मान्यवर,
सेवा में,
माननीय प्रधान मंत्री,
नई दिल्ली ।
विषय :- यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया की बिहारशरीफ शाखा के बैंककर्मियों द्वारा छह माह तक दौड़ाने के बाद भी मुद्रा लोन नहीं देने तथा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराए जाने के सम्बन्ध में।
मान्यवर,
निवेदन है कि बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के पैतृक जिला नालन्दा के मुख्यालय बिहारशरीफ में यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया की मुख्य शाखा है। इससे मात्र दो सौ मीटर की दूरी पर 65 वर्षों से अधिक पुरानी हिंदुस्तान जनरल स्टोर नामक मेरी दूकान अवस्थित है। पहले पिता जी दूकान चलाते थे और अब मैं चलता हूँ। मैंने दूकान के विस्तार के लिए तत्कालीन मैनेजर इंद्रजीत जी से 3 लाख रुपये लोन लेने के लिया मिला। उनके कहने पर मैंने उक्त बैंक में चालू खाता खुलवाया तथा इनकम टैक्स रिटर्न भर कर बैलेंस शीट भी प्रस्तुत किया। उन्होंने 25 अप्रैल 2017 को लोन से सम्बंधित मेरे कागजातों को सम्बंधित बैंक पदाधिकारी को भेजा था। उनके बुलाने पर मैं 2 मई 2017 को पुनः उनसे मिला, तो उन्होंने बताया कि अभी आपकी फाइल मेरे पास नहीं लौट कर नहीं आई है। आप शाम को एक बार फिर बैंक आकर देख लीजियेगा। दुकानदारी की व्यस्तता के कारण मैं उस दिन न जाकर अगले दिन बैंक गया, तो पता चला कि अन्यत्र तबादला हो जाने के कारण मैनेजर इंद्रजीत जी,का विदाई समारोह हो चुका था।
दो-तीन दिन बैंक का चक्कर लगाने के बाद मेरी मुलाकात नए मैनेजर नीतेश रंजन जी से हुई। मैंने उन्हें पूरी बात बताई तथा 3 लाख रुपये लोन की मांग की। उन्होंने कहा कि उन्हें इसके लिए किसी से परमिशन की जरुरत नहीं है तथा एक करोड़ तक लोन देने का अधिकार है। हम लोन देंगे, पर अभी हमारे पास आदमी नहीं है। बाद में मिलिएगा। आठ-नौ बार मिलने के बाद उन्होंने बैंक की महिला लोन अफसर से मिलने को कहा। मैडम ने एक आवेदन तथा पैन कार्ड, आधार कार्ड तथा भारत सरकार द्वारा निर्गत उद्योग आधार कार्ड की फोटो कॉपी जमा करवाई। बाद में मैडम ने कहा कि दूकान का वेरिफिकेशन करने आएँगी। इसके बाद मैंने दूकान छोड़ कर अलग-अलग तिथियों में बैंक में मैडम से 12-13 बार मुलाकात की। उन्होंने हर बार यही कहा कि उन्हें छुट्टी नहीं मिल पा रही है। पर मैं उनसे मिलता रहा। इसी क्रम में मैडम ने एक दिन कहा कि आपके कागजात नहीं मिल रहे हैं, दुबारा दे दीजिये। मैंने मैडम को उसी दिन दूकान से लाकर पुनः कागजात दे दिया। उनका रटा-रटाया जवाब मिलता रहा कि दूकान देखने आएँगी। एक दिन अपनी पत्नी को दूकान पर बिठा कर मैं बैंक गया तो मैडम नहीं मिली। मैं मैनेजर से मिला। मैडम आईं, तो उन्होंने मैनेजर को बताया कि वे दूकान देखने गई थीं। मैनेजर ने कहा कि अभी विजिलेंस जांच चल रही हैं। अगले माह के प्रथम सप्ताह इन्हें लोन दे दीजियेगा। मैडम ने अपने टेबल पर मुझसे कहा कि आपकी दूकान देख ली हैं। घर भी देखने आऊंगी। मैं इंतजार करता रहा और वे नहीं आईं। निराश हो कर मैं एक दिन फिर बैंक जाकर मैडम से मिला, तो उन्होंने एक लाख का टर्म लोन देने की बात कही। मैंने कहा कि पूर्व मैनेजर ने सीसी लोन के लिए ही चालू खाता खुलवाया था, तो मैडम ने साफ कहा कि सीसी लोन नहीं दूंगी। मैंने कहा कि मुझे बैंक लोन चुकाना भी है। मैं घर का कागज़ात भी जमा करने को तैयार हूँ। मैडम ने कहा कि ठीक है, मैनेजर साहब से बात करुँगी। एक दिन फिर मैं मैडम से मिला, तो उन्होंने कहा कि टर्म लोन ही दूँगी। लगता है कि मैडम कमीशन के चक्कर में सीसी लोन नहीं दे रही हैं। घर देखने के क्रम में वे मेरे घर पर ही लेन-देन करने की नीयत होगी। अब सवाल है कि क्या मैडम ने सभी लोन देने वालों के घरों को जाकर देखा है?
