सीएम त्रिवेंद्र रावत की पत्नी पिछले 22 साल से एक ही स्कूल में कार्यरत हैं। 22 साल से उनका किसी दूसरी जगह ट्रांसफर तक नहीं हुआ है। एक आरटीआई आवेदन के जवाब में जारी हुए इस पत्र में यह बात सामने आई है कि उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत भी 1996 से अपने प्रमोशन के बाद भी राजधानी देहरादून के एक स्कूल में तैनात हैं। सबसे बड़ी बात ये कि प्रमोशन मिलने के बाद भी त्रिवेंद्र रावत की पत्नी का ट्रांसफर नहीं किया जाता है। वहीं, पिछले तीन साल से देहरादून आने के लिए अपने ट्रांसफर की गुहार लगाने वाली एक महिला प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया जाता है। उत्तरा बहुगुणा (57) उत्तरकाशी के ग्रामीण इलाके में पिछले 25 सालों से प्राइमरी स्कूल में तैनात हैं। उनके पति की मौत तीन साल पहले हो गई थी। वे तभी से अपना ट्रांसफर देहरादून कराना चाहती हैं, जहां उनके बच्चे रहते हैं।
देहरादून। एक फिल्म आई थी ” अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है”। यह फिल्म तो समझ में ही नहीं आया कि, उसे गुस्सा क्यों आता है। जब पांच-छह बार देखी तो समझ में आया कि उसका गुस्सा तबके ” यंग्री यंगमैन” अमिताभ बच्चन के गुस्से से अलग था। उसका गुस्सा व्यवस्था के प्रति था। हाल ही में एक गुस्सा और देखने को मिला। वह गुस्सा देवभूमि उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावण का था। सीएम रावत व्यवस्था के अंग क्या खुद व्यवस्था हैं। हर सीएम की तरह उन्होंने ने भी जनता दरबार लगाया।
जनता दरबार में उत्तरकाशी के भी दूरस्थ में 25 साल से तैनात 57 वर्षीय शिक्षिका उत्तरा पंत जोशी अपने देहरादून तबादले की करतीं हैं। कहतीं हैं कि, वे विधवा हैं, तीन साल पहले पति का देहांत हो गया, दो बच्चे हैं।मैं ना नौकरी छोड़ सकती हूं और ना बच्चों को। वे बात की शुरुआत “सर” कहकर करतीं हैं। इसीक्रम में वे पहले करना पड़ेगा शब्द का प्रयोग करतीं हैं तो उसके बाद जब सीएम कहते हैं कि, ” नौकरी करते समय यह लिख कर दिया था…।
तब शिक्षिका कहती है कि लिखकर तो यह भी नहीं दिया था कि पूरी जिंदगी वनवास काटूंगी। इस सीएम भड़क गए या यूं कहें कि आगबबुला हो गए और कहा तमीज़ से बात करो, शिक्षिका हो, सस्पेंड हो जाओगी, इनको (अधिकारियों से) सस्पेंड करो, यहीं पर करो, अरेस्ट करो। और सुरक्षाकर्मियों ने अरेस्ट करते हुए बाहर कर दिया और अधिकारियों ने ऐक्शन ले लिया। महिला को थाने ले जाया गया, घंटों बाद जमानत मिली।
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विभागीय अधिकारियों ने सस्पेंड कर दिया जोकि होना ही था, जांच बैठा दी गई। सीएम रावत का इस मामले में कहना है कि, हम नियमों से बंधे हुए हैं, प्रदेश में तबादला एक्ट लागू है और इनके अनुसार ही तबादले किए जाएंगे। सही बात है होना भी नियमानुसार चाहिए। पर यह नियम सब पर लागू होता है क्या? मैं ना तो शिक्षक हूं और ना सरकारी नौकर। नियम क्या है यह नहीं मालूम।
हाल में हाईकोर्ट के आदेश पर शिक्षा विभाग ने ऐसे शिक्षकों की एक सूची सौंपी है जो अपनी पूरी नौकरी सुगम में ही गुजार दी। 414 सामान्य और महिला संवर्ग की प्रवक्ता कभी दुर्गम में गए ही नहीं। कुमाऊं मंडल में 4792 (हो सकता है कि यह आंकड़ा गलत हो) शिक्षकों ने कभीभी दुर्गम का मुंह नहीं देखा। गढ़वाल मंडल में ऐसे शिक्षकों की संख्या 350 है। मुख्यमंत्री जी क्या ऐसे शिक्षक-शिक्षिकाओं को सुगम से दुर्गम किस नियम के तहत भेजा गया है।
मुख्यमंत्री जी मुझे नियमों की जानकारी नहीं। क्या उत्तराखंड का एक नागरिक (जोकि ना आपको कभी वोट दिया और ना ही आपकी तथाकथित अनुशासित पार्टी को पर आप उसके भी मुख्यमंत्री हैं ) होने के नाते यह जानने का अधिकार है कि किस नियम के तहत आपकी (त्रिवेंद्र रावत नहीं सीएम त्रिवेंद्र रावत) पत्नी सुमन रावत सालों से सुगम स्कूल में जमीं हुई हैं, किस नियम के तहत उसी स्कूल में उनका प्रमोशन कर दिया गया।
अगर यह बताने में हिचकिचाहट महसूस हो रही हो तो अपने मंत्रिमंडल के नंबर दो के मंत्री प्रकाश पंत की पत्नी किस नियम के तहत हमेशा समायोजन पर ही क्यूँ रहतीं हैं? अपनी नौकरी का कितना हिस्सा इन्होंने समायोजन में बिता दिया। पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की पत्नी (जोकि अब इस दुनिया में नहीं हैं और मैं यह सवाल उनकी आत्मा को कष्ट देने के लिए नहीं कर रहा हूं।) कितने साल सुगम में रहीं और कितने साल दुर्गम में।
