Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पत्रकारिता की कब्र खोदकर कफनचोरों ने किया यूपी प्रेस क्लब पर कब्जा

आज से लगभग छह दशक पूर्व 1956 में पत्रकारों के जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यूपी प्रेस क्लब की स्थापना की गयी थी, वे उद्देश्य अब कहीं नजर नहीं आते। प्रेस क्लब को जिस राह पर चलाने के लिए पत्रकारिता जगत से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकारों ने जी-तोड़ मेहनत की अब वही प्रेस क्लब वर्तमान मठाधीशों की भोग-विलासिता के चलते अपनी राह से भटक चुका है। जिस प्रेस क्लब में किसी समय देश-विदेश की राजनीति और खबरों को लेकर चर्चाओं का दौर चला करता था वहीं अब शाम होते ही जाम से जाम टकराते हैं। ज्ञात हो प्रेस क्लब के गठन के समय लखनऊ की एक तत्कालीन प्रतिष्ठित शराब निर्माता कम्पनी के मालिक कैप्टन वीआर मोहन ने प्रेस क्लब में बार का प्रस्ताव रखते हुए साधन उपलब्ध कराने की पेशकश की थी।

आज से लगभग छह दशक पूर्व 1956 में पत्रकारों के जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यूपी प्रेस क्लब की स्थापना की गयी थी, वे उद्देश्य अब कहीं नजर नहीं आते। प्रेस क्लब को जिस राह पर चलाने के लिए पत्रकारिता जगत से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकारों ने जी-तोड़ मेहनत की अब वही प्रेस क्लब वर्तमान मठाधीशों की भोग-विलासिता के चलते अपनी राह से भटक चुका है। जिस प्रेस क्लब में किसी समय देश-विदेश की राजनीति और खबरों को लेकर चर्चाओं का दौर चला करता था वहीं अब शाम होते ही जाम से जाम टकराते हैं। ज्ञात हो प्रेस क्लब के गठन के समय लखनऊ की एक तत्कालीन प्रतिष्ठित शराब निर्माता कम्पनी के मालिक कैप्टन वीआर मोहन ने प्रेस क्लब में बार का प्रस्ताव रखते हुए साधन उपलब्ध कराने की पेशकश की थी।

गौरतलब है कि श्री मोहन लखनउ के महापौर भी रह चुके थे। कुछ पत्रकारों का उक्त शराब व्यवासायी का प्रस्ताव रास भी आया था लेकिन ज्यादातर पत्रकार इस सुविधा का विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि यदि प्रेस क्लब में शराब पीने की छूट मिली तो निश्चित तौर पर पत्रकारिता के हितों को सुरक्षित नहीं रखा जा सकेगा। यह प्रकरण नेशनल हेरल्ड के तत्कालीन संपादक चेलापति राव और पायनियर के संपादक एसएन घोष के सामने आया। दोनों तत्कालीन संपादकों ने एक स्वर में यह कहकर पत्रकारों को आईना दिखाया, ‘आप लोग अपनी हैसियत देखिए। कितना वेतन आप लोगों को मिलता है। उस वेतन से तो आप लोग अपने परिवार का बोझ नहीं उठा सकते। जिस वेतन से आप लोग सोडा वॉटर भी नहीं खरीद सकते, महंगी बोतलें कहां से खरीदेंगें।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ वरिष्ठों का कहना है कि तत्कालीन स्वर्गीय वरिष्ठ पत्रकारों का यह विरोध सही मायने में  प्रेस क्लब में शराब के प्रति विरोध का एक तरीका था ताकि प्रेस क्लब की स्वच्छता को बरकरार रखा जा सके। ये वही प्रेस क्लब है जहां असंसदीय भाषाओं के इस्तेमाल पर पत्रकारों के वरिष्ठ साथी टोक दिया करते थे अब वहीं पर असंसदीय भाषाएं अपनी सीमाएं लांघ चुकी हैं। जिस प्रेस क्लब की स्थापना पर विद्या की देवी मां सरस्वती की रोजाना पूजा हुआ करती थी वहीं आज देर रात ऐयाशी के सभी साधन उपलब्ध हो रहे हैं। जानकार सूत्रों की मानें तो यह सुविधाएं सिर्फ कुछ विशेष लोगों के लिए ही उपलब्ध हैं। ये वही प्रेस क्लब है जहां दिन-रात समाचारों के आदान-प्रदान के बाबत पत्रकारों का जमावड़ा लगा रहता था वहीं आज सुबह से लेकर शाम तक जुंए की फड़ लगती है।

