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उत्तराखंड

पहाड़ को उमेश कुमारों और उसके संरक्षकों से क्यों है खतरा, जानिए अंदर की सच्ची कहानी

Charu Tiwari : चोरी, ऊपर से सीनाजोरी… उत्तराखंड आजकल चर्चाओं में है। किसी उपलब्धि के लिये नहीं। विकास के लिये नहीं। एक दलाल किस्म के पत्रकार के गिरफ्तार होने पर। ऐसा पत्रकार जिसके भाजपा-कांग्रेस सभी नेताओं के साथ संबंध थे। मुख्यमंत्री से लेकर विधायकों, मंत्रियों, पार्टी के बड़े नेताओं, आईएएस अधिकारियों से लेकर क्लर्को तक उसकी पहुंच थी। वह मुख्यमंत्रियों के साथ बैडमिंटन खेलता था। मुख्यमंत्री-मंत्री, नेता-अफसर, माफिया उसके बच्चे की बर्थ डे पार्टी में जाना अपना सौभाग्य समझते थे। वह पहाड़ के नेताओं के लिये बहुत प्रतिबद्ध पत्रकार था। उसका चैनल चलता है। बहुत सारे गपोड़ी पत्रकारों को उसने नौकरी दी थी। सचिवालय और विधानसभा में उसकी सीधी पहुंच थी।

मुख्यमंत्रियों के बेडरूम तक में वह झांक सकता था। रमेश पोखरियाल निशंक जैसे ‘विश्व के सर्वश्रेष्ठ’ मुख्यमंत्री को उसे गिरफ्तार करना पड़ा। वह ‘चतुर-सुजान’ मुख्यमंत्री हरीश रावत तक का स्टिंग आपरेशन कर सकता था। वह हरक सिंह रावत जैसे ‘दबंग’ नेता को अपने झांसे में ले सकता था। वह मदन बिष्ट जैसे ‘बलिष्ठ’ विधायक को कैमरे में कैद कर सकता था। वह अजय भट्ट जैसे ‘राष्ट्रभक्त’ और ‘संस्कारी-बाचाल’ को प्रभावित कर सकता है। जो प्रतिपक्ष के नेता रहकर उसे जनपक्षीय और प्रतिबद्ध पत्रकार होने का प्रमाण पत्र देते हैं। सरकार से उस पर लगे आपराधिक मामलों को वापस लेने की सिफारिश करते हैं। उसकी सिफारिश में ‘सीधे-साधे-गधेरू’ नेता भगत सिंह कोश्यारी भी पत्र लिखते हैं। वह इतना ताकतवर है कि ‘कानून के जानकार’ मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा उसके केसों को वापस लेते हैं। आखिर वह पकड़ा भी इसी बात पर गया कि वह हमारे ‘यशस्वी’ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत और उनके ‘मुंहलगे’ कुछ बड़े अफसरों का स्टिंग कर रहा था, या कर चुका था।

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यह कहानी उमेश कुमार नामक एक दलाल से शुरू जरूर होती है, लेकिन इसकी विषयवस्तु इन अठारह सालों में लुटते-पिटते उत्तराखंड की वह बानगी है जिसे नेता-अफसर-माफिया के गठजोड़ ने कहीं का नहीं छोड़ा। उमेश कुमार इसलिये नहीं पकड़ा गया है कि उत्तराखंड में किसी ईमानदार राजनेता का अवतार हो गया है। इसलिये भी नहीं कि त्रिवेन्द्र रावत भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, बल्कि इसलिये पकड़ा गया कि कल तक मुख्यमंत्राी जिस दलाल के बच्चे की बर्थ डे पार्टी में जा रहे थे वह उनके और उनके कुनबे के लिये खतरा बन रहा है। वह उनकी पोल-पट्टी खोलने के लिये ब्लेकमेलिंग पर उतर आया है। उसे क्यों पकड़ा गया उसका खुलासा भी होना चाहिये। यह बात भी सामने आनी चाहिये कि उसने इस बीच किस-किस के स्टिंग किये हैं।

