. कब तक? जो लक्षण देश में दिख रहे हैं, वह यह बताने के लिए काफी है कि अगर चीजें नहीं बदली तो पूरा देश गृहयुद्ध की चपेट में आ जाएगा.
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पब्लिक भी अब चीजों को समझने लगी है. सोशल मीडिया पर नेताओं को जितनी गालियां मिल रही हैं, उतनी ही मीडिया को भी, देखें ये लिंक: http://goo.gl/ZJWj46
लाइव खुदकुशी फिल्माते मीडियाकर्मी, स्टेज पर खड़ा अहंकारी मुख्यमंत्री, पुलिस से गुहार लगाते शातिर नेता, अविचल मुस्काते पुलिसकर्मी http://goo.gl/PGZVbF
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लेखक यशवंत भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के संपादक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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वो फांसी लगाता रहा, तुम लाइव रिपोर्टिंग में लगे रहे!
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‘आप’ की प्री-प्लांड स्क्रिप्ट थी गजेंद्र का पेड़ पर चढ़ना और फंदे से लटकना!
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इंसान
April 26, 2015 at 2:59 pm
महाकरप्ट कांग्रेस से लेकर महापूंजीवादी भाजपा तक, अहंकारी केजरीवाल से लेकर बकबकिया कम्युनिस्ट तक, कारपोरेट-करप्ट मीडिया से लेकर एलीट ब्यूरोक्रेशी और विकारों से ग्रस्त जुडिशिरी तक सभी को जनविरोधी का तमगा देते आप अज्ञानी बने यह नहीं समझ पाए कि नेतृत्वहीन भारत में घोर अनैतिकता और सर्वत्र भ्रष्टाचार एक प्रकार से वर्षों से चल रहा गृहयुद्ध ही है। किसान गजेन्द्र की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु की छड़ी से मूक जनता को हांकते राष्ट्र-विरोधी मीडिया और उनसे लाभान्वित राजनीतिज्ञ गृहयुद्ध की चपेट में घिरे देश में भय, संशय, और अराजकता फैलाते अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। मैं स्वयं आप की तरह सोचता हूँ लेकिन दूर बैठा हतोत्साहित नहीं हूँ। पूंजीवादियों में भामाशाह ढूँढ़ते मोदी जी देश में स्थिरता और अनुशासन के बीच विकास और समृद्धि लाना चाहते हैं। उन्हें आपकी भर्त्सना नहीं आपका समर्थन चाहिए अन्यथा दीमक के टीले पर बैठे असंगठित भारतीयों को आपका गृहयुद्ध किसान गजेन्द्र की मनोस्थिति में मृत्यु के मुख में धकेलता रहेगा।