जिन तथाकथित पत्रकारों का सरोकार अब मीडिया जगत से नहीं रह गया है वे ही दशकों से दबंगई के बल पर कार्यकारिणी में अपना प्रभुत्व बनाए हुए हैं। जिस प्रेस क्लब को पत्रकारों के हित के लिए इस्तेमाल होना चाहिए वही प्रेस क्लब अब मठाधीशों की आय और अवैध कार्यों का गढ़ बन चुका है। जिन पत्रकारों ने इन मठाधीशों का काकस तोड़ने का प्रयास किया वे ही अब प्रेस क्लब में प्रवेश के योग्य नहीं समझे जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

स्थानीय पुलिस से लेकर प्रदेश की नौकरशाही और सत्ता के गलियारे तक यूपी प्रेस क्लब में चल रहे अनैतिक कार्यों से भली-भांति परिचित हैं लेकिन प्रेस क्लब के वर्तमान मठाधीशों के खिलाफ कार्यवाई की हिम्मत उनमें नहीं है। प्रेस क्लब की लीज अवधि को समाप्त हुए दशकों बीत चुके हैं फिर भी प्रेस क्लब तथाकथित उन पत्रकारों की कब्जे में है जो कभी एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र से जुड़े हुए थे। हालांकि उक्त समाचार पत्र का प्रकाशन दशकों पहले बंद हो चुका है और उसके ज्यादातर पत्रकार सेवानिवृत्त की आयु भी पार कर चुके हैं फिर भी वे स्वयं को पत्रकार साबित कर प्रेस क्लब पर कुण्डली मारकर बैठे हैं। यहां तक की राज्य का जिम्मेदार सूचना विभाग भी इन मठाधीशों के समक्ष नतमस्तक है। इन पत्रकारों का लेखन से दूर-दूर का रिश्ता नहीं है फिर भी इन्हें राज्य मुख्यालय से सरकार ने मान्यता दे रखी है। अचम्भा तब होता है जब एक वास्तविक पत्रकार को जिले स्तर की अपनी मान्यता बरकरार रखने के लिए के ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है लेकिन इन मठाधीशों का नवीनीकरण बिना परिश्रम के प्रत्येक वर्ष स्वतः हो जाता है। बकायदा सूचना विभाग ऐसे लोगों को दूरभाष पर सूचित कर उनकी मान्यता जारी रखने की सूचना भी देता है।

विडम्बना यह है कि प्रेस क्लब में हो रहे अनैतिक कार्यों के बाबत प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान गवर्निंग काउंसिल के सदस्य के विक्रम राव ने भी मीडिया के माध्यम से कई बार प्रदेश की सरकारों से उचित कार्रवाई की गुजारिश भी की लेकिन प्रेस क्लब में व्याप्त अनैतिकता कम होने के बजाए दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी। उप्र0 प्रेस क्लब में व्याप्त अनैतिकता का सम्पूर्ण विवरण इस अंक में इस उद्देश्य के साथ प्रकाशित किया जा रहा है ताकि योग्य पत्रकारों की गरिमा का मान बरकरार रह सके। प्रेस क्लब पर दशकों से कुण्डली मारकर बैठे लोगों का काकस टूटे सके ताकि प्रेस क्लब की उस गरिमा को दोबारा कायम किया जा सके जिसके लिए वरिष्ठों ने जी-तोड़ मेहनत की थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता के उन्नयन और नये आयाम गढ़ने के जिस महान उद्देश्य के लिये देशभर में प्रेस क्लब की स्थापना हुई थी वे उद्देश्य अब कहीं नजर नहीं आते। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी के हृदयस्थली हजरतगंज में अवस्थित प्रेस क्लब अपने मूल उद्देश्यों से भटककर प्रेस की बजाय पथभ्रष्ट क्लब के रूप में परिवर्तित हो चुका है। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए यहां के मठाधीशों ने यूपी प्रेस क्लब के बाइ लॉज भी दरकिनार कर दिए गए हैं। तकरीबन छह दशकों के सफर में प्रेस क्लब पूरी तरह पथभ्रष्ट होकर पत्रकारों की उन्नति और विकास की बजाय ऐयाशी, सौदेबाजी, दारूबाजी और जुगाड़बाजी के उस बदनाम अड्डे में तब्दील हो चुका है जिसमें लिक्खाड़ और संजीदा पत्रकार जाने से कतराते हैं और बहुत मजबूरी के चलते ही प्रेस क्लब की ओर कदम बढ़ाने का साहस उठा पाते हैं।

