आपको एडिटर साहब बुला रहे हैं।
ठीक ठीक समय तो याद नहीं लेकिन रात के 9 या 10 बजे होंगे। मुझे लगा किसी खबर में कोई गलती हो गई। या मेरी लिखी ख़बर पर कोई बवाल है?
हमेशा की तरह पहले उन्होंने कुर्सी पर बैठने को कहा और फिर पूछा पानी पियोगे…या चाय ? कुछ देर के बाद वे मुस्कुराए तो मुझे राहत मिली। फिर बोले ..कल से आप अख़बार( The Pioneer) के चीफ रिपोर्टर होंगे। और ये जिम्मेदारी बड़ी है ..work more hard..you will manage!
1864 से लगातार प्रकशित होने वाला The Pioneer, उस वक़्त भी लखनऊ का एक बड़ा अख़बार था। ज़ाहिर है इस अखबार का चीफ रिपोर्टर बनना मुझे अच्छा तो लगा पर मैं ये भी जानता था कि कई रिपोर्टर इसे सही स्पिरिट में नही लेंगे क्यूँकि बहुत से उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। और तब उन्होंने कहा …थोड़ी दोस्ती यारी कम रखिये। balanced रहिए। बद्तमीज़ बनने की ज़रुरत नहीं . .. पर थोड़ा सख्त रहिए।
वरिष्ठ पत्रकार उदय सिन्हा जी कि ये बातें, नसीहतें, मै कैसे भूल सकता हूँ। उतना विनम्र, उतना शिष्ट संपादक मैंने नहीं देखा। आज सुबह जब पता लग कि 62 बरस की कम उम्र में वे अलविदा कह गये ..तो सचमुच तलकीफ हुई। वे पिछले कई साल से अपनी सेहत से उलझे हुए थे। तकलीफ….या सही बोलूं तो शर्मिंदगी इस बात की थी, कि इधर मेरा लखनऊ दो-चार बार जाना हुआ पर मैं वहां जाकर, ना उन्हें देखने गया, न उनका हाल चाल किसी से पूछा, और न किसी ने उनका ज़िक्र किया।
इंसान जब थोड़ा कमज़ोर होता है, थोड़ा गुमनाम होता है, तो रिटायर मान लिया जाता है। और रिटायर आदमी से पत्रकार समाज कुछ परहेज भी रखता है। इस पेशे में सत्ता के भीतर और सत्ता के नज़दीक लोग ही ज़्यादा याद किए जाते हैं, या वो जो आपको नौकरी दे सकें, या फिर कोई लाभ देने की स्थिति में हों। और शायद मेरी सोच भी ऐसी ही होती जा रही हो, इसीलिए लखनऊ जाकर भी मैंने उदय जी का हाल नही लिया। गिरती साख और नैतिकता के इस वायरस से बचना वाक़ई मुश्किल है।
बहरहाल कुछ बातें उदय सिन्हा जी के बारे में आज के सन्दर्भ में कहनी है। जो याद कर पा रहा हूँ । जो आपको पढ़कर अच्छा लगेगा। उदय सिन्हा जी, मीडिया में जबरदस्त वर्क प्रेशर के बाद भी, कभी न्यूज़ रूम में अनायास दबाव का माहौल नहीं बनने देते थे। किसी रिपोर्टर को सार्वजनिक तौर पर बेइज़्ज़त नहीं करते थे।उनकी ऊँची आवाज़, ग़ुस्से में दी जाने वाली गालियाँ शायद ही किसी ने सुनी होंगी । उनका महिला रिपोर्टर, सब-एडिटर, स्टाफ के प्रति व्यवहार बेहद शिष्टजनक रहा। मैंने देखा, मेरी कई फ़ीमेल कॉलीग इस मामले में उनकी तारीफ़ करती थीं।
वे आज के दौर के कुछ स्टार संपादक/चैनल हेड्स की तरह पावर ब्रोकर भी नहीं थे। उनका रहना, खाना, जीना, पीना बेहद सामान्य था। और दफ्तर में सपोर्ट स्टाफ, (ड्राइवर से लेकर चपड़ासी तक) से उनका बातचीत का अंदाज़ बेहद दोस्ताना होता था। दिल्ली में कुछ साल पहले, जब मैं आजतक में था..तो एक बार नॉएडा में उनसे मुलाकात हुई…और जब उन्होंने मुझे दीपक ‘जी’ कह कर बुलाया..तो मैं वैसी ही असहज हुआ जैसे उनसे पहली मुलाकात में हुआ था।
उदय जी आप उस दुर्लभ होती पत्रकार श्रेणी से है, जो काम में टॉप क्लास रहे लेकिन जीवन मिडिल क्लास वाला रखा।
आपको शत शत प्रणाम, नमन। प्रभु, आपके घरवालों को इस दुःख की घडी में संबल दे।
लेखक दीपक शर्मा आजतक में लंबे समय तक कार्यरत रहे और इन दिनों न्यूज़ एजेंसी ians के सम्पदाक के रूप में सेवारत हैं।
सुरेश चंद रोहरा
April 8, 2020 at 9:19 pm
उदय सिन्हा जी को नमन श्रद्धा सुमन अर्पित-संपादक गांधीश्वर सुरेशचंद रोहरा ,छत्तीसगढ़
Shivesh K Sinha
April 10, 2020 at 4:36 am
दीपक जी. बड़े अफसोस की बात है के उदय सिन्हा (मेरे चचेरे अग्रज) के निधन के बारे में पायनियर, टाइम्स ऑफ़ इंडिया या किसी भी समाचार पत्र में कोई जिक्र तक नहीं है।