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यूएनआई का हालचाल : मजीठिया मसला, जमीन की लूट-खसोट, छुट्टा चेयरमैन…

नई दिल्ली । एक समय हिन्दी अखबारों के बीच काफी लोकप्रिय यूएनआई/वार्ता प्रबंधन के भ्रष्टालचार और लूट- खसोट के कारण कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दे पा रही है। प्रबंधन ने आधिकारिक रूप से मान लिया है कि संस्थान सात साल से घाटे में चल रहा है। मजीठिया देने की बात पर नोटिस बोर्ड लटका दिया गया है कि अमूक तारीख से यूएनआई में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशें लागू कर दी जाएगी। शायद सुप्रीम कोर्ट के डंडा से बचने के लिए। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली सरकार का भी डंडा पड़ा है और सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशों को लागू न करने की रिपोर्ट भेज दी गई है। इतना ही नहीं कुछ साथी अपने हक के लिए अब यूएनआई की माली हालत की चिंता छोड़ सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। वकीलों के अनुसार यूएनआई के साथी अभी भी सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।

<p>नई दिल्ली । एक समय हिन्दी अखबारों के बीच काफी लोकप्रिय यूएनआई/वार्ता प्रबंधन के भ्रष्टालचार और लूट- खसोट के कारण कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दे पा रही है। प्रबंधन ने आधिकारिक रूप से मान लिया है कि संस्थान सात साल से घाटे में चल रहा है। मजीठिया देने की बात पर नोटिस बोर्ड लटका दिया गया है कि अमूक तारीख से यूएनआई में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशें लागू कर दी जाएगी। शायद सुप्रीम कोर्ट के डंडा से बचने के लिए। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली सरकार का भी डंडा पड़ा है और सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशों को लागू न करने की रिपोर्ट भेज दी गई है। इतना ही नहीं कुछ साथी अपने हक के लिए अब यूएनआई की माली हालत की चिंता छोड़ सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। वकीलों के अनुसार यूएनआई के साथी अभी भी सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।</p>

नई दिल्ली । एक समय हिन्दी अखबारों के बीच काफी लोकप्रिय यूएनआई/वार्ता प्रबंधन के भ्रष्टालचार और लूट- खसोट के कारण कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दे पा रही है। प्रबंधन ने आधिकारिक रूप से मान लिया है कि संस्थान सात साल से घाटे में चल रहा है। मजीठिया देने की बात पर नोटिस बोर्ड लटका दिया गया है कि अमूक तारीख से यूएनआई में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशें लागू कर दी जाएगी। शायद सुप्रीम कोर्ट के डंडा से बचने के लिए। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली सरकार का भी डंडा पड़ा है और सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोडर्स की सिफारिशों को लागू न करने की रिपोर्ट भेज दी गई है। इतना ही नहीं कुछ साथी अपने हक के लिए अब यूएनआई की माली हालत की चिंता छोड़ सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। वकीलों के अनुसार यूएनआई के साथी अभी भी सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।

यूएनआई की जमीन की लूट-खसोट शुरू
सात साल से घाटे में चल रही यूएनआई की जमीन पर जगह-जगह प्रबंधन की मिलीभगत से कब्जा होने लगा है। दिल्लीे में एक खबरों के व्यापारी का 9 रफी मार्ग पर कब्जा न हो सका लेकिन भोपाल में प्रबंधन के लोगों ने वहां की जमीन भाजपा के एक बड़े नेता के हाथों नीलाम कर दिया। भाजपा नेता का कब्जा यूएनआई दफ्तर पर हो गया है। बताते हैं कि इसमें वहां यूएनआई का एक बड़ा पत्रकार इस नेता का शरणागत है। उसी की मिलीभगत के कारण भोपाल में एजेंसी के कार्यालय पर कब्जा हो गया है। अब इससे छुटकारा भी नहीं मिल सकता।

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अब तक गिफ्तार क्यों नहीं हुआ यूएनआई चेयरमैन
यूएनआई के कर्मचारियों को 15-15 महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है। पीएफ का करीब साढ़े चार करोड़ रुपए कंपनी ने मार लिए हैे। अभी तक कर्मचारियों का ये पैसा भविष्य निधि खाते में जमा नहीं कराया गया है। संसद मार्ग पुलिस स्टेशन में प्रबंधन और यूएनआई के चेयरमैन के खिलाफ एफ आईआर दर्ज कराया गया है लेकिन इस गैर जमानती मामले में अभी तक पुलिस चुप्पी साधे है और भविष्‍य निधि विभाग भी कोई कार्रवाई नहीं चाह रहा है। पुलिस की चुप्पी तो समझ में आती है क्‍योंकि इस देश में उसका काम करने का तरीका ही यही है। चाहे वह बिहार हो, मुंबई हो या संसद की नाक के नीचे की पुलिस हो। बताया गया है कि संसद मार्ग पुलिस को यूएनआई के चेयरमैन का भी नाम गलत बताया गया है।वैसे इसमें सच्चाई जो हो लेकिन हकीकत यही है कि यूएनआई प्रबंधन ने पुलिस आरै भविष्यनिधि संगठन के अधिकारियों से मिली भगत कर कमचारियों का मोटा पैसा हजम करने में लगा हुआ है।

कौन है यूएनआई का चेयरमैन
कई सालों से अपने को यूएनआई का चेयरमैन घोषित करने वाला विश्वास त्रिपाठी कौन है। क्या विश्वास त्रिपाठी ही यूएनआई का चेयरमैन है। अगर विश्वास त्रिपाठी चेयरमैन है तो प्रफुल्ल कुमार माहेश्वरी कौन है। यह सवाल आजकल उठने लगा है क्योंकि यूएनआई कर्मचारियों को शंका होने लगी है कि फिर संस्थान की बेसकीमती जमीन को भूमाफिया हथियाने की फिराक में लग गए हैं। बताया जाता है कि एक कंपनी द्वारा यूएनआई को उबारने के लिए 50 लाख की रकम दी गई थी। त्रिपाठी द्वारा अपने आप को स्वययंभू चेयरमैन घोषित किए जाने के पीछे भी कुछ इसी तरह के राज बताए जाते हैं। वरना विश्वास त्रिपाठी किसी भी रूप में असली चेयरमैन नहीं बन सकता। यूएनआई चार्टर के अनुसार यह संभव नहीं है। लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि ऐसा आदमी पंडित नेहरू द्वारा स्थापित संस्थान के सारे नियमों को ताक पर रख कर वह स्वयंभू चेयरमैन बना हुआ है। अब तो इस संस्थान में ऐसी दशा है कि जिसने चेयर हथिया लिया वही चेयरमैन ।

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यूएनआई में ये आजकल क्या हो रहा है
यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) में आजकल खबर संपादन और प्रेषण की जगह कुछ और ही हो रहा है। वेतन तो कई महीने सो कर्मचारियों को मिल नहीं रहा लेकिन उन्हें जान से मारने की धमकियां जरूर दी जा रही हैं। संसद मार्ग थाने की पुलिस आजकल विभिन्नि मामलों की जांच के लिए रोज चक्‍कर लगा रही है। कुछ दिन पहले एक दलित साथी से दुर्व्यवहार करन के आरेाप में तीन वरिष्ठ अधिकारी जेल जा चुके हैं। ये लोग अभी जमानत पर रिहा हुए हैं। लेकिन इससे कोई सबक नहीं ले रहा। अब एक और दलित कर्मचारी को धमकी दी गई है। इससे पहले एक महिला कर्मचारी ने भी अपने सहयोगियों पर कई तरह के आरेाप लगाए थे। चेयरमैन पीके माहेश्वएरी पर भी कई तरह के घोटाले में शामिल होने का आरोप है। माना जा रहा हैकि यूएनआई की बेसकीमती जमीन पर कब्जा करने की कोशिश क जा रही है और इसि‍लए वह सबकुछ किया जा रहा है जिससे एजेंसी की छवि और काम और रसातल में चला जाए।

फेसबुक पेज ‘मजीठिया मंच’ से साभार.

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0 Comments

  1. VIJAY KUMARGUPTA

    July 28, 2016 at 5:30 am

    साथियों यूएनआई प्रबंधकों की मनमानी के चलते लगातार कर्मचारी हताश होते जा रहे है।उनकी गलत और हाथ पर हाथ रखे रहने की नीति के चलते लगातार कर्मचारियों की हो रही मौते काफी चिन्ताजनक है।दिल्ली यूनियन प्रबन्धन से पूरी तरह से मिल चुकी है और उसके द्वारा कर्मचारियों की दयनीय स्थिति और कम्पनी को बदहाली के रास्ते पर ले जाने के प्रबन्धन द्वारा उठाए गए कदमों पर बोलना और विरोध करना तो दूर की बात है वह तो उल्टे उनका समर्थन कर रही है।
    आज हालात यहां तक पहुंच गए है,कि बोर्ड आफ डायर…

  2. VIJAY KUMARGUPTA

    July 28, 2016 at 5:31 am

    साथियों यूएनआई प्रबंधकों की मनमानी के चलते लगातार कर्मचारी हताश होते जा रहे है।उनकी गलत और हाथ पर हाथ रखे रहने की नीति के चलते लगातार कर्मचारियों की हो रही मौते काफी चिन्ताजनक है।दिल्ली यूनियन प्रबन्धन से पूरी तरह से मिल चुकी है और उसके द्वारा कर्मचारियों की दयनीय स्थिति और कम्पनी को बदहाली के रास्ते पर ले जाने के प्रबन्धन द्वारा उठाए गए कदमों पर बोलना और विरोध करना तो दूर की बात है वह तो उल्टे उनका समर्थन कर रही है।
    आज हालात यहां तक पहुंच गए है,कि बोर्ड आफ डायर…

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