जिस प्रकार पुरानी साइकिल में घंटी की बजाय हर चीज आवाज करती है ठीक उसी तर्ज पर यूपी प्रेस क्लब में पत्रकारिता के अलावा हर वो काम होते हैं जो पत्रकारिता के चेहरे पर कालिख पोतने और बदनाम करने का काम करती है। बरसों-बरस से प्रेस क्लब पर उन महानुभावों का कब्जा है जिनका एक लंबे अरसे से पत्रकारिता से कोई सरोकार नहीं है और ना ही नये पत्रकारों से कोई मेल-मुलाकात। पत्रकारिता के नाम और आड़ में प्रेस क्लब के पदाधिकारी दलाली और ऐयाशी में मशगूल हैं। असल में प्रेस क्लब में जुगाड़बाज और पत्रकारिता को आये दिन बेचने और नीलामी करने वाले तथाकथित पत्रकारों का अड्डा बन चुका है, जहां दिनभर पत्रकारिता की इज्जत तार-तार की जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नाम की कोई चीज ही नहीं है। बरसों से जमे पदाधिकारियों ने ऐसा काकस बना रखा है जिसके चलते तमाम पूर्व पदाधिकारी और सदस्य प्रेस क्लब से अलग हो चुके हैं। प्रेस क्लब में सदस्यता पिछले काफी समय से बंद है। अपने चेहतो के अलावा किसी नये पत्रकार को प्रेस क्लब का सदस्य नहीं बनाया जाता है। प्रेस क्लब के हसीब सिद्दीकी और जेपी तिवारी सदस्य बनाने के नाम पर नये नवेले पत्रकारों का ऐसा इंटरव्यू लेते हैं मानो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी देनी हो। इन लोगों ने प्रेस क्लब को अपने बाप की बपौती समझ रखा है। प्रेस क्लब के प्रबंध कार्यसमिति में बरसों से जमे लोग पत्रकारों की सेवा और विकास की बजाय अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। प्रबंध समिति के चंद लोगों को छोड़कर तमाम ऐसे सदस्य है जो पिछले काफी समय से सक्रिय पत्रकारिता से कटे हुये हैं। कहने को वो स्वयं को स्वतंत्र पत्रकार? बताते हैं लेकिन ये महानुभाव किसी पत्र-पत्रिका में लिखते हैं इसका पता किसी को नहीं है। झूठे और फर्जी तरीके से इन लोगों ने राज्य मुख्यालय पर मान्यता भी ले रखी है।

प्रेस क्लब में दिनभर जुगाड़बाज पत्रकारों का जमावड़ा रहता है। डग्गामारी के उस्ताद पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्ट ही प्रेस क्लब में मंडराते हैं। एक सप्ताह में औसतन दो से तीन प्रेस कांफ्रेस या सेमिनार प्रेस क्लब में आयोजित होते हैं। प्रेस क्लब का मूल उद्देश्यों में भी यही वर्गिात है कि प्रेस क्लब का उपयोग प्रेस वार्ता, सेमिनार या पत्रकारों से जुड़े कार्यक्रमों के लिए होगा। लेकिन प्रेस क्लब के नियमों की धज्जियां उड़ाने में प्रबंध समिति के सदस्यों का कोई सानी नहीं है। पिछले साल प्रेस क्लब की एक सदस्या की शादी और पिछले दिनों वरिष्ठ सदस्य जेपी तिवारी की शादी की पचासवीं साल गिरह का जशन प्रेस क्लब में किया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब में खुली नॉन वेज की दुकान शराबियों और शराबखोर पत्रकारों के लिए सबसे मुफीद अड्डा बना हुआ है। कम कीमत में नॉन वेज का मजा बीयर या दारू के साथ लेना हो तो बेधड़क यूपी प्रेस क्लब में चले आइये। कोल्ड डिंक की बोतल में दारू और बीयर भरकर आराम से नॉन वेज के साथ चटखारे लगाये जा सकते हैं। वहीं प्रेस क्लब के पदाधिकारी खुद और अपने मेहमानों की कोई खातिरदारी का कोई मौका नहीं गंवाते हैं। अक्सर इन पदाधिकारियों के कमरे में तथाकथित पत्रकारों की भीड़ लगी रहती है और दारू और मुर्गे का जश्न जारी रहता है। असल में यूपी प्रेस क्लब दारूबाजी और जुगाड़बाजी का वो बदनाम अड्डा बन चुका है जहां पत्रकारिता की आड़ में वो तमाम अनैतिक काम होते हैं जो पत्रकारिता को चेहरे पर कालिख पोतने का काम करते हैं।

