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सियासत

हतप्रभ करती है तुगलक और मोदी की साम्यता!

Ashwini Kumar Srivastava : हतप्रभ करती है तुगलक और मोदी की साम्यता! चकित करने मगर जनता/ देश की आर्थिक तबाही लाने वाली औचक नोटबंदी/ मुद्राबंदी का फैसला, फिर देशभर में अफरातफरी, अराजकता… महामारी से यूरोप में बड़े पैमाने पर मौत, उसी महामारी का भारत में भी प्रसार, उस महामारी से भारत में भी मौतें, महामारी से घबरा कर फिर एक चकित कर देने वाला मगर नुकसान पहुंचाने/ अराजकता फैलाने वाला फैसला, उसी फैसले के चलते गर्मी के मौसम में देशवासियों का सैकड़ो/ हजारों किलोमीटर का सफर पैदल और भूखे पेट ही तय करना…

ये ऊपर कुछ शब्द जो मैंने लिखे हैं, वैसे तो ये 14वीं शताब्दी में भारत में राज कर चुके मुहम्मद बिन तुगलक के दौर का वर्णन करने के लिए इतिहासकार लिख चुके हैं….मगर आप चाहें तो तुगलक राज के 669 साल बाद भारत में आज के नरेंद्र मोदी राज का वर्णन करने के लिए भी इनमें से हर शब्द का बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं…और यकीन मानिए, दोनों के शासनकाल में आपको इसी तरह शब्दशः साम्यता मिलेगी…इतनी ज्यादा कि आप जहां चाहें, वहां मोदी लिख दें और जहां चाहें वहां तुगलक लिख दें। दोनों के शासनकाल का लब्बोलुआब कमोबेश एक ही रहेगा।

कैसे, यह समझने के लिए पहले थोड़ा इतिहास पर नजर डालनी होगी। दरअसल, 14वीं शताब्दी में भारत में एक सुल्तान हुआ, जिसके हतप्रभ कर देने वाले फैसलों से देश में जान-माल का इतना नुकसान हुआ कि हर सनकी और नुकसानदायक फैसले को आज भी उसी के नाम से पुकारा जाता है….यानी तुगलकी फैसला… और सुल्तान का नाम था मुहम्मद बिन तुगलक।

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साल 2016 की 8 नवंबर को रात आठ बजे टीवी पर आकर उसी रात बारह बजे से पहले देश की करेंसी बंद करने के बाद मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें बताया था कि उस सनकी सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक और आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में तथा इन दोनों के शासनकाल में घटने वाली घटनाओं में कितनी साम्यता है। इतनी ज्यादा साम्यता कि मैंने हैरान होकर लिखा था कि कहीं तुगलक ने ही तो नहीं मोदी के रूप में फिर से एक बार भारत का सुल्तान बनकर जन्म ले लिया है।

उपरोक्त पोस्ट को लेखक अश्विनी कुमार श्रीवास्तव ने तब लिखा था, जब 8 PM यानी आठ बजे वाले पीएम ने 2016 में जब पहली बार आठ बजे आकर इसी तरह रात बारह बजे से अचानक नोट बंदी का ऐलान किया था। इस सनक भरे ऐलान के महज कुछ मिनट बाद ही लेखक अश्विनी ने मोदी जी और तुगलक में साम्यता बता दी थी।

उसी वक्त मैंने यह भी लिखा था कि आज मोदी ने जिस तरह का फैसला किया है, उससे न सिर्फ देश को ‘तुगलकी फैसले’ मुहावरे का सही मतलब समझ आ गया होगा बल्कि तुगलक की याद भी देश को सैकड़ों साल बाद ताजा भी हो गयी होगी। नोटबंदी के बाद ठीक वैसी ही अराजकता और आर्थिक तबाही देश में फैलने लगी, जैसी कि हमने इतिहास में पढ़ा है, जब तुगलक ने चांदी- सोने के सिक्के अचानक बंद करके तांबे के सिक्के चला दिए थे।

