एंकर से दोस्ती का शिकार एक युवा पत्रकार मनीष दुबे
Manish Dubey : एक एंकर साहब हैं “के न्यूज़ यूपी/यूके” के। नाम है- ओम आदित्य द्विवेदी। इन्हें करीब दस बारह साल से जान रहा हूँ। कभी ऐसा नहीं हुआ जैसा पिछले दिनों हो गया। साहब ने भयंकर शराब पी रखी थी। ब्रजेश शर्मा जी, जो खुद को इस समय “सूर्या समाचार” कानपुर के मंडल ब्यूरो चीफ की पदवी से नवाजे गए बताते हैं, ने मुझे फ़ोन करके दबौली स्थित एंकर साहब के आफिस में बुलाया। करीब पंद्रह मिनट की बातचीत के उपरांत नशे की खुमारी में सराबोर एंकर ओम आदित्य मुझसे बोले “घूर क्यो रहा है बे”।
चुपचाप बैठा मैं, ये सुनकर बेहद शालीनता से जवाब दिया- “भाई मैं कहाँ घूर रहा हूँ”। मेरी इतनी बात पर एंकर साहब आगबबूला हो गए। इतने सालों के प्यार प्रेम को भुलाकर इन्होंने मेरा गिरेबान पकड़ लिया और बोले “मेरे सामने जबान चलाता है, जानता है मैं कौन हूं… क्या है तू मेरे आगे”। मैं बोला- “कुछ भी नहीं”। साहब फिर भड़क गए। बोले “साले फिर जुबान चलाई”।
उसके बाद तो इन एंकर साहब ने मुझ पर थप्पड़ों की बरसात कर दी। मेरे गुप्तांगों पर घुटने के कई वार भी कर डाले। अपनी रौ में इन्होंने अपने आस पास के कई साथियों को बुला लिया। लोग आए पर एंकर साहब की नशे की स्थिति देख कुछ नहीं बोले। बस मुझे छोड़ देने के लिए कहते हुए बीच-बचाव करने लगे। पर एंकर साहब पर तो न जाने क्या सवार था। इन्होंने मुझसे नशेबाजी की या अपने आसपास के लोगों को चमकाने के लिए ऐसा किया, ये एंकर साहब ही जानें। मेरे लिए तो ये एक दिल तोड़ने वाली बात हो चुकी थी।
नशेबाजी करनी थी, किसी को मारना था तो घर से बाहर मारते। इसके लिए मुझे क्यों चुना। वो भी घर बुलाकर। कोई ऐसा करता है साथ रोटी खाये पिये आदमी के साथ। ऐसी नशेबाजी ऐसी बदतमीजी शर्मिंदगी भरी है। और तो और, खुद की नशेबाजी में अपने दरवाजे का कांच तोड़कर उसकी भरपाई भी मुझसे मांग रहे थे। मौके पर मौजूद कई लोगों ने समझाया, मनाया, रोका भी। पर बाद में एंकर साब का नशा जब हल्का हुआ तभी वे रुके। पर तब फायदा क्या क्योंकि किसी की बनी इज्जत तो तब तक जा चुकी थी।
बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाकर वहां से निकला। ना कोई बात ना चीत, खालीपीली की नशेबाजी। एक साढ़े तीन साल की बच्ची का मैं बाप, जो मेरी सूजी आंख देखकर पूछ रही “पापा चोंट लग गई क्या आपको”। घर पहुंच कर माँ बाप बीबी बच्ची से मुंह छुपा कर सिर झुका कर बोलता चिड़चिड़ाता रहा। आंख लाल, मुंह का अंदरूनी हिस्सा कटा और गाल पर हाथों के निशान। किसी को क्या बताता कि एक भाई समान दोस्त ने दारू पीकर मुझपे उतार दी? अभी तक उस वाकये को भुला नहीं हूँ। नहीं पता कब तक ये टीस मेरे दिमाग में खदबदाती रहे। ”मैं एंकर हूं, स्टार हूं, न्यूज़ और चैंनल का चेहरा हूं, कुछ भी… और बहोत कुछ कर सकता हूँ”। अरे मुझे क्या मतलब तुम्हारे स्टारडम से! और, थूकता हूं तुम्हारे जैसे दोस्तों की दोस्ती पर। कभी दुबारा शक्ल तक नहीं देखना चाहता तुम जैसों की। और, न ही कभी दिखाना भी। लानत हो मुझ पर जो तुम जैसों को सपने तक में याद करूं।
कानपुर के युवा पत्रकार मनीष दुबे की एफबी वॉल से.