प्रबंध समिति के पदाधिकारी प्रेस क्लब को अपने बाप की बपौती समझते हैं और अपने निजी कार्यों और फायदों के लिए भरपूर तरीके से इसका दुरूपयोग भी करते हैं। प्रेस क्लब के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी प्रेस क्लब का काम करने की बजाय पदाधिकारियों के घरेलु काम और प्रेस क्लब के बाहर खड़ी उनकी कारें धोने और पोंछने के काम में मशगूल रहते हैं। इन लोगों का काकास इतना मजबूत है कि कोई दूसरा प्रेस क्लब की सुविधाओं का उपयोग कर ही नहीं पाता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता, सेमिनार और इसी प्रकार के कार्यक्रमों से अर्जित होने वाली आय का हिसाब-किताब भी पूरी तरह गडमड है। किसी की हिम्मत नहीं जो इनसे इसका हिसाब मांग ले। पत्रकारिता के नाम पर जो लाभ चंद पत्रकारों का मिल रहा है वो उनके ही चमचे और पैर धोकर पीने वाले लोग हैं। आम पत्रकार को प्रेस क्लब में बैठने के लिये कुर्सी नसीब हो जाए यही बड़ी बात है। चंूकि आप लोकतंत्र के चौथे खंभे हैं और प्रेस क्लब आपकी शरणस्थली तो किसी की क्या हिम्मत और मजाल की वो प्रेस क्लब में चल रही अनैतिक, असंसदीय, नियमाविरूद्ध और गग्र-कानून गतिविधियों की ओर नजर उठा कर देख भी ले। खुलेआम शराब के जाम छलकाने से लेकर जुआ खेलने जैसे तमाम गैर कानूनी कृत्य प्रेस क्लब में होेते हैं। प्रेस क्लब के पदाधिकारियों से लेकर उनके मुंहलगे चमचे तक इन कुकृत्यों में शामिल हैं। पुलिस-प्रशासन पत्रकारों की हनक और रसूख के चलते प्रेस क्लब में चल रही गैर कानूनी कामों की ओर से नजर फेरे रहता है। प्रेस क्लब के कमरों में शराब और शबाब दोनों के दौर बदस्तूर चलते हैं। मुख्यमंत्री भले ही लाख कानून-व्यवस्था सुधारने और गैर कानूनी कृत्यों में शामिल लोगों पर नकेल कसने के दावे करें लेकिन लखनऊ प्रेस क्लब के पदाधिकारी और चंद तथाकथित पत्रकार सरे आम हजरतगंज स्थित प्रेस क्लब की चारदीवारी के भीतर वो सारे काम करते हैं जो पत्रकारिता और पत्रकारों को कलंकित करते हैं। मामला पत्रकारों और प्रेस क्लब से जुड़ा है तो मुंह खोलने और लिखने की हिम्मत आखिरकर कौन करे ?

