राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ब्रह्माकुमारीज संस्था की ओर से आयोजित चार दिवसीय वैश्विक शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया. यहां भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय को ‘राष्ट्र चेतना अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया.
रास्ता महत्वपूर्ण, साध्य और साधन नहीं
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, हमारे देश में आध्यात्म और धर्म को मिलाकर देखने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन मैंने जब से इस विषय को थोड़ा बहुत समझा और जाना, तो पाया कि आध्यात्मिकता और धर्म बिल्कुल अलग-अलग हैं. इसलिए थोड़ी बात धर्म पर और थोड़ी बात आध्यात्मिकता पर होनी चाहिए. इसलिए पहले धर्म पर दो लाइन जरूर कहूंगा कि धर्म जिन लोगों ने पाया, पैदा किया शायद उनके जीवन में कभी क्रांति का सूत्रपात हुआ होगा, तब कोई धर्म पैदा हुआ होगा, लेकिन हम जिस धर्म को मानते हैं, वह हमारा बपौती है, क्योंकि वह हमें मिला हुआ है.
बच्चे सभी धर्मों को पढ़ें
उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में न कभी कोई क्रांति हुई नहीं और ना कोई परिवर्तन आया. इसलिए जब मैं सोचता हूं इस पड़ाव पर आकर तो मुझे लगता है कि अपने बच्चों को किसी धर्म की शिक्षा नहीं देनी चाहिए, बल्कि उसे वो सारी सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए, जिससे वो सारे धर्मों को पढ़े. उसे मैं किसी भी धर्म का न बनाऊं, बल्कि ये आजादी दूं कि तुम जिस धर्म को चाहो वो पढ़ो और जिस दिन तु्म्हें मौज आ जाए, तुम्हारी आत्मा झूम उठे, उस दिन तुम उसी धर्म को अपना लेना, क्योंकि धर्म अनेक हैं, और सभी धर्मों ने परमात्मा तक पहुंचने के रास्ते बताए हैं, लेकिन सभी रास्ते सही नहीं हैं, कोई एक रास्ता पकड़कर ही अंतिम तक पहुंचा जा सकता है. अगर मैं इसे दूसरे शब्दों में कहूं, तो साध्य और साधन महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वो रास्ता महत्वपूर्ण है, जो एक दिन मंजिल में तब्दील हो जाता है.
मूल्यवान वो कृत्य है
उन्होंने आगे कहा,”जैसे कोई चित्रकार है, कोई कवि है या फिर कोई गणितज्ञ है, और कवि को हम अगर गणित का धर्म दे दें तो शायद उसे उस रास्ते पर चला नहीं जाएगा. कवि का मन बड़ा निर्मल होता है, वो गणित के सवालों को, पहेलियों को शायद सुलझाते-सुलझाते फेल हो जाए, ठीक ऐसा ही हम सबके जीवन में भी होता है. हम अपने दिमाग में इतना ज्यादा कूड़ा-करकट भर लेते हैं कि मूल्यवान चीजों को रखने की जगह ही नहीं बचती है. आध्यात्म हमें सिखाता है कि जीवन में मूल्यवान चीजों के लिए कम मूल्यवान चीजों को जितनी तन्मयता से छोड़ता चला जाता है, वही जीवन में सही अर्थों में आध्यात्मिक संतुलन को प्राप्त करता है, लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि जो हमने रहीम के दोहे में पढ़ा है कि ‘साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय’. रहीम कहते हैं कि साधु और सज्जन का स्वभाव सूप की तरह होना चाहिए. जो व्यर्थ को हटा दे और मूल्यवान चीजों को बचा ले, आध्यात्म भी हमें यही सिखाता है.”
आध्यात्म की परिभाषा
सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, “अगर हम रास्ते पर पड़ा कंकड़-पत्थर या फिर कांटा किसी दूसरे के लिए उठाकर फेंक दें या फिर किसी के आंगन में जाकर वहां पर झाड़ू लगा दें, यही आध्यात्म है. इसके अलावा जो भी है वो सिर्फ कर्मकांड है. जिससे जीवन में सिर्फ कूड़ा-कचरा के अलावा कुछ भी इक्ट्ठा नहीं होता है”. अपना संबोधन खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि आध्यात्म हमारे रोज के जीवन का हिस्सा है, लेकिन संतत्व उसकी मंजिल है.
विजय यादव
October 5, 2024 at 10:01 pm
भाई साहब, बहुत बहुत बधाई