उत्तराखंड में हर वर्ष 25 मार्च को प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के एक-एक युवा पत्रकार को उमेश डोभाल पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसे पत्रकारों को पुरस्कार से नवाजा जा रहा है, जिनका उत्तराखंड की पत्रकारिता में कोई खास योगदान ही नहीं है। हैरानी इस बात है कि कई पत्रकारों को मात्र दो या फिर तीन साल की पत्रकारिता करने पर ये पुरस्कार दिया जा चुका है, जबकि आयोजक इसे राज्य का सबसे बड़ा पुरस्कार करार देते हैं। प्रिंट के मुकाबले इलैक्ट्रानिक में ज्यादा बुरी स्थिति है। इलैक्ट्रानिक मीडिया में साल 2009 से ये पुरस्कार देने की परम्परा शुरू हुई थी।
शुरू के दो-तीन पुरस्कारों को छोड़ दें तो अब तक के सभी पुरस्कार ऐसे लोगों को दिए गये हैं, जिनको राज्य में शायद ही कोई जानता हो। ऐसा नही है कि राज्य में जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारों का टोटा पड़ा है लेकिन न जाने क्यों चयन समिति हर बार ऐसे फैसले ले रही है कि लोगों का उस पर से भरोसा साल दर साल उठता जा रहा है। सम्मानित किए जाने वाले पत्रकारों के चयन के लिए पहले हर जिले से कुछ लोगों की सुझाव लिए जाते थे लेकिन वहां भी यही गल्तियां हुईं। इस साल दो अनजान चेहरों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया, जिससे नाराज हो कर कई वरिष्ठ पत्रकारों ने उमेश डोभाल स्मृति समारोह में न जाने का मन बना लिया।
(एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित)
usaha
March 29, 2015 at 9:32 am
thekedaron ko mil raha samman……