याद दिला दें कि जब उस समय सुगम-दुर्गम नहीं था तब भी यह सवाल लाजिमी है। चलिए वो आपके वरिष्ठ हैं और डायन भी एक घर छोड़ देती है तो आप भी निशंक जी को छोड़ दीजिए। ये ही बता दीजिए कि आपकी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब के राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की शिक्षिका पत्नी किस नियम के तहत दिल्ली में अपनी सेवाएं दे रही हैं, आपकी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला की धर्मपत्नी किस नियम के तहत सुगम में शायद देहरादून में नौकरी कर रही हैं, कर भी रही हैं या रजिस्टर/थम्म इंप्रेशन मशीन घर आ जा रही है और वे हस्ताक्षर कर दे रही हैं या अंगूठा लगातीं हैं।
उत्तराखंड में तबादला ऐक्ट इसी साल (2018) से लागू हुआ है। ऐसा नहीं कि इसके पहले कोई नियम-कानून था ही नहीं। सारे के सारे तबादले बिना किसी नियम के हुए। इसके पहले नियमावली थी। नियमावली के समय भी बड़ी संख्या में तबादले/समायोजन हुए। एक जानकारी के अनुसार 2016 में तकरीबन 500 तबादले मानकों को ताक पर रखकर किए गए। एससीईआरटी और डायट में छह शिक्षक-शिक्षिकाओं के तबादले किए गए थे। जिस तरह से कोई बडी घटना होने के बाद चौकसी बरती जाती है ठीक उसी तरह विभाग भी अपनी पोल खुलने के कार्रवाई करता है। शिक्षा विभाग ने भी अपनी पोल खुलने के बाद ही कार्रवाई की।
शिक्षा सचिव भूपेंद्र कौल औलख (इनकी गिनती तेज-तर्रार आईएएस अधिकारियों में होती है अब यह बात अलग है कि इस तरह के अधिकारी रह ही कितने गए हैं) स्वीकार करतीं हैं कि जिन 500 टीचर्स के तबादले 2016 में हुए थे शासन ने उन्हें निरस्त कर दिया है और वे सभी पूर्व तैनाती स्थल पर जाएंगे। यानि कि तबादला ही गलत था, शासन ने माना और अपनी गलती मान ली। बस हो गई कर्तव्य की “इतिश्री”।
जिसने गलती की उसे कब सजा मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं? शिक्षा सचिव औलख घटना के बाद बुलाये गए संवाददाता सम्मेलन में कहतीं हैं कि उत्तरा (निलंबित शिक्षिका) बिना अनुमति के सीएम के जनता दरबार में गयी थी। अमर उजाला पेज एक 29 जून 28। इसी अखबार के पेज नंबर आठ पर वे कहती हैं कि ऐसा कोई लिखित प्रावधान नहीं है। एक ही में वे दो तरह की बातें करतीं हैं और उन्होंने ऐसा पहली बार नहीं किया है।
कुछ माह पहले शिक्षा विभाग की एक अधिकारी दमयंती रावत के मामले में भी उन्होंने विरोधाभासी बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि वे बिना एन ओ सी के दूसरे विभाग में जा ही नहीं सकतीं हैं और नियम के तहत उन्हें एन ओ सी मिलेगी नहीं। दमयंती रावत के मामले में ना शिक्षा विभाग कुछ कर पाया और ना ही शासन और ना ही मुख्यमंत्री वो भी दो-दो, एक विजय बहुगुणा और दूसरे यही त्रिवेंद्र रावत। किसी ने ठीक कहा है,” गरीबे की मेहरारू गांव भरे की भउजाई”। नियम-कानून गरीबों के लिए ही थे और हैं और रहेंगे। नियमावली में थे और एक्ट में भी रहेंगे। चोर दरवाजे से नहीं तो डंके की चोट पर रहेंगे। खंडूरी के प्रस्तावित एक्ट में था या नहीं, मालूम नहीं पर वर्तमान एक्ट में 10% रिश्तेदार के लिए है।
हां तो अल्बर्ट पिंटो का गुस्सा अपनी व्यवस्था के प्रति था,पर व्यवस्था से जुड़े प्रदेश के मुखिया का गुस्सा किसके प्रति था और क्यों था? इसलिए कि त्रिवेंद्र रावत सीएम थे। सीएम ही नहीं पीएम भी जनता के प्रतिनिधि हैं फिर वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी तो खुद को प्रधान सेवक कहते हैं तो सीएम तो उनसे छोटे हुए। फिर इस तरह की घटना इसके पहले भी होती रही है और बाद में भी होगी क्योंकि जब कोई अपने प्रतिनिधि के पास आता है तो हर जगह से थक-हारकर आता है और यह उम्मीद लेकर आता है कि, “वहां नहीं तो यहां मेरी समस्या सुनी ही जाएगी। फिर शिक्षिका उनके घर नहीं गई थी, जनता दरबार में गई थी। पीएम-सीएम और राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल जनता दरबार लगाकर जनता की समस्या का समाधान करते हैं। फरियादी के फरियाद करते ही उन्होंने कैसे समझ लिया कि शिक्षिका का पक्ष गलत है, बात करने का तरीका गलत है। चलिए मान लेते हैं कि शिक्षिका के बात करने का तरीका गलत था, व्यवहार गलत था जैसा कि आप मंच से माइक लेकर कह रहे थे तो आपका तरीका ही कौन सा सही था?
अरुण श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार
देहरादून
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Himanshu Purohit
July 4, 2018 at 9:20 am
Sunita Rawat not Suman Rawat…….
Please correct above mistake.