अपने फैसले से देश में फैली अराजकता से घबरा कर नरेंद्र मोदी ने जब अपनी 97 वर्षीय मां को बैंक भेज कर नोट बदलवाने के दृश्य मीडिया के जरिये दुनिया को दिखलाए तो फिर मैंने तभी एक और पोस्ट में लिखा था कि तुगलक भी इसी तरह अपनी वयोवृद्ध मां को अपने अलोकप्रिय फैसलों में आगे करके जनता के बीच हमदर्दी जीतने की युक्ति लगाया करता था। इतिहासकारों ने उसकी इस चौंकाने वाली आदत का जिक्र बेहद विस्तार से किया है।

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तुगलक ने अपने एक और ऐतिहासिक अलोकप्रिय फैसले यानी राजधानी दिल्ली को दक्षिण के दौलताबाद में अचानक शिफ्ट करने के बाद फैली अराजकता में अपनी वयोवृद्ध मां को भी उन लाखों यात्रियों के साथ भेज दिया, जो तुगलक के फरमान के बाद मजबुर होकर गर्मी के मौसम में 1500 मील की यात्रा पैदल करते हुए दिल्ली से दौलताबाद जा रहे थे।

मोदी के दौर में आज जहां यूरोप में कोरोना से ऐसी तबाही मची है कि बड़े पैमाने पर वहां लोग मर रहे हैं…. वहीं, तुगलक के जमाने में भी यूरोप में ब्लैक डेथ के नाम से इतिहास में वर्णित वह दौर चल रहा था, जब प्लेग ने वहां की ज्यादातर आबादी ही खत्म कर दी थी।

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तुगलक द्वारा दिल्ली से राजधानी को तुगलकाबाद शिफ्ट करने के दस साल बाद यूरोप में महामारी बनकर फैला प्लेग जब भारत में तुगलकाबाद तक पहुंच गया तो उस महामारी से घबरा कर तुगलक ने आनन फानन में फिर एक बार जनता को गर्मी के मौसम में ही हजारों मील दूर से वापस दिल्ली आने का फरमान सुना दिया।

इतिहासकार बताते हैं कि तुगलक के उसी सनकी फरमान का नतीजा था कि प्लेग महामारी से कम बल्कि दौलताबाद से दिल्ली के वापसी के सफर में ज्यादा लोग मारे गए।

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मौजूदा दौर में मोदी ने जिस तरह 24 मार्च 2020 को रात आठ बजे ही फिर एक बार आकर देश को चकित करते हुए नोटबंदी की तरह रात बारह बजे से 21 दिनों का लॉक डाउन घोषित करके ट्रेन, बस, विमान आदि सभी परिवहन बंद करके लाखों की तादाद में लोगों को सैकड़ों/ हजारों किलोमीटर का सफर गर्मी में भूखे/प्यासे रहकर पैदल ही करने को मजबूर कर दिया………, क्या ऐन ऐसा ही नजारा उस वक्त नहीं रहा होगा, जब तुगलक ने भी अपनी लाखों की जनता को इसी तरह पैदल ही सैकड़ों- हजारों किलोमीटर की दूरी तक गर्मी में भूखे प्यासे सफर करने के लिए मजबूर किया होगा?

कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है। जिस अद्भुत तरीके से यहां मोदी और तुगलक का दौर एक जैसे घटनाक्रम को दोहराता दिख रहा है, इसे देखकर तो शायद अब हर किसी को इस बात पर यकीन हो ही जायेगा… अब देखना यह है कि दोहराते-दोहराते इतिहास क्या तुगलक के बाकी बचे जीवनकाल / शासनकाल का इतिहास भी मोदी और देश के लिए समान करने वाला है….

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दिल्ली में पत्रकारिता करने के बाद लखनऊ में उद्यमी के रूप में सक्रिय अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. Hem

    March 30, 2020 at 9:48 am

    इतिहास खुद को दोहराता है. 2004 में हमने कहा था अब तानाशाही का दौर चालू हो जायेगा और इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा! लेकिन इतनी जल्दी भुगतना पड़ेगा यह नहीं सोचा था!

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