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वेब-सिनेमा

‘ऊधम सिंह’ देखने के बाद ख्याल आया कि जिसने माफी मांगी, मुखबिरी की, पेंशन ली, वो कैसे ‘वीर’ हो गया!

मनमीत-

सरदार उधम सिंह पर बनी फिल्म देखी। लगभग आखरी सीन में जब उधम सिंह को फांसी के तख्ते पर ले जाया जाने की तैयारी होती है।

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उससे आइरिश फ्रीडम मूवमेंट की एक कॉमरेड जेल में मिलने आती है। वो उधम सिंह से कहती है कि वो ब्रिटिश सरकार से माफी मांग ले। कम से कम फांसी रुक जाएगी। उधम सिंह मुस्कुरा देता है और मुँह मोड़ लेता है।

फांसी पर ले जाने से पहले उससे एक अंग्रेज़ अफसर पूछता है कि कोई अंतिम ख्वाहिश ? उधम सिंह कहता है, दुनिया को कहना मुझे क्रांतिकारी के तौर पर याद रखे।

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ऐसे में, फ़िल्म देखने के बाद ख्याल आया कि जिसने माफी मांगी और फिर मुखबिरी की पेंशन भी ली। वो कैसे ‘वीर’ हो गया !

खैर, फिर मैंने जोर जोर से गाना गाया, ये दुनिया पीतल दी….

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दया सागर-

कल तक उधम सिंह उन हजारों लाखों गुमनाम शहीदों में एक थे जिन्होंने देश के लिए अपना खून बहाया। अब शुजित सरकार जैसे फिल्मवाले ऐसे नायकों को खोज कर बेहतरीन सिनेमा बना रहे हैं तो ये वाकई कबिले तारीफ बात है.

उधम सिंह की कहानी मैंने कोई बीस साल पहले पढ़ी थी और हैरत में था कि इस इंसान को हमने याद क्यों नहीं रखा. हमारे इतिहासकारों ने उधम सिंह हमेशा फुटनोट में जगह दी क्योंकि उनका रास्ता हिंसा का था जो महात्मा गांधी के रास्ते के एकदम खिलाफ था।

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जलियावाला कांड में जो भी हुआ वह अमानवीय था. वह सिर्फ हिंसा नहीं बर्बरता थी. आज तक किसी फिल्मकार ने जलियावाला बाग काण्ड को इतने विस्तार से नहीं दिखाया जितना फिल्म ‘सरदार उधम’ में शुजित सरकार ने दिखाया है.

हर दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला है. उन सैकडों लाशों में घायलों को अपने कंधे फिर ठेले पर लाद कर अस्पताल ले जाने वाले 18 साल के उधम सिंह की मनोदशा क्या रही होगी इसकी आप कल्पना कर सकते हैं।

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लेकिन मुझे बेहद अफसोस है कि हमारे फिल्मवाले पूरा सच नहीं दिखाते जैसे हमारे इतिहासकार पूरा सच नहीं लिखते. ये बात मुझे हमेशा बेचैन करती है।

गोली चलाने का फैसला करने वाले पंजाब के गवर्नर सर माइकल ओ’ डायर को सजाए मौत देने का निर्णय उधम सिंह ने तभी कर लिया था। बीस साल तक सका हर दिन डायर के इंतजार में बीता। और जलियावाला कांड की बरसी के ठीक एक महीना पहले 13 मार्च 1940 को उसने भरे समारोह में डायर को गोली मार दी. अगले दिन भारत के अखबरों में भी ये खबर छपी तो गांधी जी ने बाकायदा वक्तव्य जारी कर इसे ‘पागलपन’ करार दिया. अगले दिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक शुरू होनी थी.

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गांधी के वक्तव्य ने कांग्रेस को लाइन दे दी थी. कांग्रेस कार्यसमिति ने उधम सिंह के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया जिसकी भाषा थी “भारतीय कहे जाने वोले एक व्यक्ति ने माइकल ओ डायर की हत्या कर दी.” फिर 17 मार्च को महात्मा गांधी का एक लम्बा बयान जारी हुआ जिसमें उन्होंने कहा-“मैं चाहूंगा हर एक देश भक्त भारतीय मेरी ही तरह इस कृत्य पर लज्जा अनुभव करे.

अखबार हमें बताता है कि अभियुक्त को जब अदालत और जनता के समक्ष लाया गया तो उसने मस्ती भरी लापरवाही दिखाई. लेकिन मैं इसकी प्रशंसा नहीं करता. मेरे लिए तो ये पागलपन जारी रहने की निशानी है. मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूं जिन्होंने शराब या रम के नशे में ऐसे अंधाधुंधी काम किए हैं। इस काम के लिए मैं किसकी प्रशंसा करूं रम की या उसके असर की.”

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ऐसी ही तमाम आपत्तिजनक बातें गांधीजी ने उधम सिंह के बारे में कहीं. सब कुछ रिकार्ड में है. तो आप समझ सकते हैं कि देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने वाले महात्मा के इस वक्तव्य के बाद कौन सा इतिहासकार उधम सिंह को नायक बना के पेश करेगा. इन बातों को मैंने अपनी किताब के अलावा कहीं और नहीं लिखा क्योंकि तब कोई इस बात को समझ नहीं पाता.

अब जबकि उधम सिंह की कहानी देश के सामने है तो आप सही नतीजा निकाल सकते हैं कि उधम सिंह क्या सच में पागल थे? सैकडों स्‍त्री, पुरुष, बुजुर्ग और छोटे बच्चे तक थ्री नॉट थ्री की गोली का शिकार हुए थे। हर आदमी तो गांधी नहीं हो सकता ना जिसे ब्रिटिश सरकार अपने दामाद की तरह जेलों में बंद रखकर उनकी मेहमानवाजी करती हो।

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धीरे धीरे हमारा सिनेमा यर्थाथवादी और परिवक्व हो रहा है। ‘सरदार उधम’ के डायरेक्टर #ShoojitSircar और शानदार अभिनय के लिए Vicky Kaushal दोनों बधाई के पात्र हैं. ये फिल्म हर लिहाज से राष्ट्रीय पुरस्कार की हकदार है.

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