एक चाय बिक्रेता को एक लाख का लोन दिया जाता है, वहीँ 65 वर्षों पुरानी दूकान को व्यापार विस्तार के लिए 3 लाख का सीसी लोन देने के लिए टहलाया जा रहा है। लगता यही है कि रिश्वत दो, नहीं तो बैंक का चक्कर लगा-लगा कर थक-हार कर घर बैठ जाओ! बैंक दलाल के मार्फत तुरंत लोन मिल जाता है। बैंक दलाल इतनी पैठ बना लेते हैं कि वे दिन भर बैंक में ही रहते हैं और लोग यही समझते हैं कि वे बैंक के ही स्टाफ हैं। सीसी टीवी कैमरा का फुटेज देखने से यह सच्चाई स्वयं उजागर हो जाएगी कि आखिर कौन बैंक का दलाल है?
मान्यवर! यूनियन बैंक बिहारशरीफ से हमारा सम्बन्ध करीब 35-36 वर्षों से रहा है। मेरे पिता जी के साथ हमारा संयुक्त खाता नं.887 है। 1983-84 के आस-पास मेरे पिता ने बैंक से 25 हजार का सीसी लोन लिया था। जरुरत नहीं रहने पर लोन लौटा दिया गया था। अच्छा बैंक,अच्छे लोग! मैं बचपन से ही बैंक परिसर में लगा यह स्लोगन पढ़ा करता था। मुझे वाकई उस दौर यह स्लोगन फिट लगता था। वही आज उक्त स्लोगन का मायना ही बदल सा गया है। अच्छे ग्राहक तो हैं, अच्छा बैंककर्मी नहीं। अब मामूली से मामूली काम के लिए बैंककर्मी ग्राहकों को कई दिन चक्कर लगवाते हैं। कोई चक्कर लगा रहा है, तो कोई खाता बंद करवा कर दूसरे बैंक में खाता खुलवा रहा है। आम तौर पर लोग निकट के बैंक में ही खाता खुलवाते हैं। पर बैंककर्मियों के रवैये से तंग आकर बैंक परिसर के मार्किट के ही एक दुकानदार ने अपना खाता बंद करवा लिया। इतना ही नहीं, उक्त दूकानदार को खाता बंद करवाने में एक हजार रुपये की हानि भी उठानी पड़ी।
मुझे भी बैंक के लेखाकार की मनमानी का शिकार होना पड़ा है। मैंने वांछित कागजातों के साथ केवाईसी फॉर्म भर कर 19 अप्रैल 2017 को चालू खाता खुलवाया। पर जब मैं अपराह्न एक बजे एटीएम फॉर्म जमा करने गया तो लेखाकार ने लंच के बाद आने को कहा। मैं लंच के बाद गया’ तो लेखाकार ने कहा कि आपका केवाईसी फॉर्म नहीं भरा हुआ है। मैंने कहा कि मेरा नया खाता है और केवाईसी फॉर्म भर कर दिया हुआ है। उन्होंने कहा कि फिर से दीजिये। और फिर से भर कर दिया, तो कहा कि आज समय ख़त्म हो गया है कल दीजियेगा। ग्राहक इस टेबुल से उस टेबुल का चक्कर लगाते हैं, पर उनका काम नहीं होता है। बैंककर्मी और ग्राहक के बीच हॉट टॉक होनी आम बात हो गई है। बताया जाता है कि लेखाकार और ऋण पदाधिकारी दोनों स्थानीय हैं तथा ग्राहकों पर दबंगता दिखाने से जरा भी बाज नहीं आते हैं। सीसी टीवी फुटेज देखने से पता चल जायेगा कि बैंककर्मी ग्राहकों को कितना परेशान करते हैं!