आप प्रेस क्लब में सुबह से लेकर शाम को कभी भी चले जाइ, आपको चंद जाने-पहचाने चेहरे हमेशा वहां कुर्सियों पर काबिज दिखाई देंगे। पत्रकारिता को लेकर कोई गंभीर चर्चा, वार्तालाप, संगोष्ठी, सेमिनार या कार्यक्रम आपको वहां होता दिखाई नहीं देगा। रवायत के तौर पर श्रम दिवस और हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर अपने चेहते पत्रकारों को सम्मानित करने और नये पत्रकारों को मर्यादा, अनुशासन और पत्रकारिता के महान उद्देशयों की घुट्टी पिलाने का काम जरूर किया जाता है ताकि समाज में प्रतिष्ठा कायम रहे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब के पदाधिकारी न तो किसी सामाजिक आंदोलन से जुड़े हैं और ना ही वो नये व युवा पत्रकारों को आगे बढ़ाने के लिये कोई काम कर रहे हैं। पत्रकारों के मनोरंजन के लि, कोई सुविधा वहां नहीं है। बरसों पुराना रंगीन टीवी, झपकती टयूब लाइटे, बदबूदार टायलेट, पीने के पानी की पुरानी व गंदी मशीन, बदबूदार हाल और दलाल टाइप पत्रकारों से आपका सामना प्रेस क्लब में घुसते ही होगा। इस माहौल में प्रवेश करते ही आपको समझ आ जाएगा पत्रकारिता और पत्रकारों के विकास, मनोरंजन, शिक्षण, प्रशिक्षण और पत्रकारिता से जुड़ी तमाम अन्य गतिविधियों के लिए बनी इस महान संस्था का हाल ‘जेबी संस्था’ या फिर ‘दलाली, जुगबाजी, शराबखोरी और वेश्यावृत्ति’ का सुरक्षित, सस्ता और आरामदेह अड्डा बन चुका है। पत्रकारिता को कब्र में दफन कर कफन चोरों का कब्जा प्रेस क्लब पर हो चुका है जो पत्रकारिता की बजाय दलाली और पत्रकारिता के इतर तमाम गैर कानूनी, अमर्यादित और अनैतिक कार्यों में लिप्त हैं।

यूपी प्रेस क्लब में हो रही अनैतिकता के सम्बन्ध में क्लब के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य के विक्रम राव ने मायावती सरकार के कार्यकाल में 15 सितम्बर 2011 को प्रेस क्लब के अध्यक्ष रवीन्द्र कुमार सिंह को एक पत्र लिखकर सचेत किया था। श्री राव ने कहा था कि उन्होंने इस सम्बन्ध में कई बार क्लब के पदाधिकारियों को सचेत किया है लेकिन हर बार उनकी बातों को अनदेखा कर दिया जाता रहा है। श्री राव ने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि इस तरह की अनदेखी प्रेस क्लब के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। श्री राव ने श्री सिंह को सलाह देते हुए कहा था कि इन विषयों पर तत्काल चर्चा होनी चाहिए ताकि सम्यक निष्कर्ष निकल सके। लगभग तीन वर्ष से ज्यादा का समय व्यतीत हो चुका है फिर भी प्रेस क्लब की स्थायित्व को बरकरार रखने के लिए न तो कोई बैठक हुई और न ही निष्कर्ष निकला।

Advertisement. Scroll to continue reading.

श्री राव ने रवीन्द्र कुमार सिंह को भेजे पत्र में लिखा था कि जिस चाइना बाजार गेट पर प्रेस क्लब स्थापित है उसकी लीज दशकों पहले समाप्त हो चुकी है। गौरतलब है कि इस क्लब को तत्कालीन कबीना मंत्री सम्पूर्णानन्द ने 1955 में आईएफडब्ल्यूजे के मोतीमहल मैदान में हुए प्रतिनिधि अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी को लीज पर दिया था। उसी वक्त स्वागंत समिति के अध्यक्ष उपेन्द्र बाजपेयी ने आईएफडब्ल्यूजे की राज्य इकाई यूपीडब्ल्यूजेयू के नाम से इसकी लीज करवाई थी। यही कारण है कि पदाधिकारी तरूण भादुड़ी, मियां अफजाल अहमद अंसारी और बाबू सिंह चौहान काफी कोशिशों के बावजूद इस पर कब्जा नहीं कर पाए थे। चूंकि अब लीज अवधि समाप्त हो जाने के बाद प्रेस क्लब पर राज्य सरकार का स्वामित्व स्थापित हो गया है अतः वह चाह ले तो वह किसी अन्य मीडिया कर्मी अथवा संगठन के नाम पर इस भवन को आवंटित कर सकता है। शासन इस पर अपना रिसीवर भी बैठा सकता है। श्री राव ने अपने पत्र में देहरादून, दिल्ली प्रेस क्लब सहित अवध जिमखाना क्लब के हश्र का हवाला देते हुए कहा था कि उस वक्त दिल्ली हाई कोर्ट और सोसाइटी रजिस्ट्ार ने पदाधिकारियों के समक्ष मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। उनमें से कई पत्रकार को तो गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा था।

