Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तराखंड

मलेथा के मायने : मेरा गाँव-मेरी पहचान… 20 सितम्बर को ऋषिकेश पहुंचिए

उत्तराखंड राज्य बनने के साथ-साथ समय-समय पर उत्तराखंड के विकास को लेके अनेक रूप में आवाज़ें उठते रही है। अनेक तरीके से इस पर कार्यवाही करने का प्रयास किया गया है, चाहे वो गैर सरकारी संघठन हो या चाहे वो अलग-अलग राजनितिक संघठन हो जो  समय पर सूबे जो चलाने में योगदान देते रहे हो। चाहे वो विभिन्न क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हो या फिर वो शासन में योगदान देने वाले अधिकारी।

<p>उत्तराखंड राज्य बनने के साथ-साथ समय-समय पर उत्तराखंड के विकास को लेके अनेक रूप में आवाज़ें उठते रही है। अनेक तरीके से इस पर कार्यवाही करने का प्रयास किया गया है, चाहे वो गैर सरकारी संघठन हो या चाहे वो अलग-अलग राजनितिक संघठन हो जो  समय पर सूबे जो चलाने में योगदान देते रहे हो। चाहे वो विभिन्न क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हो या फिर वो शासन में योगदान देने वाले अधिकारी।</p>

उत्तराखंड राज्य बनने के साथ-साथ समय-समय पर उत्तराखंड के विकास को लेके अनेक रूप में आवाज़ें उठते रही है। अनेक तरीके से इस पर कार्यवाही करने का प्रयास किया गया है, चाहे वो गैर सरकारी संघठन हो या चाहे वो अलग-अलग राजनितिक संघठन हो जो  समय पर सूबे जो चलाने में योगदान देते रहे हो। चाहे वो विभिन्न क्षेत्र के बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हो या फिर वो शासन में योगदान देने वाले अधिकारी।

एक नवजात शिशु की तरह एक राज्य का पालन पोषण होता है । इस पालन पोषण के दौरान जिस प्रकार शिशु अपने संस्कार, सभ्यता व कर्मो के बारे में जानकारी रख अपने चरित्र व कार्यशैली की बुनियाद रखता है उसी प्रकार एक राज्य अपने युवा अवस्था तक अपने राज्य की विकास की परिभाषा को अपनी निति व कार्य शैली से परिभाषित कर देता है। और आज पंद्रह साल बाद हम लोगों को भी उत्तराखंड राज्य में यही देखने को मिलना था। पर दुर्भाग्य से आज भी हम पहाड़ के अनुसार संस्थागत विकास के मापदंड नहीं ढून्ढ पाये और नौसिखिये की तरह बेतुके ढंग़ से अंग्रेजी की पंक्ति ‘hit and trial’ पर कार्य कर रहे है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आज भी पहाड़ में पलायन, रोजगार, आजीविका, आपदा, पर्यावरण के साथ अर्थ, विकास के मॉडल जिसमें स्थानीय जनता की सहभागिता हो जैसे सवाल खुले रूप में हम सबको चुनौती दे रहे है। पहाड़ में कई जगह अपनी-अपनी तरह से मुद्दे उठते रहे आम जन लाम्बबंद भी हुए। दुर्भाग्य की जनता की आवाज को सम्मान पूर्वक न्याय नही मिल पाया। बल्किन विकास के नाम पर पूँजीवाद का वो वर्ग जो स्थानीय संसाधनों का दोहन कर आम जनता की असभागीता से अपने निजी आर्थिक स्वार्थों की पूर्ती या वृद्धि करता है जिसे हम एक रूप में माफिया के नाम से भी संबोधित करते है।

पिछले कुछ समय पहले आम जनता के संघर्ष को राज्य सरकार ने नमन किया और माफिया राज व उसके बढ़ते बर्चस्व पे अंकुश लगाया। एक लंबे अरसे बाद एक जन आंदोलन को पहचान मिली। एक लंबे अरसे बाद पर्यावरण के संरक्षण को लेके एक जीत हासिल हुई। एक लंबे अरसे बाद चिपको जैसा आंदोलन लोगों को देखने को मिला। एक लंबे अरसे बाद मात्र शक्ति की ताकत देखने को मिली। एक लंबे अरसे बाद कुर्बानी व कर्मो की भूमी पर इतिहास दोराहया गया। और वो कोई और नही 11 महीनो तक चले स्टोन क्रेशर माफियाओ के खिलाफ – मलेथा आंदोलन था। वो आंदोलन जिसने निस्वार्थ भाव से पर्यावरण के संरक्षण की सफल लड़ाई लड़ी। वो आंदोलन जिसने 16 वीं सताब्दी के वीर भड़ माधो सिंह भण्डारी की कुर्बानी की पुनरावृति करवा दी। वो आंदोलन जिसने इतिहास में संघर्ष के मायने सीखा दे। और वो आंदोलन जिसने उत्तराखंड में संघर्ष की बुझती हुई लौ को एक आशा और दिशा दिला दी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मलेथा आंदोलन के बाद कई सवाल खड़े हुए – क्या मात्र मलेथा के मुद्दों पर सीमित था, क्या बस स्टोन क्रेशर बंद होना की एक मात्र संघर्ष है, क्या स्टोन क्रेशर से ही पर्यावरण को बचाना होगा, क्या मलेथा के हरे भरे शेरे के अलावा उत्तराखंड के शेरे पर कोई विचार नही, इत्यादि सवाल एक आशा के रूप में खड़े होते है। और यही सवाल अपने आप में उत्तर भी दे रहे है और हम यही बात दोहराना चाहते है कि मलेथा आंदोलन मात्र मलेथा की पीड़ा को लेके चलने वाला आंदोलन नही था बल्किन उत्तराखंड में हार मानती जन शक्ति के लिए उम्मीद का आंदोलन भी था। आंदोलन था यह सिद्ध करने का कि आम व्यक्ति अपने हक़ को पहचाने, आंदोलन था की आम जन अपने हक़ के लिए कब, कैसे और क्यों वाले शब्द उठाये, आंदोलन था उत्तराखंड के विभिन्न इलाको में संघर्ष की रह में खोते हुए आत्मविश्वास को जगाने की। संघर्ष था सर्वागीण विकास की परिभाषा को परिभाषित करने की।

मलेथा आंदोलन के मायने की सीमाए सीमित नहीं बल्किन हर उस गाँव की गाथा गाता है जो आज भी स्थानीय जनता की सहभागिता से विकास की राह जोत रहा है। आइये कुमाऊ व गढ़वाल मिलकर के पूर्ण व जन सहभागिता से विकास के मायने की नींव रखने का प्रयास करें। आइये 20 सितम्बर को प्रातः 11 बजे सभागार, नगर पालिका, ऋषिकेश में एकत्रित होके मंथन करें।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक समीर रतूड़ी उत्तराखंड के जननेता होने के साथ साथ सोशल एक्टिविस्ट और पत्रकार भी हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement