Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

उमाकांत लखेड़ा को प्रेस क्लब आफ इंडिया के प्रेसीडेंट पद के लिए क्यों वोट देना चाहिए?

दीपक शर्मा-

दक्षिण भारत की इतनी सटीक जानकारी तो नहीं लेकिन उत्तर भारत में जितना भ्रष्टाचार उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में है शायद ही कहीं और होगा ? सीबीआई, विजिलेंस और अदालतों के निर्देश पर जितनी जांचे बीते कुछ बरसों में यहाँ मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) की हुई हैं वे खुद में चौंकाने वाली है ! और मैंने खुद देखा है उन लोगों को जो देहरादून में CMO के नज़दीक रहे और फिर चंद बरसों में बीएमडब्लू और मर्सेडीज़ लेकर दिल्ली लौटे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

शायद इसीलिए, दैनिक जागरण और हिंदुस्तान जैसे अख़बार से जुड़े उमाकांत लखेड़ा जब एक दौर के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री जनरल बीसी खंडूरी के सलाहकार बने तो मुझे लगा कि लखेड़ा भी धन-बल के प्रभाव में एक मायावी यात्रा पर निकल चुके हैं। वे भी जल्द, मर्सेडीज़ से दिल्ली लौटेंगे। लेकिन मेरा अनुमान न जाने क्यूँ गलत था ?शायद हमारी सोच में ही खोट है जिसके चलते हम अक्सर, सारी भेड़ .. एक रंग में ही रंग देते हैं !

कुछ बरस बाद, उमाकांत लखेड़ा एक दोपहर मुझे दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में मिले। चाय-नाश्ते के बाद जब मीटिंग ख़त्म हुई तो मैंने सोचा लखेड़ा साहब को उनकी कार तक सी ऑफ कर दूँ। क्लब के गेट सामने एक सफ़ेद चमचमाती फॉर्च्यूनर खड़ी थी .. मै जैसे ही उधर बढ़ा, कि लखेड़ा जी ने मेरा हाथ खींच लिया,” उधर कहाँ जा रहे हैं, मुझे मंडी हाउस तक ऑटो ढूंढ़ दीजिये….मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन से गाजियाबाद निकल जाऊँगा।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

छोटे से तिपहिया ऑटो रिक्शा पर सवार, लखेड़ा साहब, क्लब से फुर्र हो गए लेकिन ऑटो से हाथ हिलाते हिलाते शायद वे मुझ से कह रहे थे कि बरखुरदार, मुख्यमंत्री के हर सलाहकार का मतलब ‘फॉर्च्यूनर’ नहीं होता। कुछ लोग, दो कमरे के मकान में रहकर और ऑटो पर चलकर भी CMO रिटर्न हो सकते हैं। इस घटना के बाद, लखेड़ा जी के प्रति मेरा सम्मान और बढ़ गया।

इतने बरस बाद, आज इस पोस्ट को लिखने का मकसद ये था कि उमाकांत लखेड़ा ने इन दिनों, जीवन में एक बड़ा चैलेंज ले लिया। कुछ मित्रों ने उनसे जब सवाल किया कि प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में, हिंदी का कोई पत्रकार, अब तक अध्यक्ष का चुनाव क्यों नहीं जीत सका ? … तो इस पर लखेड़ा जी का हिन्दीवाद जाग उठा। बिना सोचे, उन्होंने घोषणा कर दी कि देश में पत्रकारों के सबसे प्रतिष्ठित चुनाव में वे हिंदी को आगे रखना चाहते है। विचार बुरा नहीं था लेकिन प्रश्न इतना ही कि क्या जिस पत्रकार के पास इंग्लिश का टशन नही, खर्च करने को रोकड़ा नहीं, चलने को स्कूटर नहीं, वे देश की संसद से 500 मीटर दूर, सर्वप्र्रतिष्ठित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया का प्रेजिडेंट बन सकता है ? क्या वे इस चुनाव में दिल्ली के हज़ारों पत्रकारों को अपनी ओर खींच सकता है ? क्या वे 65 साल पुराने प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में अंग्रेजी का वर्चस्व तोड़ पायेगा ? मै लखेड़ा जी की कूवत और काबिलयत पर नहीं जा रहा पर क्या सचमुच, बस और रिक्शे पर चलने वाला पत्रकार, अपनी बिरादरी में इतना बड़ा चुनाव जीत सकता है ?

शायद इसलिए मुझे पहली बार प्रेस क्लब के चुनाव को लेकर किसी उम्मीदवार के पक्ष में ये पोस्ट लिखनी पड़ गयी ..क्यूंकि जब से लखेड़ा साहब का मुझे फोन आया और उन्होंने मुझसे समर्थन माँगा तब से मै सोच रहा हूँ कि इस चुनाव परिणाम के नतीजों का आखिर मुझपर असर क्या होगा ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

सचमुच, चुनाव सिर्फ हमारी बिरादरी का है पर
इस ईमानदार आदमी की हार
मुझे विचलित कर देगी।
काश वे चुनाव न लड़ते ,
और अब लड़ गए हैं
तो हारें नहीं!

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. श्रुतिमान शुक्ल

    April 6, 2021 at 11:31 pm

    वाह। लिखने की शैली ने मोह लिया। पत्रकारिता को जीवित रखने की शक्तियों विभूतियों और कलम के सिपाहियों, सरस्वती के पुत्र को प्रणाम

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement