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सुख-दुख

यूपी में किसान आत्महत्याओं का दौर और हरामी के पिल्लों द्वारा महान लोकतंत्र का जयगान

Yashwant Singh : कौन इनकी मौत को मुद्दा बनाएगा। ये ना पूंजीपति हैं। ये ना टीआरपी हैं। ये ना शहरी हैं। ये ना संगठित हैं। हम सब अपने अपने खेल में उलझे हैं और हम सबकी निहित स्वार्थी खेलकूद से उपजे अभावों की जेल में ये आम किसान कैद हैं। इस कैद की नियति है मौत। शायद तभी इनकी मुक्ति है। सिलसिला जारी है।  मनमोहन रहा हो या मोदी, माया रही हो या मुलायम। सबने पूंजी के खिलाडियों को सर माथे बिठाया। किसानों को सबने मरने के लिए छोड़ दिया। ये मरते थे। मर रहे हैं। मरेंगे। कभी बुंदेलखंड में। कभी विदर्भ में। जहाँ कहीं ये पाये जाते हैं वहीँ मौत का फंदा तैयार पड़ा है। कब कौन कहाँ लटक रहा है, हम सब नपुंसक की भाति चुपचाप इसका इंतज़ार कर रहे हैं। महान लोकतंत्र और अदभुत राष्ट्र की जयगान करने वाले हरामी के पिल्लों पर थूकता हूँ।

Yashwant Singh : कौन इनकी मौत को मुद्दा बनाएगा। ये ना पूंजीपति हैं। ये ना टीआरपी हैं। ये ना शहरी हैं। ये ना संगठित हैं। हम सब अपने अपने खेल में उलझे हैं और हम सबकी निहित स्वार्थी खेलकूद से उपजे अभावों की जेल में ये आम किसान कैद हैं। इस कैद की नियति है मौत। शायद तभी इनकी मुक्ति है। सिलसिला जारी है।  मनमोहन रहा हो या मोदी, माया रही हो या मुलायम। सबने पूंजी के खिलाडियों को सर माथे बिठाया। किसानों को सबने मरने के लिए छोड़ दिया। ये मरते थे। मर रहे हैं। मरेंगे। कभी बुंदेलखंड में। कभी विदर्भ में। जहाँ कहीं ये पाये जाते हैं वहीँ मौत का फंदा तैयार पड़ा है। कब कौन कहाँ लटक रहा है, हम सब नपुंसक की भाति चुपचाप इसका इंतज़ार कर रहे हैं। महान लोकतंत्र और अदभुत राष्ट्र की जयगान करने वाले हरामी के पिल्लों पर थूकता हूँ।

ये हरामी के पिल्ले मीडिया से लेकर राजनीति, सत्ता, अफसरशाही, न्यायपालिका हर जगह भरे पड़े हैं और बहुमत में हैं। इनके लिए किसान, गांव, जमीन, आत्महत्या, गरीबी, बेरोजगारी कोई बड़ी भारी समस्या नहीं है. इनका टारगेट सिर्फ एक है. पूंजी जुटाते रहना… पूंजी के बल पर गलत को सही में कनवर्ट करते रहना… ताकतवरों को संरक्षण देते-लेते रहना…. और, कुर्सी पर बने टिके बचे रहना… कोई देश के सबसे बड़े पैसे वाला की कुर्सी बचाने के लिए लूटमार कर रहा है तो कोई देश का सबसे शक्तिशाली राजनेता बने रहने के लिए गुणा-गणित में लीन है. सबके अपने अपने निजी एजेंडे हैं लेकिन वह हिडेन है और जो कुछ सामने है उसे संविधानसम्मत का चोला ओढा़कर हमको आपको जनता को सबको बेवकूफ बनाया जा रहा है. धन्य है यह महान लोकतंत्र जो अपने किसानों, अपने अन्नदाताओं को जिंदा बने रहने का हक देने में असमर्थ है.

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Yashwant Singh : खेत में गेहूं-चना की फसल पकने को तैयार है, तमाम विपत्तियों के बावजूद, लटका-झुका ही सही। यही वो समय मौसम होता है जब गांव की याद आती है। न गर्मी न सर्दी। पूरे मौसम में अजीब मादकता होती है। हार्मोन अलग कुछ एहसास कराते हैं। भावनाएं जमीन जड़ों की तरफ खींच ले जाती है। ऐसे में कैसे भी गाँव चला आता हूँ। खेत से चना उखाड़ के कच्चा हरा-हरा खाने के बाद एक अलग पके चने की खेप भून रहे हैं। धनिया लहसुन अदरक नमक मिर्च की चटनी के साथ इसे खाने के बाद दो गिलास गुड़ दही मिक्स रस यानि शरबत पी जाने का मतलब होता है अगले 4 घंटे तक मोक्ष की अवस्था में रहना। इस अवस्था में रहते हुए कोई fb status अपडेट कर इस आनंदित मनःस्थिति के बारे में न बतियाये और शहरियों को न जलाए तो फिर अतिरिक्त मज़ा कैसे आए।

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Yashwant Singh : आज बनारस में एक मीडिया सेमिनार में शिरकत करने आया हूं। स्टेशन से लंका पहुंचा तो देखा कि यहाँ करतब जारी है। अच्छे दिनों के इंतज़ार में बेसब्र हुए लोगों के लिए तमाशा पेश है। लंका पर रविदास गेट के पास केशव पान वाले के यहां से जो-जो पान घुला के निकला और मोदियापा चिंतन मंथन के साथ आगे बढ़ा, उसका साबका जमूरे और उस्ताद से पड़ा। नवरात्र के नाम दस-दस का नोट बटोरता जमूरा अपने उस्ताद के डंडे पीटने के हर इशारे पर चकित चैतन्य हो कलाबाजी करता। बंदरिया तो जैसे हदस गयी हो, उस्ताद से आँख बचा के पीछे बैठी रही। उस्ताद कभी मोदी की तरह नजर आता तो बेचारा बन्दर जनता की तरह। हालांकि वाकई जो जनता वहां जमी थी, वो पान घुला के दांत चियारे ‘हई देखा राजा’ कह के थपोरी पीट रही थी। कहते हैं कि यही तो है बनारस। पर अब बनारस का मूड मिज़ाज़ थोडा तल्ख़ हो रहा है। औघड़पना पर दुनियादारी भारी पड़ रही है। जीवन यापन का संकट सब कुछ पर तारी है।

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह द्वारा हाल के दिनों में फेसबुक पर लिखे गए विभिन्न सचित्र स्टेटस का संकलन. संपर्क: [email protected]

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0 Comments

  1. धरतीवासी

    March 26, 2015 at 9:42 am

    जबरदस्त. मोदी बोला था मैं देश का चौकीदार हूँ पर अंधो का क्या वो तो पूँजीपतियों का टाॅयलेट क्लीनर है. महान भारत देश का राष्ट्रपति करता क्या है? बस बैठे बैठे मलाई चाभता रहता है

  2. इंसान

    March 27, 2015 at 5:14 pm

    बेमतलब अखबार में बेकार और बेमतलब समाचार को पढ़ यदि कोई मूर्ख व्यक्ति बीच चौराहे चीख चिल्लाता और गाली गलौच करता पागल कुत्ते की भांति भौंके तो उसे क्या कहेंगे? इस प्रश्न का उत्तर यहां दिए गए चित्र में झलक रहा है! बीच चौराहे चीख चिल्लाता और गाली गलौच करता पागल कुत्ते की भांति भौंकता वह व्यक्ति बन्दर बना किन्हीं देशद्रोही तत्वों के हाथों खेल रहा है!

  3. इंसान

    March 27, 2015 at 11:46 pm

    मैं प्रायः bhadas4media पर यह इच्छा लेकर आता हूँ कि कोई अपने को पत्रकार कहलाने वाला भारत माँ का लाल शुद्ध हिंदी भाषा के माध्यम द्वारा भारतीय मीडिया, विशेषकर अंग्रेजी भाषी मीडिया में अनुपयुक्त, असभ्य व आचार भ्रष्ट विषय-वस्तु के विरुद्ध भड़ास निकाल भारतीय पत्रकारिता को देश-निर्माण हित नई दिशा देते दिखाई देगा। इस कुलेख को पढ़ ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि गाँव में बेटे को खड़े खड़े पेशाब करते देख एक बुजुर्ग भला मानस जब उसके घर शिकायत के लिए गया तो वहां पिता को छत पर खड़े पेशाब करते देख स्तब्ध रह गया।

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