उमेश कुमार-
त्रिवेन्द्र रावत के नाम खुला पत्र -:
पूर्व मुख्यमंत्री साहेब!! आपके मुखमंडल से निकले ढेंचा ढेंचा शब्द जो स्फुटित हुए हैं उसके बाद आप पुनः सुर्खियों में तो आ ही गए हैं वहीं आपके हाईकमान जिन्होंने आपको कुर्सी से किक आउट किया वो भी सकते में आ गए हैं।
आपको अक्सर सुर्खियों में रहने का शौक रहा है। इसलिए कुछ भी कह सकते हैं। ढेंचा बीज घोटाले में खुद को खुद ही क्लीन चिट दिलवाने वाले आप उत्तराखण्ड के पहले ऐसे सीएम रहे हैं जिन्होंने कुर्सी संभालते ही सबसे पहले खुद को क्लीन चिट दी।
अपनी ही पार्टी के मंत्री को गधा जैसे शब्द से सम्बोधित करके आपने चर्चाएं तो बटोर ली लेकिन आपका औऱ मंत्री हरकसिंह रावत का तुलनात्मक अध्ययन भी जरूरी है। आप इस वक्त तीसरी बार के विधायक हैं वहीं हरकसिंह छठवीं बार के।
जब आप उत्तर प्रदेश में कारगर जेल राज्य मंत्री उमानाथ सिंह के दरवाज़े पर खड़े होकर आदेश का इंतज़ार करने वाले PRO होते थे तब मात्र 27 साल की उम्र में 1991 में हरक सिंह रावत कल्याण सिंह की तत्कालीन सरकार में पर्यटन मंत्री बन गए थे ।
उत्तराखण्ड का इतिहास उठाकर देखें तो 1994 से 2000 तक दिल्ली जंतर मंतर पर उत्तराखण्ड जन संघर्ष मोर्चा का संयोजक रहते हुए हरकसिंह ने आंदोलन किया।
रामजन्म भूमि आंदोलन के लिए 1990 में हरकसिंह एकमात्र ऐसे नेता हैं जो एक महीने तक जेल में भी रहे। श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय से लेकर अन्य आंदोलनों में छह बार जेल जा चुके हैं ।
वहीं उत्तराखण्ड में चंपावत ,बागेश्वर , उधमसिंहनगर औऱ रुद्रप्रयाग को संघर्ष कर जिला बनवाने वॉले नेता भी हरकसिंह ही हैं । उसके बाद आजतक एक नया जिला नही बन पाया जबकि उत्तरकाशी में यमुनाघाटी को गैरसैंण को जिला बनाने की लंबे समय से मांग हो रही है।
उत्तराखण्ड के क़ई प्रसिद्ध सिद्धपीठों में बलि प्रथा बन्द करने के जन जागरूकता अभियान के भी हरकसिंह ध्वजवाहक रहें हैं।
ये कोई मंत्री हरकसिंह रावत के कसीदे नही बल्कि एक इतिहास के रूप में साझा कर रहा हूँ।
अब आपकी उपलब्धियाँ क्या रही हैं इसपर भी प्रकाश डालना आवश्यक है। मुख्यमंत्री बनते ही एक शिक्षिका के साथ बत्तमीजी , ढेंचा बीज घोटाले में खुद को खुद ही क्लीनचिट , देवभूमि में 13 शराब की फैक्ट्रियां, देवस्थानम बोर्ड जैसा काला कानून , उत्तराखण्ड की जमीनें लुटवाने वाला भू कानून , गैरसैंण में महिलाओं पर लाठीचार्ज , बेरोजगार युवाओं पर मुकदमे।
उत्तराखंड के इतिहास के आप पहले मुख्यमंत्री जिसके ऊपर झारखंड घूसकांड के चलते आज भी CBI की तलवार लटकी है , मामला न्यायालय लम्बित है , देखते है बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती है ।
आपको लगता है जो भी आपने अच्छा किया वो है अपने सगे सम्बन्धियों को खनन के पट्टे , सूर्याधार झील के आसपास जमीनों को खुर्द बुर्द करने के लिए सरकारी बजट में सबसे पहला ऐसा पुल जो सबसे तेज़ी से बना हो।
सीएम की कुर्सी से क्यों हाथ धो बैठे इसके लिए आप अभी तक आत्ममंथन नही कर पाए ? और ना ही अभिमन्यु का वध करने वाले कौरवों को ढूँढ पाए, अब राजनीति से संन्यास ही आपके सामने अंतिम विकल्प है।
उमेश कुमार
राजद्रोही पत्रकार