यह बात भी सामने आनी चाहिये कि इसके इन सब नेताओं के साथ क्या संबंध थे। इस तरह के और किन लोगों के साथ इन नेताओं के संबंध हैं। यह जानना इसलिये जरूरी है कि इन अठारह सालों में जिस तरह सत्ता में बैठे लोगों ने पहाड़ से लोगों को खदेड़ने का इंतजाम किया वह इस तरह के नापाक गठजोड़ का नतीजा है। पिछले दिनों एक शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा मुख्यमंत्री के दरवार मे अपनी समस्या को लेकर गई। मुख्यमंत्री ने उसे बेइज्जत किया। धक्का मारकर बाहर करने का आदेश दिया। यह भी कहा कि इसे गिरफ्तार करो। इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उस शिक्षिका ने कहा कि तुम ‘चोर-उच्चके’ हो। मीडिया से लेकर ‘ससंदीय भाषा’ के ठेकेदारों ने कहा कि एक मुख्यमंत्री के प्रति शिक्षिका की भाषा संसदीय नहीं थी। अभी गांव के आदमी को गुस्सा आने वाला है, वह बतायेगा कि संसदीय भाषा क्या होती है। वह कोई शिक्षक या संसदीय भाषा का मर्मज्ञ नहीं है। समय आने दो वह आपकों अपनी भाषा से नवाजने वाला है। राहत इंदौरी ने इनके लिये ठीक ही कहा-

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हादसा बनकर वह बाजार में आ जायेगा,
जो कहीं नहीं हुआ, वह अखबार में आ जायेगा।
‘चोर-उच्चकों’ की करो ‘कद्र’
पता नहीं कब कौन सरकार में आ जायेगा।

दरअसल, ये चोर-उच्चकों से ज्यादा कुछ नहीं थे। इनकी संगत और स्तर भी उमेश कुमार जैसा ही है। अजय भट्ट सीना तानकर बेशर्मी के साथ बोल रहे हैं कि हां मैंने लिखी चिट्ठी। उनसे पूछा जाना चाहिये कि अगर इतनी गर्मी तुमने पहाड़ के हित में दिखाई होती तो तुम्हारी ये गत नहीं होती। अजय भट्ट! तुम्हारा जनप्रतिनिधित्व उस समय क्यों नहीं जागा जब तुम्हारे आका केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह मुजफ्फरनगर कांड के डायर अनन्त कुमार सिंह को अपनी छत्र छाया में बचाते रहे। तुम जैसे पहाड़ के नेताओं को राजनाथ से मिलने के लिये अनन्त कुमार के पैर पकड़ने पड़ते थे। अजय भट्ट तुम्हारी यह हेगड़ी तब कहां गई जब तुम्हारे सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री मेजर जनरल खंडूडी के समय में मुजफ्फरनगर कांड के हत्यारे बुआ सिंह को देहरादून में रेड कारपेट सम्मान दिया गया।

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अजय भट्ट! जनता तुमसे सवाल पूछती है कि तुम उस समय कहां रहते हो जब राज्य के तीन हजार से ज्यादा स्कूल बंद किये जाते हैं। तुम्हारी सरकार राज्य के पांच नवोदय विद्यालयों को बंद करने की घोषणा करती है। सरकार 20 पाॅलीटेक्नीकों को बंद करने का फरमान जारी करती है। तुम उस समय क्या करते हो जब हमारे सारे अस्पतालों को सेना और फाउंडेशनों के हवाले करने की तैयारी होती है। तुम उस समय क्यों नहीं बोलते जब तुम हमारी नदियों को थापर, रेड्डी और जेपी के हवाले किया जाता है। अजय भट्ट तुममे जरा भी हया है तो इस बात का जबाव दो कि किस बेशर्मी से तुम्हारा कुनबा पूरे पहाड़ को बेचने के लिये देहरादून में बड़े-बड़े उद्योपतियों के सामने पहाड़ की बोली लगाते हैं। पहाड़ में जमीनों को खरीदने के लिये पूंजीपतियों के लिये कानून बनाने की बात करते हैं। उस समय तुम कोई चिट्ठी क्यों नहीं लिखते।

अजय भट्ट! तुमसे यह भी पूछा जाना चाहिये कि अपने गडकरी जैसे ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिये आल वेदर रोड जैसी परियोजनायें बनाते वक्त तुम चुप क्यों हो जाते हो। पंचेश्वर जैसे विनाशकारी बांध के लिये जिस तरह 134 गांवों की बलि दे रहे हो उस समय तुम्हारा जनप्रतिनिधित्व कहां चला जाता है। अभी गैरसैंण राजधानी के सवाल पर जिस तरह अजय भट्ट जी आपने बयान बदले हैं वह आपकी नीयत और समझ को भी साफ कर देता है। तुमने गैरसैंण पर एक साल में तीन बयान बदले। तुम्हारे मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि सहारनपुर को भी पहाड़ में मिलाना है। तुम्हारे एक मंत्री हरक सिंह रावत कह रहे थे कि बिजनौर के गांवों को मिलाना है। आखिर तुम प्रतिनिधि किसके हो?