श्री राव ने श्री सिंह को लिखने अपने पत्र में यूपी प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को सलाह देते हुए कहा था कि इस वक्त यूपी प्रेस क्लब लीज राशि देने में सक्षम है। प्रेस क्लब के फिक्सड डिपॉजिट से धन लेकर लीज की धनराशि चुकायी जा सकती है। श्री राव ने यह भी भरोसा दिलाया था कि यदि बसपा सरकार के बाद मीडिया की मित्र सरकार यानि सपा की सरकार बनी हो लीज की धनराशि वापस भी ली जा सकती है लेकिन क्लब के पदाधिकारियो के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब का आयकर भी पिछले लगभग दो दशकों से जमा नहीं किया गया है। श्री राव ने चेताया था कि यदि आयकर विभाग ने सख्ती दिखायी तो जुर्माने के साथ-साथ वर्तमान पदाधिकारियों को सलाखों के पीछे भी जाना पड़ सकता है। श्री राव ने इस भूल को तुरन्त सुधारने की सलाह दी थी लेकिन वर्तमान पदाधिकारियों ने श्री राव की सलाह को नजरअंदाज कर दिया।

प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान गवर्निंग काउंसिल के सदस्य श्री राव ने प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की मनमर्जी को भी प्रेस क्लब के अस्तित्व पर खतरा बताया था। गौरतलब है कि प्रेस क्लब के सदस्यों ने प्रेस क्लब से सटे फुटपाथ को मांसाहार का धंधा करने वालों को किराए पर दे रखा है। हालांकि फुटपाथ नगर-निगम के अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन उसका किराया प्रेस क्लब वसूल करता है। प्रेस क्लब का कुछ अन्दरूनी हिस्सा भी उस दुकानदार को किराए पर दिया गया है जो प्रेस क्लब के संविधान के खिलाफ है। गौरतलब है कि बसपा सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन नगर आयुक्त शैलेष सिंह ने चाईना बाजार गेट के फुटपाथ पर अतिक्रमण को तोड़ने की चेतावनी भी दी थी लेकिन कुछ वरिष्ठ पत्रकारों के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हो गया। इस सम्बन्ध ने भी श्री राव ने सलाह दी थी कि तत्कालीन नगर आयुक्त ने भले ही इस मामले पर चुप्पी साध ली हो लेकिन प्रेस क्लब द्वारा कराए गए अवैध अतिक्रमण पर खतरा अभी-भी मंडरा रहा है। यहां तक कि सरकार जब चाहे प्रेस क्लब को भी अपने कब्जे में लेकर किसी को भी आवंटित कर मठाधीशों के हठ को चकनाचूर कर सकती है। श्री राव का कहना है कि यातायात पुलिस निदेशालय भी अपनी रिपोर्ट में साफ लिख चुका है कि प्रेस क्लब के सहयोग से मांसाहार का धंधा करने वालों के कारण यातायात बाधित हो रहा है। सड़क गली के रूप में तब्दील हो चुकी है। वाहनों के खड़े होने से अक्सर यातायात की समस्या हो जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जाहिर है यूपी प्रेस क्लब वर्तमान में सपा सरकार के रहमो-करम पर टिका हुआ है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रेस क्लब और नगर-निगम के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मांसाहार की दुकानों से प्रेस क्लब को प्रतिमाह 50 हजार रुपया किराए के रूप में प्राप्त होता है। कुछ समय पूर्व यह किराया तीस से बत्तीस हजार रूपए था। इस किराए का प्रेस क्लब अथवा पत्रकारों के लिए कौन से हित पूरे किए जाते हैं ? इसका कहीं पर लेखा-जोखा मौजूद नहीं है। प्रेस क्लब के पदाधिकारियों पर आरोप है कि किराए के रूप में मिलने वाली यह रकम स्वयं डकार ली जाती है। जाहिर है यदि इन समस्त प्रकरण की गंभीरता और निष्पक्ष तरीके से जांच की जाए तो कई बड़े लोगों के खिलाफ आरोप तय किए जा सकते हैं। प्रेस क्लब के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि मांसाहार की दुकान चलाने वालों से उन्हें किसी प्रकार का किराया नहीं मिलता है। यदि यह सच तो ‘दस्तरख्वान’ मांसाहार की दुकान का आधा हिस्सा प्रेस क्लब परिसर के भीतर तक कैसे पहुंच गया ? जाहिर है प्रतिमाह एक मोटी रकम हजम करने की गरज से इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं।