माननीय! मेरा अनुरोध और सुझाव है कि वरीय पदाधिकारी की देख-रेख में बैंक परिसर में समय-समय पर ग्राहक मिलान समारोह का आयोजन करवाना चाहिए, ताकि आम ग्राहक अपनी परेशानी बता सकें। बंद करवा चुके खाताधारकों से भी जानकारी ली जाय कि उन्होंने क्यों खाता बंद करवाया? बैंककर्मियों के रवैये के कारण बैंक की प्रतिष्ठा ख़राब हो रही है। आज भी इस बैंक में लम्बी लाईन लगकर पर्ची पर नंबर लेने के बाद ही काउंटर पर पैसा जमा हो पता है। मेरी जानकारी के अनुसार यह प्रथा अन्य बैंकों में समाप्त हो चुकी है। पर्ची भर कर सीधा काउंटर पर पैसा जमा होता है और तुरत खाते में जमा राशि की एंट्री हो जाती है।
इस बैंक में ग्राहक लाईन में लगे रहते हैं और बैंककर्मी काउंटर छोड़ कर इधर-उधर रहते हैं। और कोई ग्राहक जल्दी करने को कहता है, तो ये कर्मी रौब दिखाने से जरा भी परहेज नहीं करते हैं। यहाँ ना तो मैनेजर के गेट पर नेम प्लेट है और ना ही अन्य पदाधिकारी या बैंककर्मी के टेबुल पर ही नाम व पद का नेम प्लेट लगा है। इससे ग्राहकों को यह पता नहीं चल पाता है कि कौन सी टेबुल किसका है और उसका नाम क्या है? हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बैंक की छत पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जाता रहा है। पर इस बार 15 अगस्त 2017 को बैंक में झंडा नहीं फहराया गया। इसे बैंक मैनेजर की लापरवाही कहा जाये या लालफीताशाही? आस-पास के दुकानदारों से तथा सीसी टीवी फुटेज से सच्चाई सामने आ जाएगी। बताया जाता है कि बैंककर्मी अपनी कारगुजारियों पर पर्दा डालने के लिए समय-समय पर सीसी टीवी को बंद रखते हैं तथा कभी-कभी फुटेज से भी छेड़छाड़ करने से गुरेज नहीं करते हैं।
मान्यवर! केंद्र में भाजपा की सरकार है, परन्तु बैंककर्मी कांग्रेस सरकार की समयावली से ही देर चल रहे हैं। दलाल-बिचौलियों के मार्फ़त लोन तुरत लो। वरना जूते-चप्पल घिस जायेंगे, लोन नहीं मिलेगा। ऐसे में थक-हार कर लोग बैंक का चक्कर लगाना छोड़ देते हैं तथा महाजन-सूदखोरों से मोटी ब्याज पर पैसा लेकर अपना काम-धंधा चलाने को मजबूर हैं। मुझ जैसे आशावान व न्यायप्रिय लोगों को विश्वास है कि माननीय प्रधानमंत्री हकीकत जानते ही वह इस दिशा में स्वयं पहल करेंगे तथा समुचित जांच करवाकर मेरे जैसे जरूरतमंदों को बैंक से आसानी से लोन दिलवाने की कार्रवाई जरूर करेंगे!
अतः आपसे सादर अनुरोध है कि मेरे उक्त मामले की यथोचित जांच करवाने तथा जल्द से जल्द लोन दिलवाने की कृपा करेंगे, ताकि मैं अपने व्यापार का आवश्यकतानुकूल विस्तार कर सकूँ। आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप बहुत जल्द मेरी विनती पर कार्रवाई करेंगे।
आपका विश्वासी
संजय कुमार
हिंदुस्तान जनरल स्टोर,
एम जी रोड, भरावपर,
बिहारशरीफ, नालंदा,
बिहार – 803101
ईमेल- [email protected]
मोबाइल नंबर-9608311251
प्रतिलिपि प्रेषित-
1. गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, मुंबई.
2. बैंकिंग लोकपाल. पटना.
sunil raj
December 14, 2017 at 1:17 pm
बिहार में हर डाल पर उल्लू बैठा है। खासकर बैंक कर्मियों की तानाशाही चरम पर है। मुद्रा लोन वहां भी दिए गए हैं लेकिन 8 प्रतिशत के कमीशन पर। वगैर दलाल के बैंकों में कोई काम नहीं होता। ग्राहकों की कोई नहीं सुनता। मेरे पहचान के एक व्यक्ति एमए करने के बाद पिछले एक साल से बैंकों का चक्कर लगा रहा है कि दो लाख रुपए मिले तो कोई छोटा सा व्यवसाय किया जाए। लेकिन बैंक दुत्कार कर भगा देता है। बैंक अधिकारी कहता है कि आप अपने नजदीक के शाखा में संपर्क करिए, यह आपके क्षेत्र में नहीं है। मुद्रा लोन बंद हो गया है,हम लोगों का टार्जेट पूरा हो गया है। भारत सरकार को एक सर्वे करानी चाहिए बिहार के बैंकों की स्थिति और मुद्रा लोन पर। पता चलेगा कि बैंक कर्मियों ने अपने टार्जेट पूरा करने के लिए ज्यादातर अपने नाते-रिस्तेदारों को लोन दिया और फिर दलालों के मार्फत 8 फीसदी लेकर।