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अजय भट्ट तुम उस समय कहां थे जब तुम्हारे मुख्यमंत्री पहाड़ में शराब की दुकानें खोलने के लिये राजमार्गो को जिला सड़क घोषित कर रहे थे। तुम उस समय कहां थे जब सरकार गांव-गांव मोबाइल गाड़ियों से शराब पहुंचा रही थी। राज्य में सरकारों को बचाने के लिये विधायकों को राज्य और राज्य के बाहर रिजार्ट और होटलों में रखा जा रहा था। तुम्हारे मध्य प्रदेश का एक नेता जो देहरादून आकर बोली लगा रहा था तब तुम्हारा जमीर कहां गया था। तुम उस समय कहां चले जाते हो जब तुम्हारी परिसंपत्तियों पर उत्तर प्रदेश कब्जा कर लेता है। उस समय कहां थे जब परिसीमन पर तुम्हारी विधानसभा सीटें कम की जा रही थी। क्यों नहीं लिखी अजय भट्ट तुमने कोई चिट्ठी। उस समय क्यों नहीं जागी तुम्हारी आत्मा। एक दलाल के लिये तुम्हारा जनप्रतिनधित्व जाग गया। इससे साफ हो गया कि तुम किसके प्रतिनिधि हो।

एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी। जो चिट्ठी अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री को लिखी थी वह एक सामान्य सिफारिश वाली चिट्ठी नहीं है। वह कवरिंग लेटर भी नहीं है। उस पत्र में उन्होंने उन सभी धाराओं का जिक्र किया है जो उमेश कुमार पर लगी थी। इस चिट्ठी में उसे एक प्रतिबद्ध पत्रकार बताया गया है। अजय भट्ट ने पुरजोर सिफारिश की है कि उन पर लगे मुकदमे वापस लिये जायें। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि वह एक सम्मानित नागरिक है और उसकी पत्रकारिता से शासन को परेशानियां उठानी पड़ रही है। उमेश कुमार की लेखनी को न्याय के लिये संघर्ष बताया गया है। पत्र में कह गया है कि उनकी लेखनी को अन्यथा लेते हुये उन पर मुकदमें किये गये हैं।

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पत्र में यह भी कहा गया है कि उन पर किये गये मुकदमे संवैधानिक और प्राकृतिक अधिकारों पर भी प्रहार करते हैं। इतनी अधिकारपूर्ण चिट्ठी तो कोई तभी लिख सकता है जब वह उस व्यक्ति को पूरी तरह जानता हो। उसके साथ उसका कोई संबंध हो। अजय भट्ट कह रहे हैं कि तब की परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में अंतर है। उमेश कुमार तब भी एक दलाल ही था। उससे पहले अजय भट्ट की पार्टी के ही मुख्यमंत्री इस दलाल पर कार्यवाही कर चुके थे। अगर यह भी मान लिया जाये कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते उन्होंने रूटीन में यह सिफारिश कर दी हो, अगर यह सच है तो भी इतने गैरजिम्मेदार प्रतिनधियों से लोकतंत्र को भारी खतरा है। जिनके पास दो कौड़ी की अकल न हो। वैसे अजय भट्ट इतने भोले नहीं हैं कि वह किसी के कहने पर ऐसा पत्र लिख देंगे। अजय भट्ट पहाड़ के उन नेताओं में हैं जो सिर्फ अपनी ‘चालाकी’ की ही खाते हैं। कई बार ‘अति चालाकी’ कर बैठते हैं। सावधान पहाड़ को उमेश कुमारों और उसके संरक्षकों से खतरा है।

उत्तराखंड के लगभग सभी मुद्दों पर सभी नेताओं और राज्य की जनता का ध्यान आकृष्ट करने वाले सोशल एक्टिविस्ट चारु तिवारी की एफबी वॉल से.

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