शेषनाथ पांडेय-
इस उठा – पटक में उद्धव याद रह जाएंगे। याद तो कोविड के दौरान अपने किए गए काम के लिए भी रखे जाएंगे। जब सबसे ज़्यादा केस वाला राज्य, सबसे ज़्यादा बेहतरी से अपने को संभाल पाया। बंदी से लोगो की हालत ख़राब हो गई थी, तो सरकारी संस्थानों को दुरुस्त किया। बेस्ट की बसें घाटे में चल रही थी, फिर भी उसका किराया घटाकर 50 परसेंट के करीब कर दिया, जो अभी तक चल रहा है। इनमें एसी बसे भी शामिल थी। उद्धव नहीं होते तो आर ए का जंगल नहीं बचता।
संजीव चंदन-
ऐतिहासिक न्याय आपके पक्ष में है उद्धव। उद्धव ठाकरे आप सरकार हार गये लेकिन इतिहास और वर्तमान का दिल जीत गये।अच्छा ही किया विधान परिषद से भी इस्तीफा दे दिया-यह लो अपनी लकुटी कमरिया, बहुत ही नाच नचायो।
आपका जाना एक कवि, एक कैमरे के कलाकार , एक संवेदनशील मनुष्य का जाना है।
आपने अपने आखिरी संबोधन में सोनिया गांधी और शरद पवार को धन्यवाद कहकर उन लोगों की परवाह नहीं की जो आपको अपनी लंपटता, भय और कुटिलता के भंवर में खीच रहे थे।
अच्छा ही है नाम बदलने में यकीन न रखने वाली पार्टियों ने भी सहजता से दो शहरों के नाम बदलने के आपके प्रस्ताव को मानकर आपको मानपूर्वक विदाई दी।
आप अपने पिता की मिश्रित विरासत और उनकी खड़ाऊं पहनने के संतुलन-असन्तुलन में लड़खड़ा कर गिरे।
पता है आपके साथ महाभारत के कर्ण की तरह ऐतिहासिक न्याय क्यों है?
कर्ण को पूर्ण निहत्था कर, कवच-कुंडल विहीन कर, शापग्रस्त कर हत करवाया है महाभारतकार ने, महाकाव्य के बाहर और काव्य की संवेदना में वह नायक बनकर उभरा।
जो लोग इसे राजनीति के खाते में डालकर देखना चाहते हैं, विश्लेषित करना चाहते हैं वे या तो धूर्त हैं या भक्त।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता जाना विशुद्ध राजनीति थी। राजस्थान में भी भाजपा के प्रयास ऐसी ही राजनीति थी।
लेकिन महाराष्ट्र में ढाई साल में राजनीति नहीं निकृष्टता की हद पार की गयी सत्ता-हरण के लिए।
आपको बहुत बधाई उद्धव। आप फिर आयेंगे की अहंकारी घोषणा से भी बचे। जो आपके पूर्ववर्ती ने की थी। आपने जनता के बीच जाने का फैसला किया, दुबारा आना या न आना आपने उसपर छोड़ा। यही लोकतंत्र का विवेक है।
मज़क़ूर आलम- ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि कांग्रेस और एनसीपी उनके पीछे पूरे कार्यकाल के दौरान खड़ी रही। इसके अलावा उद्धव ने भी सनकी हिंदुत्व वाली छवि से निकलकर चलने का जिगरा दिखाया। असल परीक्षा तो अब होगी, जब सत्ता ठाकरे के पास नहीं होगी और ED, CBI, और अब महाराष्ट्र पुलिस भी जैसी केंद्रीय एजेंसियों को जिस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया गया है, उसमें लगेगी। यानी शिवसेना जैसी पार्टियों को तोड़ने (आर्थिक रूप से भी) लगेंगी। जब हर दिन शिवसेना के कार्यकर्ता और नेताओं (खासकर मझोले और छुटभैये) को प्रताड़ित किया जाएगा, तब उद्धव कैसे अपनी पार्टी को संभालते हैं और उसका विस्तार करते हैं। इसी से उनके राजनीतिक एवं रणनीतिक कौशल की परीक्षा होगी।
अभिषेक श्रीवास्तव- कसम से, क्या दिन आ गए हैं। सावरकर के वंशज हिंदुस्तान फतह कर रहे हैं, तो बालासाहेब ठाकरे के वंशज हिंदुस्तान के धर्म-निरपेक्ष, प्रगतिशील, लोकतान्त्रिक तबके का दिल जीत रहे हैं। बाएं हाथ को तो भूल जाइए, बीच की ही जमीन गायब है। अब महाप्रयाण ही विकल्प है।
अमिताभ श्रीवास्तव- उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव के दौरान मुख्यमंत्री पद और विधान परिषद से इस्तीफा दिया। उद्धव ने बागियों पर शालीन लेकिन दृढ़ शैली में तीखा हमला किया। उन्होंने कहा जिन्हें मैंने सब कुछ दिया, वे साथ छोड़ गये और जिन्हें कुछ नहीं दिया, वे साथ रहे। मेरे पास शिवसेना है जो कोई नहीं छीन सकता। उद्धव ने कहा सीएम पद छोड़ने का उन्हें कोई दुःख नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि वह नहीं चाहते शिवसैनिक सड़कों पर उतरें। उद्धव ने सहयोग और समर्थन के लिए एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का शुक्रिया अदा किया। उद्धव ने एक शालीन नेता के तौर पर छाप छोड़ी है।अफसोस कि बीजेपी की खूंखार और पैसे, पद, सत्ता के दबाव से जनप्रतिनिधियों को खरीद सकने वाली राजनीति के आगे संख्या बल में उनकी पराजय हुई। विधानसभा में बहुमत परीक्षण में लड़ कर जाते तो बेहतर होता।
Mahendra 'manuj'
July 5, 2022 at 12:10 pm
शिवसेना की स्थिति बेशक यूक्रेन की भाँति हो गयी है, लेकिन उद्घव के सामने जेलेंस्की का हौसला एक बेहतरीन उदाहरण है।
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत
राजनीति में उद्धव जैसे सभ्य पुरुष हैं, यह कम संतोषप्रद नहीं है।
सूरत-गुवाहाटी-गोवा की सैर करने और शिंदे सरकार बनने के बावजूद मत परीक्षण में विधायक कैलाश पाटिल व राहुल पाटिल द्वारा उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हो जाना ,नयी सरकार को बौना कर देना है।