उर्मिलेश-
अगस्त-सितम्बर, सन् 2019 के बाद मैंने टीवी चैनलों की ‘डिबेट’ में जाना बंद कर दिया था. मुझे लगा अब ये न्यूज़ चैनल की बजाय पूरी तरह ‘टीवीपुरम्’ बन गये हैं; जहां सिर्फ ‘कैम्पेन’ है, पूर्व-निर्धारित ‘एजेंडा’ है; पत्रकारिता या बहस के लिए जगह नहीं रह गयी है! जिन चैनलों में थोड़ी-बहुत जगह बची थी, वहां डिबेट्स में बुलाये अतिथि-पत्रकारों को पारिश्रमिक देना बंद हो गया. मैने उनसे हाथ जोड़ लिया!
मुझ जैसा स्वतंत्र पत्रकार बिना-पारिश्रमिक किसी स्टूडियो जाकर अपना वक्त और ऊर्जा क्यों खर्च करता!
बीच-बीच में कुछ चैनलों से उनकी कथित डिबेट्स में भाग लेने या घर-बैठे बाइट देने के लिए समय-समय पर फोन आते रहे! डिबेट्स के पहले की तरह अच्छा पारिश्रमिक मिलना भी तय था. पर मैने अपने आर्थिक नुकसान की कीमत पर उन चैनलों की कथित डिबेट्स में जाने से परहेज किया.
इधर उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव आये तो फिर कुछ चैनलों ने संपर्क करना शुरू किया है. दो प्रमुख चैनलों से इस बाबत फोन भी आये. मैने दोनों को मना किया.
इसमें एक ने ज्यादा जोर डाला तो मैने साफ शब्दों में कहा: आपके यहां आने के लिए मेरी दो शर्ते होंगी-
1. प्रति आधे या एक घंटे की डिबेट में हिस्सा लेने के लिए ‘इतनी’ राशि लूंगा(उतनी राशि मुझे अगस्त-सितम्बर, 2019 से पहले एक अन्य बड़े चैनल से मिला करती थी). एक घंटा से ज्यादा होने की स्थिति में वह राशि दोगुनी और तीन घंटा होने पर तिगुनी होगी!
2. डिबेट में किसी भी दल या नेता पर सकारात्मक या संयत आलोचनात्मक-टिप्पणी करने का मुझे अबाधित अधिकार होगा. मेरे बोलने के समय आपका एंकर या एंकरनी बीच में रोकेगे नहीं!
चैनलों के पत्रकारिता से दूर होते जाने और डिबेट्स के दौरान अपनी बात कहने से ‘रोके जाने’ के चलते ही मैने टीवी चैनलों पर जाना बंद किया था. इसलिए मैं इस मुद्दे पर नये और इस बड़े चैनल से सफ़ाई चाहता था.
सज्जन-किस्म के उक्त गेस्ट-कोआरडिनेटर ने अपने शीर्ष संपादकीय निर्देश पर मुझसे संपर्क किया था. मेरी पहली शर्त चैनल को मंजूर थी पर दूसरी शर्त के बारे में उसने कहा कि अपने शीर्ष संपादकीय पदाधिकारी (Boss) से मशविरा कर वह मुझसे कुछ ही देर में संपर्क करेगा. दो सप्ताह बीत गये पर वहां से फिर वह फोन नहीं आया, जिसे कुछ ही देर में आना था!