जिस वक्त प्रेस क्लब की स्थापना हुई थी उस वक्त पत्रकारों के लिए लाइब्रेरी की व्यवस्था का भी खाका खींचा गया था। कुछ समय बाद लाइब्रेरी भी बन गयी और उसमें ज्ञानपरक किताबें भी जमा हो गयीं। पत्रकार लाइब्रेरी का उपयोग भी किया करते थे। वर्तमान में सब कुछ बदल गया। लाइब्रेरी का ताला शायद ही कभी खुलता हो। किताबें नदारद हैं। जो हैं भी वे इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनका वर्तमान सन्दर्भ से कोई लेना-देना नहीं रह गया। जानकार सूत्रों की मानें तो पिछले कई वर्षों से लाइब्रेरी के लिए एक भी किताब नहीं खरीदी गयी। सच तो यह है कि जब लाइब्रेरी खुलती ही नहीं है  तो किताबें संजोने का क्या मतलब।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष का आरोप है कि प्रेस क्लब के वर्तमान पदाधिकारी क्लब के वीआईपी कमरों में रोजाना शराब और कवाब का आनन्द लेते हैं। प्रथम तो यह है कि इन पदाधिकारियों का बिल कौन देता है ? द्वितीय जब प्रेस क्लब में शराब पीना वर्जित है तो पदाधिकारियों को शराब के सेवन की इजाजत कैसे दी जा सकती है।

राजधानी लखनउ के आम पत्रकारों की शिकायत है कि पिछले लगभग दो दशक से प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को न तो किसी अखबार अथवा पत्रिका से सम्बन्ध है और न ही लेखन से। प्रेस क्लब के ज्यादातर पदाधिकारियों की न तो कोई नियमित आय है और न ही लेखन से कहीं पारिश्रमिक ही मिलता है फिर भी प्रेस क्लब पर वर्षों से कुण्डली जमाकर बैठे हैं। राज्य मुख्यालय से मान्यता के नियमों के तहत साफ लिखा है कि राज्य मुख्यालय की मान्यता उसी को मिल सकती है जो किसी अखबार में स्थायी नौकरी पर हो अथवा स्वतंत्र लेखन से उसे नियमित रूप से कम से कम प्रतिमाह तीन हजार रूपए प्राप्त होते हों। लेकिन इन पदाधिकारियों के सम्बन्ध में ऐसा कुछ भी नहीं है। इनके लेख किसी समाचार पत्र अथवा पत्रिका में न तो प्रकाशित होते हैं और न ही पारिश्रमिक ही मिलता है। फिर इन परिस्थितियों में सूचना विभाग इनकी मान्यता प्रत्येक वर्ष रिन्यू क्यों करता रहता है ? यह एक ऐसा सवाल है जो सूचना विभाग की कार्यप्रणाली को भी संदेह के दायरे में ला खड़ा करता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब की वोटर सूची की जांच भी पिछले कई वर्षों से नहीं हुई है जबकि दर्जनों की संख्या में कुछ पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने या तो पत्रकारिता से नाता तोड़ दूसरे कामों में लग गए हैं अथवा कुछ ऐसे भी जिनके समाचार पत्र बन्द हुए वर्षों हो चुके हैं। जानकार सूत्रों की मानें तो प्रेस क्लब की वोटर सूची में कई पत्रकार ऐसे हैं जो शहर छोड़कर ही अन्यत्र चले गए हैं लेकिन उनका नाम वोटर सूची में अभी भी बरकरार है।

यूपी प्रेस क्लब पर सभी पत्रकारों को समान रूप से अधिकार को लेकर कई बार पत्रकारों ने विरोध भी दर्ज किया। यहां तक कि गवर्निंग काउंसिल के सदस्य के विक्रम राव से भी शिकायत दर्ज करायी। प्रेस क्लब के मठाधीश पदाधिकारियों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाले पत्रकारों का कहना है कि जिस तरह से कानपुर, आगरा, इंदौर,चंडीगढ़, दिल्ली और कोलकाता के प्रेस क्लबों में सभी पत्रकारों का हक समान रूप से है उसी तरह से यूपी प्रेस क्बल में भी आम पत्रकारों को स्थान मिलना चाहिए। इस सम्बन्ध में प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष श्री राव ने क्लब के वर्तमान पदाधिकारियों को पत्र लिखकर कर जवाब मांगा था कि आखिर वे लोग कैसे नियम-कानून के खिलाफ जाकर एक वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाने का काम कर सकते हैं। श्री राव ने यहां तक कहा था कि यदि इस मामले में जल्द कोई पहल नहीं की गयी तो वे गवर्निंग काउंसिल के पद से इस्तीफा दे देंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जाहिर है यदि श्री राव अपने पद से इस्तीफा देते तो निश्चित तौर पर यह मामला प्रदेश सरकार के साथ-साथ न्यायपालिका में भी चुनौती दे रहा होता लिहाजा प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने श्री राव के क्रोध को शांत करने के लिए कई तरह के हथकण्डे अपनाए। फिलहाल श्री राव ने अपनी हठ छोड़ दी है लेकिन वे आज भी प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को सुधर जाने की चेतावनी देते आ रहे हैं। श्री राव ने अपने शिकायती पत्र में यह भी लिखा था कि यदि वे चाहें तो पुरातत्व निदेशालय, सोसायटी ऑफ रजिस्ट्ार, आयकर विभाग, लखनउ, सूचना विभाग, यातायात विभाग सहित लखनउ विकास प्राधिकरण से सूचना मांग कर जनहित याचिका के सहारे उनके अधिकार को चुनौती दे सकते हैं। सिविल सूट और सीजेएम से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करके भी मुसीबत पैदा की जा सकती है। यहां तक कि दोषी पदाधिकारियों पर गैरकानूनी हरकतों के लिए जेल और जुर्माना तक हो सकता है। जिला प्रशासन मांसाहार की दुकान चलाने वालों से वसूला गया किराया वसूलने के लिए प्रेस क्लब की कुड़की भी कर सकता है लेकिन वे चाहते हैं कि प्रेस क्लब इन सब संकटों से बचा रहे।

श्री राव ने यह चेतावनी लगभग तीन वर्ष पूर्व 15 सितम्बर 2011 को प्रेस क्लब के अध्यक्ष रवीन्द्र कुमार सिंह को एक पत्र के माध्यम से दी थी। उम्मीद थी कि प्रेस क्लब के पदाधिकारी सचेत होकर नियमों की अनदेखी नहीं करेंगे लेकिन वर्तमान परिदृश्य साफ बताता है कि इन तथाकथित पत्रकारों को उम्मीद से अधिक इस बात का भरोसा है कि उनके राजनेताओं से सम्बन्ध ऐसा कुछ भी नहीं होने देंगे। बताया जाता है कि पिछले दिनों प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से व्यक्तिगत मुलाकात की थी। यह मुलाकात किस सन्दर्भ में की गयी थी इसका खुलासा तो नहीं हो सकता अलबत्ता यहां के पदाधिकारियों के चेहरे साफ बता रहे हैं कि अब वे अपने मनमानीपूर्ण रवैये को बदलने वाले नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

फिलहाल प्रेस क्लब में अनियमितताओं का दौर जारी है। शराब-कवाब से लेकर ऐयाशी के वे सभी साधन उपलब्ध हैं जो कानून की नजरों में असंवैधानिक हैं। स्थानीय पुलिस से लेकर सत्ता के गलियारों तक में प्रेस क्लब में व्याप्त गंदगी की जानकारी है लेकिन कोई जिम्मेदार अधिकारी तथाकथित भ्रष्ट लोगों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

यह आर्टकिल लखनऊ से प्रकाशित दृष्टांत मैग्जीन से साभार लेकर भड़ास पर अपलोड किया गया है. इसके लेखक अनूप गुप्ता हैं जो मीडिया और इससे जुड़े मसलों पर बेबाक लेखन करते रहते हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. shabbankhangul

    July 12, 2014 at 6:55 am

    anup ji aap nai bahut he sahi likha hai hum aap kai sath hai

  2. Kashinath Matale

    July 12, 2014 at 1:14 pm

    Press Club, nahi Press Association, ya Press Sanghthan hona chahiye. club me kuchh bhi karte hai. Club culture hi alag hai. Majithia Wage Board implement nahi honea ka ya galat dhang se implement hone ka yeh ek karan ho sakta Hai.
    Jago ptrakaro jogo. Bheek ke badle haq mango.

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement